एक समय था जब समय देखने के लिए लोगों के पास घड़ी नहीं हुआ करती थी. फिर भी लोगों को समय का पता चलता रहे और समय से वो काम पर पहुंचें इसलिए शहर में क्लॉक टॉवर लगाए गए. जिन्हें हम घंटाघर भी कहते हैं. इन क्लॉक टावर के घंटों को आवाज कई किलोमीटर दूर तक सुनाई देती थी और लोगों को समय का पता चल जाता था. शहर में सबसे पहला क्लॉक टॉवर लालइमली में 143 साल पहले बनाया गया था. घड़ी के साथ-साथ कानपुर के वक्त का पहिया घूमा और अपनी इंडस्ट्रीज के चलते शहर ईस्ट का मैनचेस्टर बन गया. लेकिनए एक समय ऐसा भी आया जब पूरी दुनिया में अपने वुलन कपड़ों से धूम मचाने वाली लाल इमली का भी समय बिगड़ा और मिल बंद हो गई. लेकिन इसकी ऐतिहासिक बिल्डिंग और इसका क्लॉक टावर हमेशा शहर का गोल्डन टाइम लोगों को बताता रहता है. लेकिन समय की विडम्बना देखिए कि पांच साल से क्लॉक टावर का समय ठहरा हुआ है और इसे फिर से शुरू करने के लिए किसी के पास समय नहीं है. मेंटिनेंस न होने घड़ी बंद पड़ी है.

कानपुर (ब्यूरो) अफसरों की अनदेखी की वजह से लाइ इमली क्लॉक टावर की घड़ी पिछले पांच सालों से थमी हुई है। इस क्लॉक को चलवाने के लिए कमिश्नर, नगर आयुक्त और मेयर की तरफ से भरपूर प्रयास किए गए, लेकिन आजतक इसे चलाने में कामयाबी हासिल नहीं हो सकी है। वहीं, दूसरी तरफ पिछले साल 1.17 करोड़ रुपए से लाल इमली पर फसाड लाइटिंग की गई थी, ऐसे में सवाल है कि जब इतनी मोटी रकम खर्च कर लाइटिंग हो सकती है तो फिर क्लॉक क्यों नहीं चल सकती है?

इसलिए खराब पड़ी घड़ी
लाल इमली मिल के प्रबंधक गौविन जोंस ने मिल के पूर्वी कोने पर ऊंची मीनार बनवाकर 1880 में क्लॉक लगवाई थी। खास बात ये है कि यह उन दिनों शहर का पहला क्लॉक टावर था। जिस वजह से लोगों में क्लॉक को लेकर काफी उत्साह था। क्योंकि इस घड़ी की सुई इंग्लैंड से मंगवाई गई थी। लगातार मेंटीनेंस की वजह से लगभग 138 साल तक यह क्लॉक कानपुराइट्स को अपना समय बताती रही है। वर्ष 2018 में लालइमली घंटाघर की घड़ी अचानक खराब हो गई। 2020 में इसे बनाने का काम शुरू हुआ, लेकिन पेंमेंट और लॉकडॉउन के कारण काम ठप हो गया। बताया गया कि सुई और ग्रेयर की खराबी की वजह से यह घड़ी पिछले पांच सालों से खराब पड़ी है।

मंजूरी न मिलने से रुका समय
शहर में मौजूद क्लॉक टावर की रिपेयरिंग के लिए लिए सिर्फ एक मैकेनिक डेविड मेसी हंै, जोकि सभी हिस्टोरिक क्लॉक को मिनटों में बनाने में माहिर है। पिछले दिनों बंद हुए रेलवे स्टेशन, बिजलीघर, कोतवाली, फूलबाग आदि जगह बने टावर की क्लॉक को इन्होंने ही ठीक किया है, लेकिन लाल इमली क्लॉक टॉवर को फिर चालू कराने में कोई भी अधिकारी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। हालांकि इस क्लॉक को चलाने के लिए कमिश्नर, नगर आयुक्त की तरफ से केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय कोलेटर भी लिख चुके हैं, लेकिन अभी तक मंजूरी न मिलने की वजह से काम अटका हुआ है।

एक नजर में जाने क्लॉक टावर की हिस्ट्री
- फूलबाग गांधी भवन (केईएम हॉल) क्लॉक टावर का निर्माण 1911 में हुआ था। जून 1912 में जैमन कोबोल ने इनॉग्रेशन किया।
- 1925 में कोतवाली क्लॉक टावर बनाने के लिए जनरल रॉबर्ट विंट ने घोषणा की। जुलाई 1929 को इस टावर का शुभारंभ हुआ।
-रेलवे स्टेशन घंटाघर क्लॉक टावर 1932 में बनाया गया। डिजाइन की वजह से इसकी तुलना दिल्ली की कुतुब मीनार से की जाती है।
-1931 में परेड बिजलीघर का क्लॉक टावर बनाया गया। इस टावर के निर्माण में 80 हजार का खर्च आया। यह 1932 में शुरू हो गया
-1934 में जेके उद्योग समूह ने अपने मुख्यालय में क्लॉक टावर बनवाया, जो वर्तमान में कमला टावर नाम से मशहूर है।


चल रहे हैं ये क्लॉक टावर (घंटाघर)
-फूलबाग गांधी भवन
-रेलवे स्टेशन घंटाघर
-कमला क्लॉक टावर
-कोतवाली टावर
-बिजलीघर टावर

क्या बोले डेविड
मैकेनिक डेविड मेसी ने बताया कि वर्ष 2018 से घड़ी खराब है। साल 2020 में इसे बनवाने का काम शुरू किया गया था, लेकिन लॉकडाउन और पेमेंट की वजह से काम ठप हो गया था। इसके बाद से यहां पर काम नहीं हो सका है। कमिश्नर, नगर आयुक्त भी इस घड़ी को चलवाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन टेक्सटाइल मिनिस्ट्री से मंजूरी न मिलने के कारण काम अटका पड़ा है।

Posted By: Inextlive