ओसीडी और सोमाटोफॉर्म इफेक्ट ने बढ़ाई मेंटल प्रॉब्लम
- पोस्ट कोविड पेशेंट्स में एक्सेसिव अलर्टनेस का सिंड्रोम,कोई लक्षण नहीं होने पर भी बीमार होने का अहसास
KANPUR: कोरोना के बाद की परेशानियां दूसरी लहर के खत्म होने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ रही हैं। कोरोना संक्रमण के ठीक हो चुके लोगों को लंग्स, हार्ट, किडनी,लीवर के अलावा सबसे ज्यादा मेंटल प्रॉब्लम्स सामने आ रही हैं। जिसका उन्हें आसानी से पता भी नहीं चलता। ज्यादा प्रॉब्लम होने पर वह डॉक्टर के पास जाते हैं और डॉक्टर समस्या को समझ कर उन्हें मानसिक रोग विशेषज्ञों के पास भेज देते हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में लोगों में मेंटल प्रॉब्लम्स ज्यादा बढ़ी हैं। स्ट्रेस,साइकोसिस, ओसीडी समेत सोमाटोफार्म इफेक्ट लोगों में उभर कर सामने आ रहे हैं। जिसका पता उन्हें डॉक्टर के पास पहुंचने पर चलता है। ओसीडी (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डरर)के लक्षण-- एक ही काम बार बार करने की आदत होना,क्योंकि शख्स यह बात भूल जाता है कि उसने यह काम पहले किया है।
- साफ सफाई की आदत एक ही जगह पर बार बार सफाई करना,दिमाग में एक तरह की सनक का सवार होना- दिमाग में एक ही चीज का बार बार दोहराव होना, जिससे कंसनट्रेशन में कभी भी आ जाती है।
- किसी काम को करने के बाद भी बार बार डाउट आना, जैसे बार बार पैसे गिनना वजह- कंपल्सिव बिहेवियर का होना,ज्यादा जिद्दीपन, एक्सेसिव स्ट्रेस,डर, भूलने की आदत सोमाटोफॉर्म इफेक्ट के लक्षण- - सोमा एक ग्रीक शब्द है जिसका मतलब होता है शरीर.सोमाटोफॉर्म इफेक्ट कई तरह का होता है - कई शारीरिक लक्षण एक साथ आते हैं। जोकि असलियत में नहीं होते सिर्फ दिमाग को ही ऐसा लगता है.इसका शारीरिक जांच या लैब टेस्ट में नहीं चलता.सारी रिपोर्ट नार्मल आती है। - पुरुषों की बजाय महिलाओं में यह प्रॉब्लम 5 से 20 गुना तक ज्यादा होती है। आम तौर पर 30 साल से ज्यादा उम्र में यह प्रॉब्लम होती है। वजह- एक्सेसिव स्ट्रेस, फैमिली हिस्ट्री, एल्कोहल और ड्रग्स का सेवन सोमाटोफार्म इफेक्ट में मेंटल स्ट्रेस शरीर के लक्षणों में बदल जाती है.ऐसे शख्स को लगता है कि यह उसके शरीर के किसी खास हिस्से की प्रॉब्लम है। जबकि ऐसा होता नहीं है.कई बार एसे दूर करने के ि1लए मेडिकेशन की जरूरत होती है। - डॉ। मनीष निगम, सीनियर साइक्रियाटिस्टओसीडी में काउंसिलिंग और मेडिकेशन दोनों की जरूरत पड़ती है। इसका इलाज थोड़ा लंबा चलता है। पेशेंट्स को कॉग्नेटिव बिहेवियरल थेरेपी इसमें कारगर होती है।
- डॉ। गणेश शंकर, असिस्टेंट प्रोफेसर, मानसिक रोग विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज