गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाने के लिए चार नालों के पानी को बॉयोरेमिडेशन किया जा रहा है. ताकि गंगा में दूषित पानी जाने से बचाया जा सके लेकिन इन दिनों बॉयोरेमिडेशन के नाम पर ठीक इसके उलट हो रहा है

कानपुर(ब्यूरो)। गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाने के लिए चार नालों के पानी को बॉयोरेमिडेशन किया जा रहा है। ताकि गंगा में दूषित पानी जाने से बचाया जा सके, लेकिन इन दिनों बॉयोरेमिडेशन के नाम पर ठीक इसके उलट हो रहा है। यह अपने मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है। इससे बचने के लिए नगर निगम अब दो घाट डबका और गोलाघाट पर अपनी खुद की लैब स्थापित करने जा रहा है। ताकि बॉयोरेमिडेशन के जरिए शोधित किए हुए पानी के मानकों की जांच हो सके, इसके बाद ही पानी को गंगा में छोड़ा जाएगा। नगर निगम अधिकारी का कहना है कि लैब को बनाने के लिए प्लान तैयार कर लिया गया है। जल्द ही इसे लेकर मीटिंग कर लैब को धरातल पर उतारने के लिए कार्ययोजना तैयार होगी।

3 साल से हो रहा बॉयोरेमिडेशन
नगर निगम के ऑफिसर्स के मुताबिक सिटी के अलग-अलग जगह 17 ऐसे नाले हैं, जो गंगा में सीधे गिरते हैं। इनमें से अब तक लगभग दस नालों को ही टैप किया गया है। जबकि दो आंशिक रूप से टैप किए गए हैं और वहीं पांच ऐसे नाले हैं, जो अभी भी अनटैप्ड हैं, इनमें डबका नाला, सत्ती चौरा, रानी घाट और गोला घाट शामिल है। वर्ष 2020 में आक्सीग्रीन टेक्नोलॉजी प्रा। लि। कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट कर इन नालों में बॉयोरेमिडेशन कराने का काम शुरू हुआ है। इसके लिए नगर निगम रोजाना लगभग 20 हजार रुपए और इस हिसाब से हर साल लगभग 75 लाख रुपए खर्च करता है। ताकि गंगा में दूषित पानी जाने से बचाया जा सके।

इसलिए बनाई जा रही लैब
पिछले दिनों यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने पाया कि यह बॉयोरेमिडेशन मानक के अनुरूप नहीं हो रहा है। जिसके बाद डीएम ने बॉयोरेमिडेशन से साफ हो रहे नालों का मुआयना किया। यहां खामियां और बायोरेमिडेशन मानक के अनुरुप नहीं मिलने पर नाराजगी जताई। डीएम के आदेश पर नगर निगम के पर्यावरण अभियंता आरके पाल व पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड अमित मिश्रा की ज्वाइंट टीम ने बॉयोरेमिडेशन से शोधित हो रहे कैंट में स्थित डबका नाला, सत्तीचौरा, गोला घाट और रानी घाट से शोधित पानी के सैम्पल लिए हैं। नगर निगम पर्यावरण अभियंता ने बताया कि सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से स्वीकृत लैब में टेस्ट के लिए नमूने भेजे गए है, लेकिन अब नगर निगम अपनी लेबोरेटरी बनाएगा, ताकि गंगा में दूषित पानी को जाने से बचाया जा सकेगा।

बायोरेमिडेशन में लापरवाही से पड़ा फर्क
- बायोरेमिडेशन के बाद भी फीकल कोलीफार्म (मल) जा रहा था गंगा में
- गंगा में बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड, केमिकल ऑक्सीजन डिमांड, टोटल डिसॉल्व सॉलिड का लेवल बढ़ रहा है

लैब बनने से मिलेगी राहत
- बायोरेमिडेशन की जांच कभी-कभी होती थी
- लैब बनने से रोजाना पानी की होगी जांच
- बॉयोरेमिडेशन करने वाली कंपनी का खेल पकड़ में आएगा
- जांच मानक के अनुरूप मिलने पर ही छोड़ा जाएगा पानी

नाला-----डेली डिस्चार्ज
रानीघाट --- 2.39 एमएलडी
गोलाघाट---1.79 एमएलडी
सत्ती चौरा-- 2.47 एमएलडी
डबका ---- 0.98 एमएलडी

ऐसे होता है बॉयोरेमिडेशन
- बॉयोरेमिडेशन टेक्नोलॉजी से दूषित पानी साफ होता है
- नालों में वेस्ट बहाने पर रोक लगाने के साथ ही पानी साफ हो जाता है
- इस टेक्नोलॉजी में घास और पौधों की जड़ों से बैक्टीरिया पैदा होते हैं
- टेक्नोलॉजी में केना घास समेत अन्य घास को नालों में लगाया जाता है
- बैक्टीरिया नालों में बहने वाली गंदगी को खाते हैं, सफाई भी होती है

ये भी जानिए
- 63 करोड़ की लागत से नालों को किया गया टेप
- 28 करोड़ रुपए सिर्फ सीसामऊ नाले को बंद करने पर हुए खर्च
- 14 करोड़ लीटर दूषित पानी को रोकने के लिए उठाया गया कदम
- 12 नालों को अब तक किया गया है टैप
- 05 नाले अभी भी अनटैप्ड
- 73 लाख रुपए बॉयोरेमिडेशन पर हर साल खर्च

&& बॉयोरेमिडेशन मानक के अनुरुप नहीं हो रहा है। नगर निगम को लेबोरेटरी स्थापित करने को कहा गया है। डबका नाला और गोलाघाट के पास लैब बनाया जाएगा, ताकि बॉयोरेमिडेशन के पानी को इस लैब में जांचा जा सके। इसके बाद ही शोधित पानी को गंगा में जाने दिया जाएगा।
अमित मिश्रा, रीजनल ऑफिसर, यूपीपीसीबी


गंगा में दूषित पानी को रोकने के लिए नालों के दूषित पानी का बॉयोरेमिडेशन किया जा रहा है, अब इसकी टेस्टिंग को लेकर लैब बनाने की कार्ययोजना तैयार की जा रही है।
शिवशरणप्पा जीएन, नगर आयुक्त

Posted By: Inextlive