स्पोट्र्स में चैंपियन तो सिर्फ एक ही बनता है
कानपुर(ब्यूरो)। अच्छी पढ़ाई करके तो एग्जाम में 100 माक्र्स कई लोगों के आ जाते हैैं, लेकिन स्पोट्र्स में चैंपियन केवल एक ही बनता है। मेरी स्कूल टीचर ने मुझसे कहा था कि पूरे देश में चैैंपियन तो एक ही बनता है। पीसीएम (फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ) पढ़ लो इंजीनियर बनने के चांस ज्यादा हैैं। लेकिन मैंने स्पोट्र्स को प्रिफरेंस दिया। यह बातें सैटरडे को द स्पोट्र्स हब (टीएसएच) आर्यनगर में जी रामराजन के साथ टॉक शो में पद्म श्री और पद्म भूषण पाने वाले बैडमिंटन प्लेयर पुलेला गोपीचंद ने कहीं। लगभग 45 मिनट के टॉक शो के दौरान उन्होंने हॉल मेें बैठे प्लेयर्स को मोटिवेट करने का काम भी किया। उन्होंने टीएसएच में प्लेयर्स को दो दिन खेल की बारीकियों को सिखाया। प्रोग्राम में मेयर प्रमिला पांडेय, पीयूष अग्रवाल, प्रणीत अग्रवाल और पीके श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।
मुझे तीन से बेहतर खेलना था
पुलेला गोपीचंद ने बताया हैदराबाद की जिस एकेडमी में मैैं बैडमिंटन सीखता था। वहां पर चार स्टूडेंट थे। मेरा लक्ष्य था कि मुझे तीनों से बेहतर खेलना है। वह शाम 6-7 बजे तक प्रैक्टिस करते थे। मैैं शाम 5.30 से 7.30 तक प्रैक्टिस करता था। शुरू और आखिरी के अतिरिक्त एक घंटे ने मुझे उनसे बेहतर बनाया। कॉम्पटीशन को इंस्पिरेशन मानकर मैंने चैैंपियन बनने की तैयारी शुरू की थी। राजीव बग्गा और दीपांकर भट्टïाचार्य से मैैं प्रेरित हुआ।
टीएसएच हॉल में बैठे बैडमिंटन प्लेयर्स को मोटिवेट करते हुए पुलेला गोपीचंद ने कहा कि बचपन में पीसीएम मुझे समझ में नहीं आता था। सुबह 4-5 बजे तक रोजाना तेजी से बोल बोलकर पढऩे के बाद 5.30 पर मेरी मां मुझे खेलने की परमीशन देती थी। मेरा भाई पहली और दूसरी रैैंक लेकर आता था और मैैं 19-20 रैैंक लाकर ही संतोष कर लेता था। मां ने गिरवी रखा था मंगलसूत्र
गोपीचंद ने बताया कि वह कोई बहुत रईस परिवार से ताल्लुक नहीं रखते थे। हम लोग गरीब नहीं थे, लेकिन फिजूलखर्ची के लिए पैसे नहीं थे। मुझे एक बार टूर्नामेंट खेलने जाना था तब पैसे कम पडऩे पर मां ने अपना मंगलसूत्र गिरवी रखकर मुझे पैसे दिए थे। उन्होंने बताया कि प्रैक्टिस के लिए वह कोर्ट से पुराने शटल को उठा लिया करते थे। जब भी वह किसी अंग्रेजी देश वाले प्लेयर से हारते थे तो उनको गुस्सा आता था। यह फीलिंग इंपार्टेंट है।
हारो तो निराश न हो, जीतो तो उड़ो मत
खेल में दो लोग खेलते हैं और एक जीतता है। दूसरा हारने वाला फेल्योर को सीख जाता है। पुलेला ने प्लेयर्स को संबोधित करते हुए कहा कि प्लेयर्स 10-12 साल की उम्र में ही फेल्योर सीख जाते हैैं। जबकि स्कूल में यह चीज नहीं सिखाई जाती है। आम आदमी 30 साल की उम्र में फेल्योर को जानता है, तब उसे तकलीफ होती है। कहा कि जब आप खुद की फिजिकल एबिलिटी को नहीं नाप पाएंगे तो मेंटल एबिलिटी को कैसे नापेंगे। इसलिए चैैंपियन बनो न बनो लेकिन खेलो जरूर। बस एक बात याद रखो कि जब हारो तब निराश मत हो और जीतो तो ज्यादा मत उड़ो। हार जीत तो होती रहेगी उससे सीखिए और भूलिए।
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पुलेला गोपीचंद को अभी तक मिले अवार्ड
- मेजर ध्यानचंद खेल रत्न 2001
- पदम श्री 2005
- द्रोनाचार्य अवार्ड 2009
- राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार 2013
- पदम भूषण 2014
- आनरेरी डॉक्टरेट बाई आईआईटी कानपुर 2019