बिना ड्राइवर वाली कार....
इस रोबोटिक गाड़ी की ख़ासियत ये है कि ये कैमरे, रडार और लेज़र जैसी तकनीक के सहारे ख़ुद ही सड़कों पर चल सकती है। यानी इसे चलाने के लिए किसी ड्राइवर की ज़रूरत नहीं होगी और गाड़ी का मालिक आराम से पीछे की सीट पर बैठ कर सफ़र का मज़ा ले सकता है।
उम्मीद जताई जा रही है कि इस तकनीक से सड़कों पर ट्रैफ़िक सुरक्षा बढ़ेगी और भीड़-भाड़ भी कम होगी। इस गाड़ी के निर्माण की परियोजना के अध्यक्ष प्रॉफ़ेसर पॉल न्यूमैन का कहना है कि ये गाड़ी मनुष्य की दख़लअंदाज़ी के बिना ही ख़ुद को आदेश देगी और स्वचालित होगी।आमतौर पर ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस गाड़ी की स्थिति के बारे में बता सकता है, लेकिन गाड़ी की गति को नियंत्रित करने में ग़लतियों की संभावना हो सकती है।इस रोबोटिक गाड़ी में ऐसे सेंसर लगे हुए हैं जो इसकी स्थिति और गाड़ी के आस पास मौजूद चीज़ों के अनुकूल गाड़ी की गति और चाल को ढाल सकता है।
गूगल कारप्रॉफ़ेसर पॉल न्यूमैन का कहना है कि भविष्य में कंप्यूटर से गाड़ी को नियंत्रित करने वाली क्षमताओं की उपलब्धता से गाड़ी चलाने के अनुभव पूरी तरह से बदल जाएगा।उन्होंने कहा, “आप कल्पना कर सकते हैं कि एक कंपनी ऐसी गाड़ी का प्रचार करेगी हर दिन 10 मिनट के लिए स्वचालित हो और दूसरी ओर कोई और कंपनी ऐसी गाड़ी का प्रचार करेगी, जो हर दिन 15 मिनट के लिए स्वचालित हो.” यहां बता दें कि ऐसी गाड़ियों का पहले से ही निर्माण हो चुका है, जो स्वचालित रूप से ख़ुद को पार्क कर सकती हैं।
पिछले साल गूगल ने घोषणा की थी कि उसने ऐसी स्वचालित गाड़ी का निर्माण किया है जिसने अमरीका में 1,40,000 मील तक ख़ुद को ड्राइव किया था। हालांकि ऑक्सफ़ोर्ड की गाड़ी और गूगल की स्वचालित गाड़ी में अंतर ये है कि गूगल की गाड़ी में सेंसरों की तादाद कम है। गूगल की गाड़ी थ्री-डी मैप पर ज़्यादा निर्भर करती है।ऑक्सफ़ोर्ड की स्वचालित गाड़ी की परियोजना को इंजीनियरिंग एंड फ़िज़िकल साइंसिज़ रिसर्च काउंसिल की ओर से 1.4 मिलियन पाउंड की राशि दी गई है।‘सोचने वाली कार’गाड़ी बनाने वाली टीम का कहना है कि कंप्यूटरीकृत गाड़ियों का फ़ायदा ये है कि न तो ये कभी थकेंगीं और न ही इनका ध्यान भंग होगा। ब्रिटेन के वाहन विभाग का कहना है कि ऐसी गाड़ियों के इस्तेमाल से ट्रैफ़िक की समस्या से निपटा जा सकता है।
इसका दूसरा पहलू ये भी है कि स्वचालित गाड़ियों से होने वाली संभावित ग़लतियों के क़ानूनी नतीजे क्या होंगें। लेकिन प्रॉफ़ेसर पॉल न्यूमैन का कहना है कि फ़िलहाल उनका ध्यान इस बात पर है कि इस तकनीक को किस तरह से बेहतर बनाया जाए।