मैं बिकरू... 'दुर्दांतÓ ने बना दिया कुख्यात
कानपुर (ब्यूरो) दो साल पहले बिकरू भी आम गांवों की तरह खुशहाल था। यहां भी 18 घंटे गलियों में चहल पहल रहती थी। सुबह रोज लोग काम पर जाते थे और शाम को गांव की चौपाल पर इकट्ठा होकर पूरे दिन की थकान मिटाते थे। मंदिर में आरती, भजन और मस्जिद मेें कुरान की आयत गूंजती थी। दोपहर में गांव के लड़के मेरी गोद में नीम के पेड़ के नीचे ताश खेलते थे। गंवई राजनीति भी मेरे ही आंचल के तले होती थी। गांव के विकास यानी डेवलपमेंट के प्लान भी बनाए जाते थे। मेरी जमीन पर लगे नीम के पेड़ के नीचे तमाम तरह के राज दफन हैैं। न जाने किसकी नजर लग गई कि मेरा रंग रूप ही बदल गया। 2 जुलाई 2020 की वह काली रात जिसने मुझे पूरे देश में कुख्यात कर दिया। वो रात आज भी मेरे जेहन में जिंदा है और उसका वजूद तब तक रहेगा जब तक मैैं हूं।
चारों ओर लाशें ही लाशें पड़ी थी
2 जुलाई 2020 की काली रात, आज भी मेरे जेहन में जिंदा है। गांव के बीच में रहने वाले दबंग दुर्दांत दुबे यानी विकास दुबे ने अंदर घुसने के आखिरी रास्ते पर जेसीबी मशीन लगवा दी थी। पुलिस की कुछ टीमें आईं और जेसीबी की वजह से बाहर ही रुक गईं। वहां से वे पैदल ही गांव में आने लगे। एक-एक कर कई पुलिसकर्मी दुर्दांत दुबे के घर के आस-पास पहुंच गए, वे कुछ कार्रवाई कर पाते, इससे पहले ही दुर्दांत दुबे ने अपने गैैंग के लोगों के साथ पुलिसकर्मियों पर चौतरफा फायरिंग कर दी। गोलियों से मेरा सीना छलनी हो गया, आंचल तार-तार हो गया। हर तरफ गाली गलौैज, गोलियों की आवाज और चीख पुकार मच गई। कुछ घंटे बाद ही फायरिंग की आवाज बंद हो गई और हर तरफ खून ही खून दिखाई देने लगा। चारों ओर लाशें ही लाशें पड़ी थी। कुएं के पास बने शौचालय से एक-एक कर पांच शव निकाले गए। एक पुलिस कर्मी का शव शौचालय के बाहर पड़ा था। जबकि सीओ देवेंद्र मिश्र का शव प्रेम चंद्र पांडेय के घर में खून से लथपथ पड़ा था। रात होते ही गोलियों की आवाज आज भी मेरे कानों में गूंजती है।