मैैं तो चला था अकेले ही मंजिले जानिब मगर लोग मिलते गए कारवां बढ़ता गया. मजरूम सुल्तानपुरी की ये लाइनें बर्रा निवासी आशुतोष बाजपेई पर बिल्कुल फिट बैठती हैं. दरअसल जेल के बंदियों और कैदियों में फैल रही बीमारियों को देख 2017 में आशुतोष बाजपेई के मन में एक टीस सी उठी. उन्होंने अपने भाई योगेश से इस पर चर्चा की.

कानपुर (ब्यूरो)। मैैं तो चला था अकेले ही मंजिले जानिब मगर लोग मिलते गए कारवां बढ़ता गया। मजरूम सुल्तानपुरी की ये लाइनें बर्रा निवासी आशुतोष बाजपेई पर बिल्कुल फिट बैठती हैं। दरअसल, जेल के बंदियों और कैदियों में फैल रही बीमारियों को देख 2017 में आशुतोष बाजपेई के मन में एक टीस सी उठी। उन्होंने अपने भाई योगेश से इस पर चर्चा की। सोचा कि कोई ऐसा काम किया जाए जिससे ऐसे वर्ग की हेल्प हो जाए जिस तरफ कोई देखना भी पसंद नहीं करता है। तय किया गया कि काम शुरू करते हैैं जेल, राजकीय बाल सुधार गृह और महिला संवासिनी गृह से। होमवर्क किया तो पहले टास्क कठिन लगा लेकिन उनके मजबूत इरादों के सामने हर मुश्किल आसान हो गई।

100 से ज्यादा लोग संस्था में
दो भाइयों ने संस्था अपराध मुक्त सामाजिक चिकित्सा समिति बनाई और लोगों को जोडऩा शुरू कर दिया। सात साल की कठिन तपस्या और समाज सेवा की भावना लेकर लोगों को जोड़ा तो आज इस संस्था में 100 लोग हैैं। इस संस्था के चेयरमैन आशुतोष बाजपेई को यूपी सरकार के डिप्टी सीएम ने बेस्ट चेयरमैन का अवार्ड भी दिया है।

125 बंदियों को कराया रिहा
आशुतोष बताते हैैं कि उन्होंने यूपी के तमाम जेलों में न सिर्फ मेडिकल कैंप लगवाए बल्कि अपने भाई योगेश बाजपेई और समिति के साथियों के साथ मिलकर 125 बंदियों की जुर्माने की राशि भी जमा कराई, जिसके बाद वे अपने-अपने घरों में खुशी से रह रहे हैैं। कानपुर नगर और कानपुर देहात में 60 से ज्यादा कैंप लगाकर न सिर्फ लोगों की महंगी जांच मशीनों से कराई बल्कि कारागार के बंदियों के तमाम तरह की मेडिसिन भी उपलब्ध कराई।


यूपी की तमाम जेलों में काम
समिति के चेयरमैन योगेश बाजपेई ने बताया कि मेरठ। कानपुर नगर, कानपुर देहात, बुलंदशहर, फतेहगढ़, फर्रुखाबाद और फतेहपुर समेत तमाम जिलों की जेल में वे अपनी समिति के साथ काम कर रहे हैैं। वे चिकित्सा शिविर लगाते हैैं, जेल पहुंचे क्रिमिनल्स का मेंटल स्टेटस बदलने के लिए मानसिक शिविर भी लगाते हैैं।

लाइब्रेरी भी बनवा रहे
अपराधियों का मन क्राइम से हटकर अध्यात्म की ओर लगे, इसके लिए आध्यात्मिक शिविर लगाते हैैं। योगा के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करते हैैं। इससे हटकर जेल में शिक्षा की अलख जगाने के लिए लाइब्रेरी भी बनाने का काम कर रहे हैैं। उन्होंने बताया कि समिति जेल से छूटे बंदियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भी प्रयासरत है। जेलों में सीखी स्किल्स का बेहतर उपयोग कर रहे हैैं। उन्होंने बताया कि जेल से छूटे बंदियों को क्राइम छोडऩे के लिए भी शपथ दिलाई जाती है।

Posted By: Inextlive