दो जुलाई 2020 की वो खौफनाक रात. जब चौबेपुर का बिकरू गांव गोलियों की तड़तड़ाहट और बम के धमाकों से गंूज उठा. दुर्दांत विकास दुबे के घर दबिश देने की पुलिस टीम को घेरकर हर तरफ से फायरिंग की गई. देखते ही देखते सीओ सहित 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे और कई पुलिसकर्मी घायल. किसी के पेट में गोली लगी तो किसी के पैर में. सुबह होने तक बिकरू कांड देश की सुर्खियां बन चुका था. इस बहुचर्चित कांड के बारे में दो सालों में आपने बहुत कुछ सुना और पढ़ा होगा? लेकिन आज दैनिक जागरण आई नेक्स्ट आपको उस जघन्य हत्याकांड और दुर्दाँत दुबे की क्रूरता का आंखों देखा हाल बताएंगे. जी हां पूरे देश को हिला कर रख देने वाली इस वारदात के दो चश्मदीद गवाह सामने आए हैं. जो न सिर्फ उस मुठभेड़ का हिस्सा थे बल्कि अपने शरीर पर गोलियां खाईं थीं. एक समय था जब इन्होंने जिंदगी की उम्मीद छोड़ दी थी लेकिन दो साल तक ट्रीटमेंट के बाद ये जांबाज फिट हो गए है बल्कि ड्यटी भी ज्वाइन कर ली है. ड्यूटी ज्वाइन करने के बाद पहली मुलाकात में इन चश्मदीदों ने बताया उस काली रात आंखों देखा सच.....

कानपुर (सुधीर मिश्रा) शिवराजपुर थाने में तैनात आरक्षी अजय सिंह सेंगर ने बताया कि वह 40 पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के साथ जब बिकरू पहुंचे। अधिकारियों के आदेश पर गाडिय़ां बाहर ही खड़ी कर दी गई थीं। हम लोग तीन टीमों में बंटकर आगे बढ़ रहे थे। अचानक जेसीबी मशीन ने हमारा रास्ता रोक लिया। मशीन पार करते ही मैंने देखा कि विकास छत पर बनियान पहने खड़ा था। रात के करीब डेढ़ बज रहे थे। हम लोग पोजीशन लेते उससे पहले ही उसे आहट मिल गई। विकास चिल्लाया कि बदमाश आ गए बस इतना सुनते ही चारों तरफ से फायरिंग होने लगी। हम लोग खुद को घिरा देखकर बचाव करने लगे। मैैं फायरिंग करते हुए कुएं की तरफ भागा।

पेट में लगी गोली, लगा अब जिंदा नहीं बचुंगा
टॉयलेट के पास पहुंचा था कि वहीं पांच पुलिस कर्मी शेल्टर लिए थे। इसी बीच मैंने और कौशलेंद्र दरोगा जी ने ट्राली की आड़ लेकर फायरिंग शुरू की। टायलेट में शेल्टर लिए पांचों पुलिस कर्मी मर चुके थे। इसी दौरान एक बुलेट मेरे पेट में आ लगी। खून बह रहा था, मुझे अपनी ड्यूटी के साथ इकलौते बेटे और परिवार का चेहरा सामने आ गया। पल भर में ये सोच लिया कि अब आधे घंटे से ज्यादा जीवन नहीं है। अंगौछा पेट में बांधकर दिवंगत सीओ को पेट में गोली लगने की जानकारी दी और गांव के बाहर अपनी गाड़ी की तरफ आया। हर तरफ बम का धुआं और गोलियों की आवाज सन्नाटे को चीर रही थी। इसी बीच रह रह कर आवाज आ रही थी कि कोई बचने न पाए। हर तरफ से घेर कर फायरिंग करो।

साथियों की बहुत याद आती है.
इसी दौरान छत पर खड़ी खुशी दुबे ने अमर को बताया कि हम भाग रहे हैैं। हमारे सामने गोलियों से बचते हुए गाड़ी तक पहुंचना बड़ी चुनौती थी, लेकिन किसी तरह हम मनु के घर के कच्चे हिस्से में पहुंच गए। जहां हमे आड़ मिल गई। यहां से पीछे का रास्ता पकड़ हम गाड़ी तक पहुंचे और साथियों से अस्पताल ले जाने को कहा। कौशलेंद्र दरोगा जी के हाथ में गोली लगी थी। अस्पताल आने पर परिवार दिखा तो आंखें आंसूओं से भर गईं। किसी तरह से इलाज शुरू हुआ और हम ठीक हो गए। आज हम अपने परिवार के बीच खुशी तो महसूस करते हैैं लेकिन जो साथी उस मनहूस रात को हमसे बिछुड़ गए, उनकी याद बहुत परेशान करती है।

घायल सीओ को पीठ पर चढ़ाकर दीवार फंदाई, फिर भी नहीं बचे
सनसनी फैलाने वाली इस वारदात के दूसरे चश्मदीद हैैं होमगार्ड जयराम कटियार। ड्यूटी के दौरान इनके पास खूंखार विकास दुबे और उसके गुर्गों से निपटने के लिए केवल एक डंडा था। जयराम ने बताया कि वह शिवराजपुर थानेदार के हमराह थे। जबकि साथ में चलने वाले आरक्षी के पास वेपन था। जब हम लोग बिकरू पहुंचे तो हर तरफ अंधेरा था। लगा कि सब सो रहे हैैं लेकिन बाद में पता चला कि पूरी प्लानिंग के तहत ये अंधेरा कायम किया गया था। इसी बीच अचानक फायरिंग होने से सभी पुलिसकर्मी छिपने की जगह तलाशने लगे। लगातार फायरिंग हो रही थी, पुलिस को आगे बढऩे का कोई मौका विकास और उसके गुर्गे नहीं दे रहे थे। फिर भी पुलिसकर्मी सुरक्षित स्थान पर पहुंच कर जवाबी फायरिंग कर रहे थे। मैैं भी मनु के घर की दीवार से सटकर खड़ा था। कोई वेपन तो था नहीं, इसी बीच सीओ को गोली लग गई। उन्हें पीठ पर चढ़ाकर दीवार फंदाई। इसके बाद सीओ को आंगन में घेर लिया गया। अगर मनु के घर में मौजूद लोग दरवाजा खोल देते तो कई जानें बच जातीं। सीओ समेत तीन पुलिसकर्मी आंगन में फंस गए।

क्यो सीओ क्या कहते थे ?
जयराम ने बताया कि सीओ घिर गए थे, इसी दौरान विकास अपने गुर्गों के साथ आ गया। उसे ये पता चल चुका था कि गांव के बाहर खड़ी गाडिय़ों में घायलों को लेकर सभी चले गए हैैं। विकास ने जमीन पर घायल पड़े सीओ से कहा कि 'क्यों सीओ क्या कहते थे कि दूसरी टांग से भी लंगड़ा कर दोगेÓ। इतना कहने के बाद सीओ की चीख सुनाई दी। विकास ने उनके पैर पर हमला कर दिया। मेरे पेट और पैर में गोली लग चुकी थी। अब गांव से निकलने की जुगत लगानी थी। दूसरे रास्ते से निकले तो घर की छत पर खड़ी महिलाएं चीखने लगीं कि देखो ये बचकर भाग रहा है। किसी तरह निकल कर सड़क पर पहुंंचे और पुलिस कर्मी चौबेपुर के अस्पताल ले गए, जहां से कानपुर रेफर कर दिया गया।

गांव वालों ने नहीं किया सपोर्ट
जयराम को शासन ने एप्रिसिएट करने के लिए कामन डिस्क दी है। जयराम ने बताया कि अगर गांव वाले पुुलिस का साथ दे देते तो शायद तस्वीर कुछ और होती। विकास को जिंदा पकड़ा जा सकता था और इतनी बड़ी संख्या में हमारे साथी मारे नहीं जाते। कुछ पुलिस कर्मी जिंदा होते और बिकरू कांड इतना विख्यात न होता।

बिना प्लानिंग के दी गई दबिश
जयराम ने बताया कि रात साढ़े बारह बजे दबिश देने की सूचना आई और सभी तुरंत चल दिए। न तो इसकी पहले से कोई प्लानिंग की गई थी और न ही किसी को कुछ ब्रीफ किया गया था। बिना किसी तैयारी के जल्दबाजी में दबिश दी गई, जिसमें पुलिस को बैकफुट पर आना पड़ा।

Posted By: Inextlive