- श्री लक्ष्मी कॉटसिन को आंखें मूंद बाट दिए अरबों रुपए, कर्ज में डूबने से नीलाम हो रहीं यूनिट

KANPUR: श्री लक्ष्मी कॉटसिन मिल की कभी टेक्सटाइल इंडस्ट्री में तूती बोलती थी लेकिन समय के साथ लोन न चुकाने और अन्य कारणों की वजह से अब कंपनी की यूनिटें नीलाम होने लगी हैं। 31 मार्च को नोएडा की यूनिट नीलाम हो गई। इसके बाद कानपुर समेत अन्य पांच यूनिटों की बारी है.कंपनी की इनकम के मुकाबले छह गुना अधिक लोन है। खास बात यह है कि श्री लक्ष्मी कॉटसिन के मामले में कर्ज देते समय बैंकों ने तीन स्तरीय गारंटी का ध्यान नहीं रखा। बस कर्ज जारी किए जाते रहे। इसमें यह भी ध्यान नहीं रखा गया कि यदि कंपनी डूबी तो उससे रकम कैसे वापस ली जाएगी। वरिष्ठ चार्टर्ड अकाउंटेंट के मुताबिक बैंकों को अगर कोई संपत्ति बंधक रखी जा रही है तो उसके 75 परसेंट से ज्यादा कर्ज नहीं देना चाहिए।

क्या है नियम?

- संपत्ति की वैल्यू के 75 फीसद से ज्यादा नहीं दिया जाना चाहिए लोन

- कंपनी के डायरेक्टर की पर्सनल गारंटी भी जरूर ली जानी चाहिए

मिलीभगत का इशारा

बैंक को ऋण देते समय और देने के बाद भी धन के इस्तेमाल पर लगातार ध्यान रखना चाहिए। टर्म लोन और वर्किंग कैपिटल पर लोन देते समय इसका ध्यान रखना चाहिए कि जिस कार्य के लिए कर्ज लिया गया है, रुपए का यूज उसके लिए ही हो रहा है या नहीं लेकिन अधिकांश बैंक तब तक ध्यान नहीं देते जब तक किस्तें रुक नहीं जातीं। इसके अलावा यदि किसी संपत्ति को बंधक बनाकर लोन दिया जा रहा है तो रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) का चार्ज रजिस्टर भी देखना चाहिए कि कहीं उस संपत्ति पर कोई दूसरा लोन तो नहीं चल रहा। इसके साथ ही जिस प्रोजेक्ट के लिए ऋण दिया जा रहा है वह व्यापारिक व आर्थिक रूप ऋण दिए जाने योग्य है या नहीं। इसके अलावा प्राइमरी, कोलेटरल व निदेशक की गारंटी भी लेनी चाहिए।

550 करोड़ कीमत

संपत्ति की कीमत महज साढ़े पांच सौ करोड़ आंकी गई है जबकि उस पर तीन हजार से अधिक का लोन है। अब यह कंपनी नीलामी की कगार पर खड़ी है। नोएडा यूनिट नीलाम हो चुकी है। लोन पर ब्याज व पेनाल्टी मिलाकर कंपनी पर साढ़े सात हजार करोड़ की देनदारी बन रही है।

कीमत बहुत कम आंकी

कंपनी के विलय के लिए वेलस्पन और ट्राइजेंट ने रुचि दिखाई थी लेकिन जब उन्होंने कंपनी की अचल संपत्ति का मुआयना किया तो उसकी कीमत बहुत कम आंकी। ऐसे में कंपनियों ने अपने हाथ खड़े कर दिए। इन दोनों बड़ी कंपनियों के बाद मिल की हालत देखकर कोई भी कंपनी इसके विलय को लेकर आगे नहीं आई।

एनसीएलटी से नीलामी की परमिशन

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल 'एनसीएलटी' ने इस कंपनी की विभिन्न संपत्तियों को अलग-अलग बेचने की अनुमति दी। पांच महीने गुजरने के बाद जब किसी भी कंपनी के खरीदार को लेकर कोई बड़ी कंपनी सामने नहीं आई तो एनसीएलटी ने इसकी नीलामी के आदेश दिए जिसके बाद नीलामी का प्रॉसेस शुरू कर दिया गया।

Posted By: Inextlive