Kanpur News: बुक्स नहीं पढ़ते, सिर्फ वीडियो देखते, मतलब आप दिमाग यूज ही नहीं करते
कानपुर (ब्यूरो)। आजकल के बच्चे कहते हैैं कि हम तो बुक्स नहीं पढ़ते केवल वीडियोज देखते हैैं। इसका मतलब है कि आप अपना दिमाग यूज ही नहीं करते। मेरे पास कार है मैैं पैदल क्यों चलूं। पैदल न चलने से आप बीमारियों के शिकार हो जाएंगे। उसी तरह दिमाग का यूज न करने से दिमाग खराब हो जाएगा। बुक्स पढऩे से आपके सामने सीन क्रिएट होता है, जोकि वीडियो में नहीं होता। यह बातें जाने माने राइटर चेतन भगत ने कहीं। वह एक टॉक शो के लिए कानपुर आए तो दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के साथ खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने यूथ से जुड़े कई सवालों का बेबाकी से जवाब दिया।
बड़ी कंपनियां वीडियो से खींच रहीं ध्यानचेतन भगत ने कहा कि यूथ कुछ नहीं पढ़ रहा है। बहुत सारे वीडियोज आ गए हैैं, आपका ध्यान खींचने के लिए। बड़ी-बड़ी कंपनियां आपका ध्यान खींचने में लगी हैैं। इनका एक ही उद्देश्य है कि आपका ध्यान खींचकर रखें। बदले में एड दिखाकर कमाई करती है। इससे दिमाग डिस्ट्रैक्टेड रहता और आप बहुत सारी जरूरी चीजें नहीं कर पाते हैैं।
सेल्फ रेगूलेशन सीखना होगारीडिंग और स्पोट्र्स कम हो रहा है। न्यू जेनरेशन दिमाग यूज नहीं करना चाहती। ऐसे में कहां से हम विकसित भारत बनेंगे। जब दिमाग ही विकसित नहीं है। रील्स से बाहर ही निकल नहीं पा रहे है। अपनी जिंदगी बर्बाद करना इल्लीगल तो नहीं है, इसलिए करेे जा रहे हैैं। पढ़ाई बर्बाद हो रही, फिटनेस छोड़ रहे। घर में चार किलो चीनी पड़ी, इसका मतलब यह नहीं की खाते ही रहेंगे। बच्चों को सेल्फ रेगूलेशन सीखना होगा।
पेरेंट्स बुक्स पढ़ेंगे तो बच्चे भी पढ़ेंगे पढऩा कैसे रेगूलर हो इस सवाल पर चेतन भगत ने कहा कि घर मेें कल्चर बने की मां और बाप बुक पढ़ें। बच्चे वही करते हैैं जो उनके मां बाप करते हैैं। बुक्स पढऩे से ही डॉक्टर, इंजीनियर और साइंटिस्ट बनते हैैं। अगर वीडियो ही देखते रहे और बुक्स न पढ़ीं तो ऐसा समाज बन जाएगा, जिसमें ऐसे लोग होंगे जिन्होंने कभी दिमाग लगाया ही नहीं। फिर देश नौकर ही बनकर रह जाएगा। राइटिंग और रीडिंग बहुत अच्छे काम हैैं। इनको करने से कभी किसी को नुकसान हुआ ही नहीं है। किताब लिखते वक्त नहीं सोचता कि फिल्म बन जाएगीआपकी पांच बुक्स पर अभी फिल्में बनाई जा चुकी हैं। क्या आप बुक लिखते समय ही ऐसी स्टोरी लिखते हैैं जो कि फिल्म बन जाए। इस सवाल पर चेतन ने कहा कि अगर बुक्स लिखते समय नहीं सोचता कि यह फिल्म बने। लेकिन अब बन जाए तो बेहतर है।
स्टूडेंट्स का सुसाइड करना सोसायटी का फेल्योर चेतन भगत ने कहा कि जब भी कोई बच्चा सुसाइड जैसा कदम उठाता है तो यह दुख की बात है। कोटा में हो या कहीं भी हो यह होते ही रहते हैैं। उसमें कहीं न कहीं मुझे लगता है कि बच्चे का नहीं सोसाएटी का फेलियर है। हमारी युवा पीढ़ी, जिसको फ्यूचर के लिए होपफुल होना चाहिए वह होपलेस हो गई है। इसका मतलब की सोसायटी ने कुछ ऐसा दिया है कि एग्जाम क्लियर करो, नहीं तो जिंदगी जीने लायक ही नहीं है। मेरा कहना है कि एक एग्जाम में नहीं हुआ तो कोई न कोई रास्ता निकल सकता है। आप खुश रह सकते हो। कहीं न कहीं बच्चों पर बहुत प्रेशर डाल देते हैैं जो कि फेयर नहीं है।