मौत के मुंह में ढकेल रहीं लगेज लदी बसें
कानपुर (ब्यूरो)। पुलिस और प्रशासन का दावा होता है कि आपकी जान और माल की सुरक्षा की जाएगी। लेकिन आए दिन होने वाली बस दुर्घटनाओं में तो कुछ और ही कहानी सामने आती है। यहां तो माल के चक्कर में यात्रियों की जान को भी खतरे में डाल दिया जाता है। वैसे तो इसके लगातार कई उदाहरण सामने आ रहे हैं, लेकिन ताजा मामले में गुरुवार को ही 16 यात्रियों की जान तब खतरे में पड़ गई जब माल से लदी ओवरलोड बस अनियंत्रित होकर पलट गई। शुक्र था कि किसी की जान नहीं गई, लेकिन बस में सवार ज्यादातर सवारियों के लिए यह मौत के मंजर से कम नहीं था।
सब कारोबारी ही थे
ये मिनी बस कारोबारियों के लिए ही थी। बलरामपुर और गोण्डा के कारोबारी इसी बस से आते हैैं और अपना सामान लेकर जाते हैैं। जिन कारोबारियों के पास समय की कमी होती है वे अपना ऑर्डर कानपुर में कारोबारियों को बुक करा देते हैैं और कानपुर का कारोबारी उचित साधनों से सामान को कोपरगंज में बस तक पहुंचा देता है। ये बस 10 घंटे में कारोबारियों का सामान उतारते हुए कानपुर से गोण्डा होते हुए बलरामपुर तक जाती है। थर्सडे को इस बस में गोण्डा के बर्तन कारोबारी गिरिजेश कुमार, मनकापुर के कपड़ा कारोबारी सिद्धार्थ कुमार, शाहपुर के मो। उमर, बलरामपुर के अवधेश कुमार, मो। समीर, मोइनुद्दीन, प्रिया, बैतुल्लाह, रामपुर निवासी सुरेंद्र कुमार, कलक्टरगंज निवासी राकेश, गोण्डा निवासी अशोक गौतम समेत 16 सवारियां थीं। इस बस का किराया रोडवेज बसों से कम था। रोडवेज में चेकिंग के दौरान सामान पकड़े जाने का खतरा होता है, लिहाजा कारोबारी इस बस का इस्तेमाल करते थे। रोडवेज बस, ट्रांसपोर्ट या दूसरे साधनों से सामान भेजने में ज्यादा रुपये लगते थे लिहाजा इस तरह की बसों का इस्तेमाल कारोबारी करते थे।
पुलिस ने इस मामले में बस मालिक और ड्राइवर के खिलाफ धारा 279 और 336 के तहत केस दर्ज किया। आईपीसी की धारा 279 के अंतर्गत रैश ड्राइविंग कर मानव जीवन को खतरे में डालना आता है या जीवन को खतरे में डालकर घायल करना। इसमें छह महीने की सजा या एक हजार जुर्माना या दोनों। वहीं आईपीसी की धारा 336 के अंतर्गत ऐसा कृत्य करना जिससे दूसरों की जीवन खतरे में पड़ जाए। सजा तीन महीने की जेल या 250 रुपये जुर्माना या दोनों।
पुलिस ने कहां किया खेल
अब आपको बताते हैैं कि पुलिस ने कहां खेल किया? पुलिस ने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत बस सीज कर दी। वहीं कमिश्नरेट की हाईटेक पुलिस हादसे के 24 घंटे बाद तक न तो बस मालिक का पता कर पाई और न ही ड्राइवर समेत बस के स्टॉफ का। अब आपको बता दें कि ये तब हुआ जब बस का मालिक थाने आया था (थाने में मौजूद यात्रियों के मुताबिक)। पुलिस ने न सिर्फ बस मालिक को बचाया बल्कि ड्राइवर समेत स्टॉफ को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। हालांकि थानाध्यक्ष कैण्ट कमलेश राय के अनुसार उन्होंने सख्त कार्रवाई की है। हाईकोर्ट के एडवोकेट संदीप शुक्ला की माने तो डेढ़ से दो घंटे रोड बंद रही। लॉ एंड ऑर्डर की परेशानी रही, पुलिस चाहे तो इसमें केस दर्ज कर सकती है।
पहले भी हो चुके हैैं हादसे लेकिन न
हीं जाग रहे जिम्मेदार
ये कोई पहला हादसा नहीं था, इससे पहले कानपुर देहात में दो और सचेंडी में तीन, घाटमपुर में दो हादसे हो चुके हैैं। महाराजपुर में भी हादसा हुआ है, लेकिन जिम्मेदार अभी तक आंखें बंद किए पड़े हैैं। किसी में केस नहीं दर्ज किया जाता है तो किसी में केस दर्ज करने के बाद धाराएं आरोपी के मन मुताबिक लगाई जाती हैैं और किसी में तो हादसे के बाद से निपटाने का मन थाना पुलिस बना लेती है। बताते चलें कि कई हादसों में लोगों की जान गई है तो कई में लोगों की जान पर बन आई है।
अब आपको बताते हैैं कि बस का स्टाफ कुल तीन लोगों का था। 16 सवारियों में छह लोग तगादा करने आए थे। प्रिया और अशोक रिश्तेदारी में आए थे। यानी कुल आठ लोग ऐसे थे जिनके पास अपना सामान था। लेकिन बस में जो माल लदा था वो देखकर कोई भी यह तो नहीं कहेगा कि ये इन आठ यात्रियों का पर्सनल लगेज था। हालांकि ऐसे केस में आरटीओ यह कहकर पल्ला झाडऩे की कोशिश करते हैं कि हम क्या जाने कि बस में पैसेंजर्स के पर्सनल लगेज थे या फिर कामर्शियल बुक होने वाला सामान।