आल्हा से युवराज की हौसला अफजाई
बुंदेलखंड में सागर में रहने वाले लोक गीत गायक हरगोविंद विश्व, भारत के उन हजारों-लाखों भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं जो क्रिकेट खेल के तकनीकी पहलुओं का ककहरा भी नहीं जानते हैं लेकिन खेल के प्रति उनकी दीवानगी सभी हदों को पार करती नजर आती है।
With love to Yuvraj Singh
हरगोविंद विश्व ने बताया कि ‘‘हमें क्रिकेट खेल की बारीकियां भले ही समझ न :न: आती हों लेकिन मैच और खिलाडिय़ों को खेलते देखने में हमें जो आनंद आता है वह इस खेल के बड़े जानकारों के आनंद से किसी भी सूरत में कम नहीं हो सकता है.’’ लेकिन मशहूर क्रिकेटर युवराज को कैंसर होने की खबर लगने के बाद से ही मायूस से नजर आने वाले ‘‘विश्व’’ का कहना है कि ‘‘देश के लिए जी-जान लगा कर खेलने वाले इस युवा क्रिकेटर की बेहतरी के लिए देश भर में उसके चाहने वाले अपने-अपने तरीके से प्रार्थना कर रहे हैं, पूजा-अर्चना कर रहे हैं। कोई मस्जिद, गुरुद्वारे, मंदिर जा रहा है तो कोई चर्च जा रहा है.
विश्व का मानना है कि चूंकि वो एक गायक कलाकार हैं और किसी गायक की असली साधना गीत-संगीत पर ही केन्द्रित होती है। सो उन्होंने अपने फन को ही आधार बनाकर युवराज की जिंदगी की बेहतरी व हौसलाफजाई के लिए कुछ करने का फैसला किया। He is a fighterइस मकसद से ‘‘विश्व’’ ने बुंदेलखंड की लोकप्रिय ‘‘आल्हा’’ शैली में शब्दों को पिरोकर बुंदेली भाषा में एक गीत की रचना की है. गीत को आल्हा शैली में ही क्यों रचा गया इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि आल्हा गायन एक तरह से युद्ध का गीत है। बुंदेलखंड में करीब 800 सालों से जंग के दौरान सिपाहियों में जोश भरने व दुश्मनों पर पूरी ताकत से टूट पडऩे के लिए प्रेरित करने के लिए आल्हा का गायन किया जाता रहा है। मौजूदा समय में क्रिकेटर युवराज अमेरिका में कैंसर की बीमारी के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं और उन्हें भी ऐसे हौसला बढ़ाने वाली बातों की जरूरत है. बुंदेलखंड में अपनी विशिष्ट गायन शैली के लिए चर्चित हरगोविंद विश्व को भरोसा है कि उनके द्वारा अपने ही घर पर ही
हौसला बढ़ाएगा। अब तक क्रिकेट की पिचों पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाला ‘‘यूवी’’ आल्हा गायन की तरंगें पाकर जिंदगी की पिच पर कैंसर रोग की गुगली को भी बाउंड्री पार पहुंचा देंगे। Comeback for Mom‘‘विश्व’’ के आल्हा गीत में यूवी को जीवटता का देवता बताते हुए उनके द्वारा अब तक खेली गई चमकदार पारियों खासकर सन 2011 के विश्वकप में उनके प्रदर्शन का बखान किया गया है। गीत में अफसोस जताया है कि उनकी गैर हाजिरी की वजह से ही आस्ट्रेलिया, भारतीय टीम पर भारी पड़ा। जहां गीत के एक अंतरे में युवराज को याद दिलाया है कि विश्वकप जीत कर भारत लाकर उन्होंने भारत मां का कर्जा तो चुका दिया लेकिन मां शबनम का कर्जा चुकाना अभी बाकी है जो वह कैंसर के खिलाफ जंग जीतकर भारत लौटने के रूप में ही चुका सकते हैं। हरगोविंद विश्व रचित आल्हा के बारे में डा। हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के हिन्दी विषय के प्रोफेसर सुरेश आचार्य कहते हैं कि वीर रस व अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन आल्हा की खास पहचान है। उन्होने कहा कि युवराज की हौसला अफजाई के लिए इस गीत रचना में आल्हा की इस विशेषता का भरपूर ख्याल रखा गया है।
बहरहाल बुंदेलखंड में गाए जा रहे आल्हा को तो युवराज साक्षात नहीं सुन पाएंगे लेकिन हो सकता है वो पूरी तन्मयता से गाए जाने वाले आल्हा गायन की तरंगें सात समंदर पर महसूस कर पाएं, अगर ऐसा भी हुआ तो कैंसर के खिलाफ जंग में उनके हौसले के बुलंद करने की चाह रखने वालों के दिलों को भी राहत मिले बिना नहीं रहेगी।