पक्का खेल, कच्चा बिल
- ट्रीटमेंट की दरें निर्धारित होने के बाद भी प्राइवेट हॉस्पिटल्स कर रहे मनमानी
- डिस्चार्ज होने वाले मरीजों को नहीं दिए जा रहे हैं पक्के बिल, प्रोविजनल बिल देकर टरका रहे - दवा और जांचों के बिल भी एक्चुअल बिल से रहते गायब, बिल रिम्बर्समेंट में आ रही प्रॉब्लमKANPURÑ सरकार और प्रशासन की गाइडलाइन और तमाम निगरानी के बाद भी प्राइवेट कोविड हॉस्पिटल्स पेशेंट्स के इलाज में मनमानी कर रहे हैं। बेडों की किल्लत का ये हॉस्पिटल खूब फायदा उठा रहे हैं। ट्रीटमेंट की निर्धारित दरों से कहीं ज्यादा चार्ज किया जा रहा है। और मरीजों को ठीक होने पर सही बिल भी नहीं दे रहे हैं। जो बिल दे रहे हैं उसमें भी कई झोल है। कई खर्चों की जानकारी बिल में जोड़ी ही नहीं जा रही है। नार्मल आइसोलेशन बेड में भर्ती पेशेंट भी दो से ढाई लाख का पेमेंट करके अस्पतालों से छुट्टी पा रहे है। जान बचाने की मजबूरी के चलते लोग भी इस मनमानी के खिलाफ आवाज नहीं उठा पा रहे हैं।
बिल रिम्बर्समेंट में आ रही प्रॉब्लमसरकारी और कई प्राइवेट कर्मचारी जिन्हें मेडिकल खर्च के रिम्बर्समेंट की सुविधा है। कोरोना का इलाज कराने के बाद जब वह रिम्बर्समेंट के बिल लगाते है तो वह अप्रूव नहीं होता। सीजीएचएस लाभार्थी त्रिवेणी प्रसाद दीक्षित ने बताया कि कोरोना संक्रमित होने के बाद इलाज के दौरान उन्होंने कैश पेमेंट ही किया था। डिस्चार्ज होने के बाद जब उन्होंने इन बिलों को रिम्बर्समेंट के लिए लगाया तो बिल अप्रूव नहीं हुए क्योंकि उन्हें अस्पताल से प्रोवीजन बिल दिया गया था। उसमें भी जांचों और दवाओं के खर्च के बिल नहीं लगे थे।
न फंसे इसलिए प्रोविजनल का जाल स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि सरकार ने कोविड इलाज के लिए नार्मल आइसोलेशन बेड और अर्कसीयू में ट्रीटमेंट के लिए दरें निर्धारित कर रखी है, लेकिन कई प्राइवेट कोविड अस्पताल इससे ज्यादा बिल बनाते हैं। पेशेंट की ओर से शिकायत नहीं होने की वजह से हम भी कुछ नहीं कर पाते, लेकिन यह बात संज्ञान में आई है कि कई अस्पताल पक्का बिल नहीं दे रहे हैं। जबकि मरीज का इलाज का एक्चुअल खर्च काफी ज्यादा है। प्राइवेट अस्पताल जो बिल देते भी हैं। उसमें कई खर्चों को शामिल नहीं करते उसका पैसा अलग से लेते हैं। ऐसा वह लिखापढ़ी में फंसने से बचने के लिए करते हैं। केस-1 कच्चा बिल थमाया, खर्चो का जिक्र नहीं48 साल की उम्र के मनीष गुप्ता कोरोना संक्रमित होने के बाद बड़ी जद्दोजेहाद के बाद रामा मेडिकल कॉलेज में भर्ती हो सके। हालत खराब थी तो आईसीयू में भी गए और प्लाज्मा भी चढ़ी। इलाज के बाद उनकी हालत ठीक हुई और वह डिस्चार्ज कर दिए गए.डिस्चार्ज होते वक्तच्उन्हें कच्चा बिल थमा दिया गया। आरोप है उसमें इलाज के लिए लगी दवाओं और जांचों के खर्च का भी कोई जिक्र नहीं था। पक्का बिल मांगा तो कोई साफ जवाब नहीं मिला। डिस्चार्ज कार्ड के साथ नत्थी कर कंप्यूटराइज्ड बिल थमा दिया गया। उसमें भी इलाज के खर्चो का साफ साफ जिक्र नहीं था.
केस-2 क्या इलाज किया, यह भी नहीं पता 55 साल की मधु धीर सिविल लाइंस स्थित भार्गव अस्पताल में इलाज करा रही थीं। हालत गंभीर होने पर उन्हें आईसीयू में भी रखा गया। साथ ही प्लाज्मा भी चढ़ाया गया। इलाज के बाद जब परिजन बिल जमा करने पहुंचे तो उन्हें पक्के बिल की जगह प्रोविजनल बिल थमा दिया गया। साथ ही डिस्चार्ज कार्ड में भी क्या इलाज हुआ, इसे लेकर साफतौर पर जानकारी नहीं दी गई। क्योंकि वह नॉन कोविड हॉस्पिटल में कोरोना का इलाज करा रहे थे।