- केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐपीलेप्सी के डायग्नोसिस, ट्रीटमेंट और दवाओं को लेकर मांगी जानकारी

- एम्स की प्रोफेसर बोलीं, स्वच्छता अभियान की वजह से ऐपीलेप्सी के मामलों में कमी आने की संभावना

KANPUR: देश भर में ऐपीलेप्सी के 10 मिलियन से भी ज्यादा पेशेंट्स हैं। इनके होने की मूल वजहों की बात करें तो इंफेक्शन, बचपन में सिर में चोट लगना, मेनइनजाइटिस, इंसेफलाइटिस, व टेपवर्क इसकी बड़ी वजहें होती हैं। इसे सही करने के लिए जिंदगी भर दवा खानी पड़ती है। इसका कोई कोर्स नहीं होता। इसकी दवाएं भी काफी सस्ती हैं। यह ब्रेन की एक बीमारी लेकिन फिर भी इसे लेकर सोशल स्टीग्मा है। जिसे जागरुकता से दूर किया जा सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार की ओर से पहल हुई है। एम्स में न्यूरो साइंस सेंटर से ऐपीलेप्सी के बाबत उसके डायग्नोसिस, उसके ट्रीटमेंट और दवाओं की जानकारी सरकार ने मांगी है। स्वास्थ्य मंत्रालय को यह जानकारियां दे भी दी गई है। इसे लेकर टीबी कंट्रोल प्रोग्राम की तरह ही एक नेशनल प्रोग्राम शुरू किया जा सकता है। यूपी यूके न्यूरोकॉन के आखिरी दिन कानपुर आई। एम्स दिल्ली में न्यूरोलॉजी की सीनियर प्रोफेसर डॉ। मंजरी त्रिपाठी ने यह जानकारी मीडिया से बातचीत के दाैरान दी।

बेटियों को अपने पैरों पर ख्ाड़ा करें

प्रो। मंजरी त्रिपाठी ने कहा कि लड़कियों में ऐपीलेप्सी को बेहद खराब माना जाता है। कई बार इस वजह से उनकी शादी नहीं होती। तो कई बार शादी के बाद भी बीमारी का पता चलने पर उन्हें छोड़ दिया जाता है। ऐसे में पैरेंट्स को चाहिए कि वह अपनी बेटी को ठीक से पढ़ाएं और उसे अपने पैरों पर खड़ा करें। यह बीमारी दवाओं से पूरी तरह नियंत्रित हो सकती है। शादी के बाद पैदा हुए बच्चे पर इसका असर नहीं होता।

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न्यूरो सर्जरी का इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ा

न्यूरोकॉन में आए नामी न्यूरो सर्जन डॉ। सुरेश दुगानी और डॉ। सुरेश सांखला ने बताया कि मौजूदा दौर में छोटे शहरों में दिमाग से जुड़ी बीमारियों को लेकर जागरुकता बढ़ी है। साथ ही ब्रेन की सर्जरी को लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर भी तेजी से बढ़ रहा है। न्यूरोकॉन के आर्गनाइजिंग सेकेट्री डॉ। विकास शुक्ला ने बताया कि आखिरी दिन मैक्स साकेत के न्यूरो सर्जन डॉ। वीके जैन को लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया।

Posted By: Inextlive