लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व मनाने के लिए वोट करना जरूरी है. लेकिन जब कोई भी प्रत्याशी आपकी उम्मीदों में खरा न उतरे तो भी आप इस पर्व में अपनी आहुति दे सकते हैं. इसके लिए चुनाव आयोग ने 2013 में ईवीएम में वोटर्स को नोटा का ऑप्शन दिया था.

कानपुर (ब्यूरो)। लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व मनाने के लिए वोट करना जरूरी है। लेकिन जब कोई भी प्रत्याशी आपकी उम्मीदों में खरा न उतरे तो भी आप इस पर्व में अपनी आहुति दे सकते हैं। इसके लिए चुनाव आयोग ने 2013 में ईवीएम में वोटर्स को नोटा का ऑप्शन दिया था। अवेयरनेस के साथ नोटा पर बटन दबाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। मनपसंद प्रत्याशी न होने पर नोटा का बटन दबाकर वोटर्स अपना विरोध भी दर्ज करा रहे है। 2014 लोकसभा चुनाव में जहां 2228 लोगों ने नोटा दबाया तो वहीं 2019 में यह संख्या 4057 पहुंच गई।

घाटमपुर व बिठूर में सबसे ज्यादा
इलेक्शन कमीशन ने नोटा का अधिकार 2013 में वोटर्स को दिया था। 2014 के लोक सभा इलेक्शन में 2278 वोटर्स ने इलेक्शन में नोटा का बटन दबाया था। उस समय कुल वोटर्स में 51.83 वोटर्स ने वोट किया था। जबकि 2019 में यह संख्या बढक़र 4057 हो गई। जबकि उस समय 51.65 प्रतिशत ही वोटिंग हुई थी। वहीं 2022 के विधान सभा चुनाव में 11,165 वोटर्स ने नोटा का बटन दबाया था।

जबकि विधानसभा में 57.08 प्रतिशत ही वोटिंग हुई थी। इसमें भी सबसे ज्यादा घाटमपुर व बिठूर के वोटर्स ने नोटा का प्रयोग किया था। हालांकि हर विधान सभा में नोटा का प्रयोग हुआ था लेकिन पांच विधान सभा में नोटा का आंकड़ा डेढ़ हजार के आस-पास था।

Posted By: Inextlive