गगनचुंबी इमारतें यानी 'मंदी की आहट'
उदाहरण के तौर पर यूरोप में जब 'एंपायर स्टेट बिल्डिंग' निर्माणाधीन थी उसी दौर में 'ग्रेट डिप्रैशन' यानि यूरोप में व्यापक आर्थिक मंदी की शुरुआत हुई। कुछ ऐसा ही हुआ ‘बुर्ज ख़लीफ़ा’ के साथ जिसके निर्माण और उदघाटन तक दुबई की आर्थिक स्थिति ख़स्ताहाल हो चुकी थी।
बर्कलेज़ कैपिटल के मुताबिक चीन में इन दिनों सबसे ज़्यादा गगनचुंबी इमारतें बन रही हैं। यही नहीं भारत में भी 14 गगनचुंबी इमारतें निर्माणाधीन हैं।बर्कलेज़ कैपिटल के विश्लेषकों के मुताबिक, ''अक्सर यह देखा गया है कि विश्व की सबसे ऊंची इमारतें एक रुझान को दर्शाती हैं कि किस तरह विशालकाय इमारतों और बड़े-बड़े दफ़्तरों की चाह में बेताहाशा पैसा खर्च किया जाता है। ये असल में इस बात का संकेत है कि धन का इस्तेमाल सही जगह नहीं हो रहा। इसके बाद कंपनियों और देशों को आर्थिक कटौतियों का सहारा लेना पड़ता है.''
बर्कलेज़ कैपिटल के मुताबिक न्यूयॉर्क में बनी विश्व की पहली गगनचुंबी इमारत ‘द इक्वीटेबल लाइफ़ बिल्डिंग’ 1873 में बन कर तैयार हुई जिसके बाद पांच साल तक आर्थिक मंदी का दौर छाया रहा। 1912 में इस इमारत को गिरा दिया गया।'चीन से सावधान'शिकागो में बना विलीज़ टॉवर भी 1974 में बना जिसके बाद तेल की कीमतों ने यूरोप को थर्रा दिया। 1997 में बने मलेशिया के पेट्रोनॉस टॉवर भी एशिया में आर्थिक संकट की दस्तक साथ लाए।
बर्कलेज़ कैपिटल के मुताबिक निवेशकों को इस वक्त चीन को लेकर सबसे अधिक सचेत रहना चाहिए क्योंकि चीन में इन दिनों विश्व की 53 फ़ीसदी गगनचुंबी इमारतें बन रही हैं।इस आकलन की एक कड़ी के रुप में आर्थिक विश्लेषक कंपनी जेपी मॉरगन चेज़ के मुताबिक अगले 12 से 18 महीने के भीतर चीन के रियल एस्टेट बाज़ार में 20 फ़ीसदी तक की मंदी आ सकती है।भारत की बात करें तो फ़िलहाल विश्व में बनी कुल 276 गगनचुंबी इमारतों में से केवल दो भारत में है। हालांकि कुछ समय पहले भारतीय उद्दोगपति मुकेश अंबानी ने मुंबई में अपनी 27 मंज़िला रिहाइशी इमारत बनवाई जिसके बनने में लगभग एक अरब डॉलर का खर्च आया है। साल 1999 से हर साल बर्कलेज़ कैपिटल की ओर से गगनचुंबी इमारतों का आर्थिक विश्लेषण और सूचकांक जारी किया जाता है।