धमाका सुन कर और खून देखकर सैफुल्लाह को मिलता था चैन
कानपुर (ब्यूरो) सैफुल्लाह के सबसे करीबी मोहम्मद गौस ने बताया कि सैफुल्लाह के साथ भारत के दो दर्जन से ज्यादा लोग आईएसआईएस कैंप मेे ट्रेनिंग लेकर आए थे। शुरू की पांच दिन की ट्रेनिंग के बाद सैफुल्लाह ने खुद ही तेज धमाकों और गनपाउडर की फ्रीक्वेंसी सीखनी शुरू कर दी थी। 15 दिन में सैफुल्लाह धमाकों का मास्टर हो गया था। अपने बयानों में जाजमऊ के साजिद ने बताया कि सैफुल्लाह उसे जाजमऊ टीले से नीचे उतारकर गंगा किनारे ले गया और मिट्टïी के साथ मिलाकर कागज में कुछ बांधा और उसके बाद उसे दीवार पर पटक दिया, जिससे तेज धमाका हुआ। इस धमाके वाली चीज को बनाने में उसे तीन से चार मिनट लगे थे।अपने अंत का अहसास था उसे
गुजरात में ट्रेन में हुए धमाकों और बिल्डिंग्स पर बारूदी हमले के दर्जनों वीडियो वह हमेशा अपने पास रखता था। लोगों का ब्रेनवॉश कर उन्हें जेहादी बनाने में इन वीडियोज का अहम रोल था। गुजरात में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा और उन पर हो रहे अत्याचारों को दिखाकर सैफुल्लाह लोगों अपनी तरफ आकर्षित करता था। ट्रेनिंग के दौरान उसे ये बात बता दी गई थी कि वह ज्यादा दिन तक पुलिस ने नहीं बच पाएगा, लेकिन जितना भी जीवन है उसमें उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करना है। शफीक पहुंचाता था रकमपिस्टल, कारतूस खरीदने और लोगों को संगठन से जोडऩे के लिए उन्हें लालच देना पड़ता था। इसके लिए रुपये की जरूरत होती थी, जिसे बिधूना का शफीक देता था। शफीक के पास ये रुपये कहां से आते थे, इस बार में मो। गौस ने बताया कि न उन्होंने कभी जानने की कोशिश नहीं की और न ही उन्हें बताया गया। फोन पर रुपये की जरूरत बताई जाती थी। उससे ज्यादा रकम शफीक उन्हें विभिन्न माध्यमों से पहुंचा देता था। शफीक दिव्यांग था और किसी आतंकी वारदात में उसका एक हाथ उड़ गया था।
कैरियर के लिए महिलाओं का इस्तेमालअपने बयानों में शफीक ने कहा है कि गैैंग के लोग रुपये लाने ले जाने के लिए या वेपन, कारतूस लाने ले जाने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल करते थे। जिससे किसी को शक न हो। महिलाओं की चेकिंग न होने की वजह से वे सफलतापूर्वक निर्धारित स्थान पर रुपये या असलहा पहुंचा देती थीं। जिसका उनको दूरी के हिसाब से खर्चा दिया जाता था। दरअसल इस विंग से जुड़ी किसी महिला का नाम सामने न आने की वजह से इस तरफ एनआईए की जांच नहीं बढ़ी।