एक हफ्ते कानपुराइट्स की 'रंग'बाजी
- पूरे देश में सिर्फ कानपुर में खेली जाती है 1 हफ्ते तक होली, हटिया से रंग बरसाते निकलता है रंगों का ठेला, सिटी में कई जगह मटकी फूटेगी
- 1942 में होली के दिन अंग्रेजों ने किया होली खेलने से मना, तब से आजादी के दीवानों की याद में अनुराधा नक्षत्र में खेली जाती है होली kanpur@inext.co.inKANPUR : पूरे देश में ट्यूजडे को होली का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा। कानपुर में भी आज से होली खेली जाएगी। लेकिन कानपुराइट्स का अंदाज पूरे देश से कुछ जुदा है। यहां एक दिन नहीं बल्कि 6-7 दिन तक रंग खेल कर पूरी 'रंग'बाजी की जाती है। इस ऐतिहासिक होली के पीछे स्वतंत्रता संग्राम की कहानी है। सन 1942 में हटिया में होली खेल रहे कुछ युवकों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था। इससे गुस्साए लोगों ने कोतवाली का घेराव कर लिया था। आखिर मजबूर होकर अंग्रेजी शासन ने गिरफ्तार युवकों को रिहा कर दिया। उस दिन अनुराधा नक्षत्र में फिर एक बार जम कर होली खेली गई थी। तभी से यह रंग पर्व गंगा मेला कहलाने लगा। इस बार गंगा मेला 15 मार्च को है।
सड़क पर उतर आए लोगबात सन 1942 की है, हटिया इलाके में कुछ युवकों के होली खेलने की सूचना पर अंग्रेज पुलिस मौके पर पहुंची। रंग खेलने वाले युवकों को रंग खेलने से मना किया, लेकिन वे लोग नहीं माने। इस पर अंग्रेजी पुलिस ने जागेश्वर त्रिवेदी, पं। मुंशीराम शर्मा, रघुबर दयाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामलाल गुप्त पार्षद, हामिद खां समेत कई लोगों को अरेस्ट कर कोतवाली में बंद कर दिया। इससे लोगों को गुस्सा बढ़ गया और विरोध शुरू हो गया जो देखते-देखते एक आंदोलन बन गया।
ऐसे निकला रंगों का ठेला इतिहासकारों के मुताबिक 8 दिन बाद अंग्रेजी हुकूमत ने घबराकर सभी लोगों को छोड़ दिया। यह रिहाई अनुराधा नक्षत्र के दिन हुई। होली के बाद अनुराधा नक्षत्र के दिन सभी के लिए उत्सव का दिन हो गया। इसी खुशी में हटिया से रंगों भरों ठेला निकाला गया और लोगों ने जमकर होली खेली। शाम को गंगा किनारे सरसैया घाट पर होली मेला का आयोजन किया गया। रंगों में आजादी की महकहटिया मेला के संयोजक ज्ञानेंद्र विश्नोई के मुताबिक आजादी के बाद अनुराधा नक्षत्र तक होली खेलने की एक पंरपरा बन गई, जो आज भी कायम है। हां, इसमें कुछ कमी जरूर आई है। लेकिन, हटिया में रंगोंत्सव का स्वरूप पहले से विशाल होता जा रहा है। आज भी इसमें आजादी की खुशबू आती है। पहले एक मैदान में होलिका जलाई जाती थी, एक जगह पर सैकड़ों लोग जमा होते थे और रंग खेलकर खुशियां मनाते थे। अब तो हर गली, चौराहे पर जलाई जाती है।