'गॉड पार्टिकल' की झलक मिली लेकिन अभी पुष्टि नहीं
लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी निर्णायक सबूत के लिए उन्हें आने वाले महीनों में अभी और प्रयोग करने होंगे। पिछले दो वर्षों से स्विट्ज़रलैंड और फ्रांस की सीमा पर 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में अति सूक्ष्म कणों को आपस में टकराकर वैज्ञानिक एक अदृश्य तत्व की खोज कर रहे हैं जिसे हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल कहा जाता है।
इसे गॉड पार्टिकल इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यही वह अदृश्य-अज्ञात तत्व है जिसकी वजह से सृष्टि की रचना संभव हो सकी। अगर वैज्ञानिक इस तत्व को ढूँढने में कामयाब रहते हैं तो सृष्टि की रचना से जुड़े कई रहस्यों पर से परदा उठ सकेगा। इस शोध पर अब तक अरबों डॉलर खर्च किए जा चुके हैं और लगभग आठ हज़ार वैज्ञानिक पिछले दो वर्षों से लगातार काम कर रहे हैं।इस महाप्रयोग में शुरुआत से ही शामिल रहीं भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर अर्चना शर्मा ने बीबीसी हिंदी से विशेष बातचीत में कहा, "यह भूसे से भरे बड़े से खलिहान में सुई ढूँढने जैसा काम है। हम सुई को ढूँढने के कगार पर हैं लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि सुई हमें मिल गई है."
कैसे हो रहा है महाप्रयोग?विशाल हेड्रन कोलाइडर में, जिसे एलएचसी या लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर कहा जा रहा है, अणुओं को प्रकाश की गति से टकराया गया है जिससे वैसी ही स्थिति उत्पन्न हुई जैसी सृष्टि की उत्त्पत्ति से ठीक पहले बिग बैंग की घटना के समय थी।
महाप्रयोग के लिए प्रोटॉनों को 27 किलोमीटर लंबी गोलाकार सुरंगों में दो विपरीत दिशाओं से प्रकाश की गति से दौड़ाया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार प्रोटोन कणों ने एक सेकंड में 27 किलोमीटर लंबी सुरंग के 11 हज़ार से भी अधिक चक्कर काटे, इसी प्रक्रिया के दौरान प्रोटॉन विशेष स्थानों पर आपस में टकराए जिसे ऊर्जा पैदा हुई.डॉक्टर अर्चना कहती हैं, "प्रकृति और विज्ञान की हमारी आज तक की जो समझ है उसके सभी पहलुओं की वैज्ञानिक पुष्टि हो चुकी है, हम समझते हैं कि सृष्टि का निर्माण किस तरह हुआ, उसमें एक ही कड़ी अधूरी है, जिसे हम सिद्धांत के तौर पर जानते हैं लेकिन उसके अस्तित्व की पुष्टि बाकी है."
"वही अधूरी कड़ी हिग्स बोसोन है, हम उसे पकड़ने के कगार पर पहुँच चुके हैं, हम उसे ढूँढ रहे हैं, इसमें समय लग सकता है, हमारे सामने एक धुंधली तस्वीर है जिसे हम फोकस ठीक करके पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं"।यह इस समय दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग है, डॉक्टर अर्चना कहती हैं, "अगर हमें गॉड पार्टिकल मिल गया तो साबित हो जाएगा कि भौतिकी विज्ञान सही दिशा में काम कर रहा है, इसके विपरीत यदि यह साबित हुआ कि ऐसी कोई चीज़ नहीं है तो काफ़ी कुछ नए सिरे से शुरू करना होगा, विज्ञान की हमारी समझ को बदलना होगा."आख़िर क्या है गॉड पार्टिकल?डॉक्टर अर्चना बताती हैं, "जब हमारा ब्रह्मांड अस्तित्व में आया उससे पहले सब कुछ हवा में तैर रहा था, किसी चीज़ का तय आकार या वज़न नहीं था, जब हिग्स बोसोन भारी ऊर्जा लेकर आया तो सभी तत्व उसकी वजह से आपस में जुड़ने लगे और उनमें मास या आयतन पैदा हो गया"। वैज्ञानिकों का कहना है कि हिग्स बोसोन की वजह से ही आकाशगंगाएँ, ग्रह, तारे और उपग्रह बने।
पार्टिकल या अति सूक्ष्म तत्वों को वैज्ञानिक दो श्रेणियों में बाँटते हैं-स्टेबल यानी स्थिर और अनस्टेबल यानी अस्थिर। जो स्टेबल पार्टिकल होते हैं उनकी बहुत लंबी उम्र होती है जैसे प्रोटोन अरबों खरबों साल तक रहते हैं जबकि कई अनस्टेबल पार्टिकल ज़्यादा तक ठहर नहीं पाते और उनका रुप बदल जाता है।डॉक्टर अर्चना कहती हैं, "हिग्स बोसोन बहुत ही अस्थिर पार्टिकल है, वह इतना क्षणभंगुर था कि वह बिग बैंग के समय एक पल के लिए आया और सारी चीज़ों को आयतन देकर चला गया, हम नियंत्रित तरीक़े से, बहुत छोटे पैमाने पर वैसी ही परिस्थितियाँ पैदा कर रहे हैं जिनमें हिग्स बोसोन आया था."वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह हिग्स बोसोन का अंत होने से पहले उसका रुप बदलता है उस तरह के कुछ अति सूक्ष्म कण देखे गए हैं इसलिए उम्मीद पैदा हो गई है कि यह प्रयोग सफल होगा।