कभी ब्रिटिश आर्मी करती थी परेड, आज शहर का सबसे बिजी चौराहा
कानपुर (ब्यूरो)। 24 मार्च को 221 वर्ष का हो चुका कानपुर अपने आप में बहुत कुछ समेट हुए है। ब्रिटिश काल से जुड़े ऐतिहासिक नाम, घटनाएं, अंग्रेजों को हिला देने वाली क्रांतिकरियों की गाथाएं आज भी जिंदा हैं। आज हम आपको ऐसे ही स्थल के बारे में बताएंगे। जिसे शहर का जानता तो बच्चा बच्चा है लेकिन इसके नाम के पीछे की कहानी क्या है, इसे बहुत कम लोग ही जानते होंगे। हम बात कर रहें है शरि के बिजी चौराहे परेड की। दशहरे के समय रामलीला देखने और आम दिनों में मार्केटिंग करने के लिए अक्सर लोग इस मैदान का रुख करते हैैं। लेकिन आजादी के पहले यहां अंग्रेजों की सेना की परेड होती थी। सेना की परेड तोसमय के साथ बंद हो गई लेकिन यह नाम आज तक जिंदा है।
सुनाई देती थी घोड़े की टॉप की आवाज
डीएवी कालेज के हिस्ट्री डिपार्टमेंट के रिटायर्ड एचओडी प्रो। समर बहादुर सिंह बताते हैैं कि रोजाना यहां पर ब्रिटिश जवान आते और परेड करते। घोड़ों की टॉप और जवानों की कदमताल की आवाज यहां आसपास रहने वालो को रोज सुनाई देती थी। अंग्रेज चले गए लेकिन इस स्थान का नाम अभी भी परेड के नाम से ही जाना जाता है। अब यह स्थान काफी समृद्ध हो चुका है। परेड चौराहा के साथ इससे जुड़ा वो परेड ग्राउंड अब भी मौजूद है। यहां शहर की ऐतिहासिक रामलीला भी होती है। जो परेड की रामलीला नाम से चर्चित है।
शहर की सबसे बड़ी, प्राचीन, जीवंत और ऐतिहासिक परेड रामलीला की शुरूआत साल 1877 में हुई थी, जिसे पंडित प्रयाग नारायण तिवारी, लाला शिव प्रसाद खत्री और रायबहादुर विशंभरनाथ अग्रवाल ने अंग्रेजी शासन से अनुमति मांगकर शुरू कराया था। अंग्रेजों ने काफी सोचने, समझने के बाद अनुमति दी। तब सन् 1877 में परेड में पहली रामलीला हुई। अंग्रेजों को रामलीला का मंचन इतना अच्छा लगा कि उन्होंने हर साल रामलीला आयोजन की अनुमति प्रदान कर दी। वर्तमान में रामलीला कमेटी के अध्यक्ष महेन्द्र मोहन अग्रवाल, प्रधानमंत्री कमल किशोर अग्रवाल और उपाध्यक्ष विश्वनाथ अग्रवाल हैं।
रोज आते थे अंग्रेज अफसर
आजादी के पहले की बात की जाए तो यहां रोजाना परेड के साथ साथ अंग्रेजी सेना के अफसरों का आना जाना था। परेड के समय अफसर आकर सेना का मिजाज परखते थे। बताया जाता है कि परेड के समय या फिर अफसरों के आने के समय यहां किसी भी हिंदुस्तानी के आने की परमिशन नहीं थी। यदि धोखे से कोई आ गया तो उसको भगाया जाता या फिर कोड़ों की सजा दी जाती थी।
आजादी के बाद अंग्रेजों की परेड यहां पर खत्म हुई तो आसपास का माहौल भी बदला है। इस समय रामलीला के समय के अलावा मैदान के अंदर और चारों ओर एक बड़ी मार्केट लगती है, जहां पर कपड़े, औजार, पक्षी, जिम का सामान, कंबल, जूते और अन्य सामान मिलता है। इसके अलावा मैदान से अस्पताल रोड की ओर निकलने पर शहर की बड़ी बुक मार्केट है। वहीं परेड चौराहे की ओर नवीन मार्केट, पीपीएन मार्केट और सोमदत्त प्लाजा यहां की शोभा बढ़ाने का काम करता है।