अपने बच्चों का पालन पोषण तो सभी माता-पिता कर लेते हैैं लेकिन जिससे कोई रिश्ता न हो उस अंजान नवजात को भी सीने से लगाकर मां की ममता देना और पालना कोई साधारण महिला नहीं कर सकती. ऊपर से जब वह कलेजे का टुकड़ा बन जाए तो उसके बेहतर भविष्य के लिए अपने से दूर कर देना. यशोदा बनकर लावारिस बच्चों को मां की ममता देकर पालने वाली राजकुमारी एक बार नहीं बल्कि कई बार ऐसा कर चुकी हैं. हैलट के बोल रोग विभाग की सिस्टर इनचार्ज राजकुमारी ऐसी ही मां हैं. जो किसी मजबूरी के कारण पैदा होते ही अपने बच्चे को छोड़ जाते हैं उसकी मां बनती हैं राजकुमारी.

कानपुर (ब्यूरो)। अपने बच्चों का पालन पोषण तो सभी माता-पिता कर लेते हैैं लेकिन जिससे कोई रिश्ता न हो, उस अंजान नवजात को भी सीने से लगाकर मां की ममता देना और पालना कोई साधारण महिला नहीं कर सकती। ऊपर से जब वह कलेजे का टुकड़ा बन जाए तो उसके बेहतर भविष्य के लिए अपने से दूर कर देना। यशोदा बनकर लावारिस बच्चों को मां की ममता देकर पालने वाली राजकुमारी एक बार नहीं बल्कि कई बार ऐसा कर चुकी हैं। हैलट के बोल रोग विभाग की सिस्टर इनचार्ज राजकुमारी ऐसी ही मां हैं। जो किसी मजबूरी के कारण पैदा होते ही अपने बच्चे को छोड़ जाते हैं उसकी मां बनती हैं राजकुमारी।
एसएनसीयू की सिस्टर इंचार्ज
राजकुमारी मूल रूप से पूर्वांचल के मऊ जिले की हैैं लेकिन पिता के साथ कानपुर आईं तो कानपुर की ही होकर रह गईं। वर्तमान में कल्याणपुर आवास विकास तीन में रिटायर्ड पति और निजी स्कूल में पढ़ाने वाली बेटी निकिता के साथ रह रही हैैं। बेटा दीपक इन्फोसिस में इंजीनियर है। 14 साल पहले कानपुर के हैलट अस्पताल में एसएनसीयू (सिक न्यू बार्न केयर यूनिट) बना तो वे इसकी इंचार्ज हो गईं। उसके बाद से ही लगातार सेवा कार्य के साथ ही संवेदनाओं से जुड़ गई हैैं।

इन्हें देखकर शुरू होता है दिन
राजकुमारी बताती हैं कि एसएनसीयू में साधारण बच्चों की तरह उन बच्चों का पालन पोषण भी किया जाता है, जिन नवजात को उनके माता पिता लावारिस हालत में छोड़ जाते हैैं। इन बच्चों को देखकर विभाग के सभी लोगों का दिन शुरू होता है और इनको देखकर ही रात शुरू होती है। इनकी बाल क्रियाओं और हाथ पैरों के मूवमेेंट व एकटक देखना हर किसी को अपना बना लेता है। वे और उनका स्टाफ सभी बच्चों को अपने बच्चों की तरह पालते हैैं। ड्यूटी से इतर उनकी हर जरूरत का ख्याल रखती हैं। कोई अपने हाथों से कपड़े सिलकर लाता है तो कोई दूध। इन बच्चों के चेहरे की मुस्कान हर टेंशन और थकान को दूर कर देती है।

जब जाते हैैं सबकी आंखों में आंसू छोड़ जाते हैं
राजकुमारी ने बताया कि कानूनी दृष्टिकोण से तीन महीने का होने के बाद बच्चे को अनाथालय को देना होता है। इसके बाद भी कुछ बच्चे जैसे अनमोल और सिया 9 महीने की उम्र पूरी होने पर अस्पताल से जब गए तो पूरे स्टाफ की आंखें नम थीं। ऐसा लगा कि जैसे कोई उनके बच्चे को छीनकर ले जा रहो। राजकुमारी ने बताया कि बच्चे जाने को तैयार तो नहीं होते हैं लेकिन उनकी भी कानूनी मजबूरी होती है।

बच्चों को जंगल और कूड़े में न फेंके
कुछ दिन पहले ही एक परिवार अपने बच्चे को जंगल में छोड़ गया था, जानकारी करने पर पता चला कि नौ बेटियां होने के बाद परिवार वालों ने ये घृणित काम किया था। परिवार फतेहपुर का था। जिसकी परवरिश आज कल बाल रोग के एसएनसीयू में हो रही है। राजकुमारी खरवार ने आई नेक्स्ट के माध्यम से लोगों से अपील की है कि बच्चों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाएं। न कि कूड़े और जंगल में। उन्होंने बताया कि इसके लिए उन्हें फंड नहीं मिलता है बल्कि कई तरह के इंजेक्शन और टीके अपनी जेब से लगाने पड़ते हैैं। उन्होंने कहा कि अगर ईश्वर ने आपको इस सुख के लायक समझा है तो इनका अनादर न करें।

Posted By: Inextlive