डेढ़ साल बाद 'ट्यूब' से बाहर आया 'मार्स दल'
मॉस्को के संस्थान के सहयोग और यूरोपीयन स्पेस एजेंसी के प्रायोजन से 'मार्स 500' परियोजना के लिए यह छह लोग तीन जून 2010 से स्टील ट्यूब में बंद थे।
इस प्रोजेक्ट का मकसद यह पता लगाना है कि मंगल ग्रह के लिए लंबी अंतरिक्ष उड़ान के दौरान इंसान के शरीर और दिमाग़ पर क्या असर पड़ता है। छह लोगों के इस प्रयोग दल में तीन रूसी, दो यूरोपीय और एक चीनी नागरिक शामिल थे। शुक्रवार को ग्रीनिच मान समयानुसार दस बजे स्टील ट्यूब का दरवाज़ा खोला गया।मार्स 500इस दल को 17 महीने पहले 'इस यान रूपी ट्यूब' में बंद किया गया था जिसकी एक भी खिड़की या रौशनदान नहीं है और बाहरी दनिया से इन लोगों का संपर्क केवल ट्विटर, इमेल और विडियो ब्लॉग के ज़रिए था।उनके बाहरी दुनिया से संपर्क साधने में भी दूर अंतरिक्ष से संवाद के दौरान होने वाले समय के अंतराल को ध्यान में रखा गया। इस यान के अंदर अगर कोई सवाल पूछा जाता तो उसका जवाब 20-25 मिनट के अंतराल के बाद ही मिलता था।
दल के एक सदस्य डियेगो उर्बीना से जब बीबीसी ने ट्विटर के ज़रिए पूछा की लंबी अवधि के बाद बाहर आकर वह क्या करना चाहेंगें तो उनका जवाब था, "मैं अपने परिवार से मिलूंगा, दोस्तों से बातें करुँगा, अनजान लोगों से भी मिलूँगा और समुद्र तट पर सैर करुँगा."
सफल मिशनमंगल के सचमुच के मिशन के लिए ज़रूरी कई चीज़ों की नकल इस मिशन में नहीं की जा सकी जैसे अंतरिक्ष की विकिरण का ख़तरा और गुरुत्वाकर्षण के कमज़ोर पड़ने पर भारहीनता। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस मिशन को सफल बताया है और इससे जोड़े गए आंकड़ों को शोध में मददगार बताया है। अपनी इस प्रयोगात्मक यात्रा में दलकर्मियों ने कई प्रयोगों में हिस्सा लिया।लंबे समय तक एंकात में रहने का उनके दिलो-दिमाग पर असर को परखा गया। उनके हॉर्मोन स्तर को नापा गया और यह भी परखा गया कि उनको नींद कैसी आती है। साथ ही उनके मनोभाव में परिवर्तन का अध्ययन किया गया और यह भी जांचा गया कि उनके विशेष खाने का सेहत पर क्या असर पड़ रहा है।यूरोपीय स्पेस एजेंसी के डॉक्टर मार्टिन ज़ैल बताते हैं, "मैं उनके साहस और उत्साह की प्रशंसा करता हूं। उन्होंने एक लाजवाब टीम की तरह काम किया." इस मिशन के बाद अब अंतरिक्ष कक्षा में इसी तरह के प्रयोग की बात चलने लगी है।