Kanpur News: जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में होगा मैक्युलर डिजनरेशन का ट्रीटमेंट
कानपुर (ब्यूरो)। आज के समय में मोबाइल जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। घर से लेकर ऑफिस तक हर कोई मोबाइल पर निर्भर हैं। मोबाइल ही नहीं लैपटॉप, कम्प्यूटर का भी इस्तेमाल भी अधिक होने लगा है। लेकिन आपको इस बात का शायद अंदाजा नहीं हैं कि इससे निकलने वाली रेज आपकी आंखों के लिए कितनी खतरनाक है। मोबाइल से निकलने वाली ब्लू लाइट के कारण आपको मैक्यूलर डिजनरेशन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन अब आंख के पर्दे की लाइलाज बीमारी मैक्युलर डिजनरेशन 'धीरे-धीरे आंखों की रोशनी धुंधलाने की बीमारीÓ के ट्रीटमेंट में स्टेम सेल से सफलता जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स को मिली है। ऐसे में अब मैक्युलर डिजनरेशन से पीडि़त पेशेंट्स का ट्रीटमेंट अब हैलट में ही हो सकेगा। उन्हें इलाज के लिए इधर-उधर नहीं भटकना होगा।
दिखना बंद हो जाताआमतौर पर मैक्यूलर डिजनरेशन की समस्या बुजुर्ग लोगों में देखने को मिलती थी लेकिन आज के समय में मोबाइल आदि से निकलने वाली ब्लू लाइट के कारण युवा भी तेजी से इस समस्या के शिकार हो रहे हैं। अंधेरे में मोबाइल चलाने का सबसे ज्यादा बुरा असर रेटिना पर पड़ता है। जब आप अंधेरे में कई घंटों तक मोबाइल चलाते रहते हैं तो एक समय के बाद आपको दिखना बंद हो जाता है।
दो साल से लगी थी टीम जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट के प्रो। डॉ। परवेज खान का कहना है कि उनको व उनकी टीम को एक बड़ी सफलता मिली है। रोग के ट्रीटमेंट में तीन तरह की स्टेम सेल का यूज किया गया। लेकिन नवजात की नाड़ में व्हार्टन जेली की स्टेम सेल से यह कामयाबी मिली है। जेनेटिक बीमारी हेरीडो मैक्युलर डिजनरेशन का कारगर उपचार तलाशने में आई डिपार्टमेंट के एक्सपर्ट डॉ। परवेज खान की अगुवाई में दो साल से टीम लगी हुई थी। कोई मेडिसिन और प्रचलित विधि के कारगर न होने पर स्टेम सेल विधि को ट्राई किया गया। प्रो। खान ने बताया कि पहले पेशेंट की अस्थि मज्जा की स्टेम सेल का यूज किया गया। जिसमें सफलता नहीं मिली। जिसके बाद नवजात बच्चे की नाड़ के रक्त में पाई जाने वाली स्टेम सेल का यूज किया गया। यह भी कारगर नहीं हुई।व्हार्टन जेली ने दिखाया असर
प्रोफेसर ने बताया कि इसके बाद नवजात की नाड़ की खून की नली के आसपास कुशन का काम करने वाली व्हार्टन जेली की स्टेम सेल ली गई। इसमें स्टेम सेल का यूज सफल रहा। पेशेंट की आंख के पर्दे में परिवर्तन देखने को मिला। आंख के पर्दे की कोशिकाएं स्वस्थ होने लगी। कोशिकाएं नष्ट होने की वजह से आंख का पर्दा पतला हो रहा था। यह फिर मोटा हो गया। आंख में स्टेम सेल डालने के छह माह के अंदर स्थिति में बदलाव देखने को मिला। उन्होंने बताया कि स्टेम सेल से यह बड़ी सफलता टीम को मिली हैं।
हर माह आते 15 से 20 पेशेंट जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट के प्रो। परवेज खान ने बताया कि ओपीडी में हर माह 15 से 20 पेशेंट मैस्कुलर डिजनरेशन बीमारी से ग्रसित होकर आते हैं। अभी तक यहां पर इसका कोई सफल ट्रीटमेंट नहीं था। स्टेम सेल ट्रीटमेंट में सफलता मिलने से एक उम्मीद की किरन उन पेशेंट में जागी है जो इस बीमारी से ग्रसित है। जिनको अब इस लाइलाज बीमारी का दर्द नहीं झेलना पड़ेगा। क्या है मैक्यूलर डिजनरेशन?
मैक्यूलर डिजनरेशन को साधारण भाषा में समझा जाए तो जिस तरह कैमरे में मौजूद फिल्म पर तस्वीर बनती है ठीक उसी तरह से हमारी आंखों के रेटिना में तस्वीर बनती है। अगर रेटिना खराब हो जाए तो आंखों की रोशनी जा सकती है। इस बीमारी में मैक्यूल (रेटिना के बीच के भाग में) असामान्य ब्लड वैसेल्स बनने लगते हैं जिससे केंद्रीय दृष्टि प्रभावित होती है। मैक्यूला के क्षतिग्रस्त होने पर इसे दोबारा ठीक करना मुमकिन नहीं है।
आंखों को हेल्दी रखने का उपाय
अपना मोबाइल चलाते समय अपनी पलकों को जरूर झपकाएं ताकि आंखों को ड्राईनेस की समस्या का सामना ना करना पड़े।
आमतौर पर व्यक्ति मोबाइल का इस्तेमाल करीब 8 इंच की दूरी से करता है। लेकिन कोशिश करें कि इससे ज्यादा दूरी पर आपका मोबाइल हो।
मोबाइल चलाते समय ऐसा चश्मा पहनें जो खरतनाक ब्लू लाइट से आंखों का सीधा संपर्क होने से रोक सकता हो।
अगर आप रात के समय मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे तो लाइट जलाकर करें।