सउदी अरब नौकरी करने के लिए निकले थे, अब कोई सुराग नहीं
कानपुर (ब्यूरो) यूपी इंटेलीजेंस के माध्यम से इन युवाओं की गुमशुदगी की जानकारी सुरक्षा एजेंसियों को भी दी गईं लेकिन इनका छह सालों में कुछ पता नहीं चला। केवल परिवार वालों को ये बताया गया कि जिस देश के वीजा पर ये लोग गए थे, वे उस देश में नहीं हैैं। 2017 में हुए इस माड्यूल के खुलासे के बाद परिवार वाले बिल्कुल शांत बैठ गए हैैं। शाम चार बजे के आस पास दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम सैफुल्लाह के घर पहुंची और दरवाजा खटखटाया तो अंदर से महिला की आवाज आई, कौन है? उसके बाद गेट तक महिला आईं भी लेकिन दरवाजा नहीं खोला। यही हाल मैदान पार करके रह रहे आतिफ के घर का भी रहा।
न जाने कब पकड़ ली आतंक की राह
इलाकाई लोगों ने बताया कि न तो सैफुल्लाह और न ही उसके परिवार वाले किसी से बात करते थे। 2017 के पहले की याद करते हुए एक बुजुर्ग ने बताया कि नई उम्र का लडक़ा था, न जाने उसकी सोच कब बदल गई और आतंक की तरफ मुड़ गया। 2016 के अंत में जब इलाके में धमाकों की आवाज सुनाई देती थी तो बाहर निकल कर देखा जाता था। आस पास धुआं दिखाई देता था और कोई भी नहीं दिखता था। आसिफ के घर की बात की जाए तो सैफुल्लाह के घर के ठीक सामने इसके घर का पिछला दरवाजा खुलता है, जिसे इमरजेंसी में इस्तेमाल किया जाता था।
मनोहर टीला हाईवे से चंद कदम की दूरी पर बनी बस्ती क्राइम के लिए बदनाम है। छोटे से लेकर बड़े क्रिमिनल तक यहां पनाह लेते हैं। नशे का कारोबार यहा पनप रहा है, लेकिन किसी की नजर नहीं पड़ती है।
जो लोग सालों से गुम हैैं। उनकी जानकारी परिवार वालों ने पुलिस को दी है। एजेंसी को भी उनकी जानकारी दे दी गई है।
बसंत लाल, एडीसीपी विजिलेंस