Kanpur News: 3 गुना बढ़ा वाहनों का लोड न जरूरी इंतजाम बढ़े न रोड
कानपुर (ब्यूरो)। डेवलपमेंट और फाइनेंशियल ग्रोथ सिर्फ देश और सोसाइटी की बात नहीं है, बल्कि हर इंसान अपनी लाइफ में यही चाहता है। सभी की इच्छा होती है कि उसका लिविंग स्टैैंडर्ड बढ़े। इस स्टैैंडर्ड को दिखाने के लिए व्हीकल भी एक बड़ा माध्यम है। निश्चित ही यह व्हीकल हमारे लिए आवश्यकता भी हैं, लेकिन जिस तरह से इनकी संख्या बढ़ती जा रही है, यह ट्रैफिक जाम का एक बड़ा कारण भी बन चुके हैं क्योंकि जिस रफ्तार से शहर में वाहनों की संख्या बढ़ी है, उसके मुकाबले रोड््स, फ्लाईओवर, अंडरपास और एलीवेटेड रोड्स निर्माण नहीं हुआ। एक दशक पूर्व से तुलना करें तो वाहनों की संख्या तीन गुना से ज्यादा हो चुकी है, लेकिन ट्रैफिक और एनक्रोचमेंट के कारण रोड्स सिकुड़ती जा रही हैं।
पापुलेशन के साथ बढ़ी डिमांड
दस वर्ष पहले 2012 में वाहनों की संख्या पर नजर डालें तो पाएंगे कि शहर में 5 लाख 80 हजार व्हीकल रजिस्टर्ड थे, जबकि वर्तमान में ये आंकड़ा 17 लाख तक पहुंच चुका है। इनमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाले वाहनों की संख्या भी काफी तेजी से बढ़ी है। क्योंकि पॉपुलेशन और शहर का दायरा बढऩे के साथ पब्लिक कन्वेंस की भी डिमांड बढ़ी। इसी के चलते जहां 2012 में सिर्फ 831 थ्री व्हीलर्स ऑटो टेम्पो थे, वहीं अब इनकी संख्या 9 हजार के पार कर गई है। कैब की संख्या 82 से 1580 पहुंच गई हैै। इसी तरह मोटर कैब की बात करें तो दस साल पहले इनकी संख्या 134 थी जो अब 4274 हो गई है। यानी सडक़ों पर दस गुना से ज्यादा पब्लिक ट्रांसपोर्ट बढ़ा है, जबकि इन्हें मैनेज करने का कोई खास इंतजाम नहीं किया गया है।
आज से दस साल पहले कारों की ग्रोथ बढऩा तो शुरू हो गई थी, लेकिन तब भी यह संख्या इतनी नहीं थी कि सडक़ों पर सैलाब दिखाई दे। शहर की मुख्य रोड्स पर इतना जाम भी नहीं लगता था। लेकिन अब करीब 3 लाख 25 हजार से ज्यादा कार हैं, जबकि 2012 में यह संख्या सिर्फ 83 हजार ही थी। इसी तरह बात बाइक की करें तो 2012 में जहां शहर में 4 लाख 57 हजार टू व्हीलर थे वहीं आज इनकी संख्या 14 लाख को पार कर गई है। जबकि इन्फ्रास्ट्राक्चर में ऐसा कोई खास बदलाव नहीं आया है जो कि इन कारों को सही स्पेस दे सके। इस तरह के हालात में तो सडक़ पर जाम तो लगेगा ही।
बढ़ती जा रहïीं बस और सिस्टम बेबस
शहर के अंदर चलने वाली बसों की संख्या अगर बढ़ती जाएगी तो निश्चित ही रोड पर ट्रैफिक भी ज्यादा बढ़ेगा। अगर बसों की बात करें तो सिटी के अंदर चलने वाली बसें इस समय एक हजार से अधिक हैं। इनमें से 212 सिटी बस हैं, जबकि 100 इलेक्ट्रिक बसें भी चल रही हैं। इसी तरह 90 बसें जेएनयूआरएम के तहत चल रही है। स्कूल बसों की बात करें तो कुल 146 बसें रजिस्टर्ड हैं। इसके साथ ही रोडवेज और टूरिस्ट बसों की संख्या में भी कई गुना का इजाफा हुआ है। इन बसों का दबाव झेलने के लिए शहर में रोड््स की चौड़ाई नहीं बढ़ पाई है।
ज्यादातर जाम चौराहों पर लगता है। आज भी परम्परागत टाइप के चौराहे ही डिजाइन हैं। स्मार्ट सिटी बन रही है ऐसे में चौराहे भी ऐसे हों, जहां ट्रैफिक पल झपकते ही पार हो जाए और जाम की स्थिति न बनें। हमें ट्रैफिक के मामले में एडवांस शहरों में इसके एग्जाम्पल लेने होंगे।
सुनील चौहान
पुलिसिंग की कमी दिखी
गाडिय़ों की संख्या बढ़ी है, लेकिन इसे ट्रैफिक के रूप में मैनेज करने के लिए पर्याप्त पुलिसिंग नहीं दिखती है। हर चौराहे पर पुलिस हो और फोकस इस बात पर हो कि किसी भी तरह से ट्रैफिक रुक न पाए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। जब तक ट्रैफिक पुलिस अपने काम पर फोकस नहीं करेगी तब तक प्रॉब्लम रहेगी ही।
योगेश बाजपेई