शहर में बिठूर से सरसैया घाटगंगा किनारे वाले इलाके को कटरी नाम से जाना जाता है. कटरी वह इलाका वह हैैं जहां सिटी जैसी फैसिलिटीज नहीं हैैं. सूरज ढलते ही घरों को रोशन करने के लिए ओल्ड ट्रेडिशनल लालटेन मोमबत्ती और दिये का सहारा लेना पड़ता है. हालांकि अब यहां बिजली के तार पहुंच चुके हैैं. लेकिन ट्रेडिशनल रोशनी के साधन अभी भी अपनी जगह पर काबिज हैैं.

कानपुर (ब्यूरो)। शहर में बिठूर से सरसैया घाटगंगा किनारे वाले इलाके को कटरी नाम से जाना जाता है। कटरी वह इलाका वह हैैं, जहां सिटी जैसी फैसिलिटीज नहीं हैैं। सूरज ढलते ही घरों को रोशन करने के लिए ओल्ड ट्रेडिशनल लालटेन, मोमबत्ती और दिये का सहारा लेना पड़ता है। हालांकि अब यहां बिजली के तार पहुंच चुके हैैं। लेकिन ट्रेडिशनल रोशनी के साधन अभी भी अपनी जगह पर काबिज हैैं। ऐसे में उस इलाके के बच्चों को एजुकेट करने का जिम्मा एजुकेशन सेक्टर से जुड़े कुछ विद्धानों ने अपने कंधों पर उठा रखा है। एक नई राह फाउंडेशन गंगा नौ सालों से गंगा के उस पार शिक्षा की अलख जगाए हुए है। यहां गंगा के घाट पर डेली दो घंटे क्लास चलती है। चौंकाने वाली बात यह है कि यहां पर बच्चे नाव से आते जाते हैं।

हाथों में कलम और पन्नों पर भविष्य की इबारत
आनंदेश्वर मंदिर परमट पर गंगा किनारे कमलेश्वर घाट पर डेली एक क्लास लगती है, जिसमें कटरी क्षेत्र के बच्चे शामिल होते हैैं। हाथों में कलम लेकर कॉपी के पन्नों पर लिखते अपने भविष्य की इबारत लिखते इन बच्चों पर सभी की नजर एक बार जाती जरूर है। यह क्लास एक नई राह फाउंडेशन की ओर से संचालित की जाती है। फाउंडेशन के जरिए सिटी के जाने माने एजुकेशनिस्ट गंगा पार रहने वाले निषाद समाज के बच्चों को शिक्षित करने और उनमें कल्चरल वैल्यूज डेवलप करने का काम कर रहे हैैं।

इनकी लीडरशिप में लगती है क्लास
डीसी लॉ कालेज की पूर्व प्रिंसिपल और सीएसजेएमयू में फैकल्टी आफ लॉ की डीन रह चुकी डा। नंदिनी उपाध्याय बतौर अध्यक्ष इस फाउंडेशन की कमान को संभाले हुए हैैं। इनके अलावा कान्यकुब्ज पब्लिक स्कूल, मालरोड की प्रिंसिपल पूजा सहगल बतौर वाइस प्रिंसिपल और लॉ की पढ़ाई पूरी कर चुके नितिन कुमार सेक्रेटरी पोस्ट पर इस फाउंडेशन में लीड रोड प्ले कर रहे हैैं। ये तीनों और उनकी टीम परमट के पास गंगा के तट पर डेली 224 बच्चों को पढ़ाई के साथ खेल खेल में नाटक मंचन, प्रतियोगिता व प्रश्नोत्तरी, रंगोली, चित्रकला सहित अन्य रचनात्मक गतिविधियों के जरिये महापुरुषों की जीवनी, देश की संस्कृति और भारत के उत्थान से संबंधित विषयों के बारे में संवाद व प्रतियोगिताओं के माध्यम से अवगत कराते हैं।

कभी लिख नहीं पाते थे, आज दे रहे एजुकेशन
डा। नंदिनी बताती हैं कि बच्चों को आनलाइन एजुकेशन देने के लिए कंप्यूटर भी खरीदे गए हैं। इससे बच्चों को आनलाइन पढ़ाई लगातार जारी रखने में मदद मिल रही है। कभी नाम न लिख पाने वाली गल्र्स आज ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के साथ घाट वाला स्कूल में पढ़ाकर श्रमदान कर रही हैं। कहा कि भारत दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। विरासत के संरक्षण में योगदान देना प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। इसी भाव से बच्चों को पढ़ाने का काम किया जा रहा है।

फ्री में चलती है क्लास
घाट वाला स्कूल में टीचर की भूमिका निभा रहे नितिन ने बताया कि इस समय दो सौ से ज्यादा जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं। जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में बेहतर शिक्षा व अन्य सुविधाएं हासिल हो सकें इसके लिए साल 2015 में &एक नई राह फाउंडेशन&य नाम से एक एनजीओ की शुरुआत की गई। इसी एनजीओ के तहत ही इस खास कोचिंग सेंटर का संचालन किया जा रहा है।

नाव से आते और जाते हैैं बच्चे
एनजीओ की वाइस प्रेसिडेंट पूजा सहगल ने बताया कि शुरूआती दिनों में कटरी से आने वाले बच्चों को रोड से काफी दूर से घूमकर आना पड़ता था। बच्चों के पास किराया तक न होने से ट्रांसपोर्ट में समस्या आ रही थी, इसलिए डा। नंदिनी उपाध्याय और नितिन के सहयोग से बच्चों के लिए नाव खरीदी गई। रोज शाम चार से छह बजे के बीच नाव के जरिये बच्चे घाट वाला स्कूल में पहुंचते हैं।

Posted By: Inextlive