मोबाइल चोरों की 'प्राइवेट कंपनी'
- झारखंड के साहिबगंज में चल रहे हैं मोबाइल चोरी के ट्रेनिंग सेंटर, मोटी सैलरी पर ले जाते हैं गैंग
-कुटीर उद्योग बन गया है मोबाइल चोरी, कोतवाली में पकड़े गए मोबाइल चोरों से पूछताछ में खुलासाKANPUR : आपने कई तरह की कंपनियों, ट्रेनिंग सेंटर और जॉब के बारे में सुना होगा। लेकिन, मोबाइल चोरों के लिए ट्रेनिंग स्कूल और फिर मोटी सैलरी पर उनका कंपनी में अप्वाइंटमेंट के बारे में कभी सुना है। जी हां, झारखंड के साहिबगंज में मोबाइल चोरों की बाकायदा प्राइवेट कंपनी चल रही है। मोबाइल चोरी यहां कुटीर उद्योग की तरह है। मोबाइल चोरी के गैंग बकायदा मोटी सैलरी देकर नौकरी पर रखते हैं। लेकिन,नौकरी पर रखने से पहले इनकी कड़ी ट्रेनिंग भी होती है। जिसमें चोरी से लेकर पकड़े जाने पर बचने के गुर सिखाए जाते हैं। पिछले दिनों 25 लाख रुपए कीमत के 128 मोबाइल फोन के साथ पकड़े गए चोरों से पूछताछ में ये चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।
सुनकर उड़ गए होशकोतवाली पुलिस ने कुछ दिन पहले झारखंड के साहिबगंज के पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया था। इनमें से तीन नाबालिग थे। इनसे पूछताछ के बाद जो खुलासा हुआ वो सुनकर पुलिसकर्मियों के होश भी उड़ गए। पता चला है कि साहिबगंज के तालझारी का महराजपुर और तीन पहाड़ के बाबूपुर गांव से मोबाइल चोरी का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि देखते ही पूरे साहिबगंज में मोबाइल चोर ही पैदा हो गए। हालात ये हैं कि अब यह इंडस्ट्री का रूप ले चुका है।
महारथ से तय होता है वेतन -मोबाइल चोरी के कई ट्रेनिंग सेंटर महराजपुर में -यहां पूरे जिले से बच्चे ट्रेनिंग के लिए आते हैं -एक्सपर्ट सिखाते हैं मोबाइल कैसे पार करें। -कब, कहां और कैसे हाथ की सफाई दिखानी है -ट्रेनर तय करते हैं कि कौन कितना शार्प चोर है -इसी आधार पर उनका वेतन भी तय होता है -पूरे जिले में मोबाइल चोरी के दर्जनों गिरोह एक्टिव -तीन से दस लाख के पैकेज पर गैंग ले जाते हैं बच्चे बांग्लादेश में खपाए जा रहे मोबाइल आईएमईईआई नंबर के जरिए मोबाइल और उन्हें चुराने वाले पुलिस की पकड़ में न आएं, इसलिए चोरी के सोर मोबाइल फोन बांग्लादेश में खपाए जाते हैं। इसके लिए बकायदा पूरा सिस्टम बना हुआ है। चोरी किए गए मोबाइल एक गैंग के पहुंचते हैं और फिर सारे मोबाइल फोन बांग्लादेश बार्डर पर पहुंचाए जाते हैं जहां से वो सीमापार सप्लाई किए जाते हैं। गिरोह में हैं अधिकतर बच्चेगिरोह में अधिकतर 10 से 12 साल के बच्चे हैं। ऐसा इसलिए है ताकि बच्चों के पकड़े जाने के बाद कोई हंगामा न हो। अगर बच्चा पकड़ भी जाए तो बच्चों को लंबी सजा नहीं होती और वो जल्द छूट जाते हैं। बच्चों पर जल्दी कोई शक भी नहीं करता है। यही नहीं पकड़े जाने के बाद बच्चों को जमानत पर छुड़ाने का काम गिरोह के सरदार का ही होता है।
------------------------ साहिबगंज में मोबाइल चोरी कुटीर उद्योग की तरह से हैं। पूछताछ में आरोपियों से कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं। -संजीवकांत मिश्रा, कोतवाली प्रभारी।