शहर की सुरक्षा में तैनात पुलिस कर्मियों को भी सुरक्षा की दरकार है. ये हम नहीं बल्कि पुलिसकर्मी खुद कह रहे हैैं क्योंकि बारिश शुरू होते ही इनके घरों की छतें टपकने लगी हैं. छत का प्लास्टर टूटकर गिर रहा है जिससे हादसे की आशंका बनी हुई है. कई दशक पहले बनाए गए पुलिस आवास अब जर्जर हो गए हैैं. लेकिन कोई भी इनकी सुध लेने वाला नहीं है. कर्नलगंज कलक्टरगंज और किदवई नगर समेत कुछ थाने तो ऐसे हैैं जो किराए की बिल्डिंग में चल रहे हैैं. यहां सिपाहियों के लिए बैरिक तक नहीं है. पुलिस कर्मियों ने बताया कि शिकायत के लिए आने वालों को चोट न लगे इसलिए उन्हें बाहर नए बने टीनशेड में बिठाते हैैं.

कानपुर (ब्यूरो)। शहर की सुरक्षा में तैनात पुलिस कर्मियों को भी सुरक्षा की दरकार है। ये हम नहीं बल्कि पुलिसकर्मी खुद कह रहे हैैं, क्योंकि बारिश शुरू होते ही इनके घरों की छतें टपकने लगी हैं। छत का प्लास्टर टूटकर गिर रहा है जिससे हादसे की आशंका बनी हुई है। कई दशक पहले बनाए गए पुलिस आवास अब जर्जर हो गए हैैं। लेकिन कोई भी इनकी सुध लेने वाला नहीं है। कर्नलगंज, कलक्टरगंज और किदवई नगर समेत कुछ थाने तो ऐसे हैैं जो किराए की बिल्डिंग में चल रहे हैैं। यहां सिपाहियों के लिए बैरिक तक नहीं है। पुलिस कर्मियों ने बताया कि शिकायत के लिए आने वालों को चोट न लगे, इसलिए उन्हें बाहर नए बने टीनशेड में बिठाते हैैं।

कहीं दिखती सरिया तो कहीं टूटी पड़ी नालियां

कानपुर कमिश्नरेट में ट्रैफिक पुलिस लाइन, पुलिस लाइन, महिला थाने के सामने, कलक्ट्रेट परिसर में और कुछ बड़े थानों में आवास बनाए गए हैैं। जहां पुलिस के परिवार रहते हैैं, हालांकि 1600 में से 109 आवासों पर उन पुलिस कर्मियों ने कब्जा कर रखा है जिनका ट्रांसफर शहर के बाहर कई महीने पहले हो चुका है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से शहर के कुछ पुलिस कर्मियों ने अपनी ये समस्या साझा की। उन्होंने बताया कि मच्छरों की वजह से उनके घर में कोई न कोई बीमार ही बना रहता है। गंदगी इतनी ज्यादा कि बदबू की वजह से घर से निकलना मुश्किल हो गया है। सफाई कर्मी आते नहीं हैैं, अपने हाथ से सफाई करनी पड़ती है।


हर साल आता है मेंिटनेंस के लिए रुपये

विभाग के विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि हर साल आवास के मेंटिनेंस के लिए रुपये आते हैैं, लेकिन ये रुपये कर्मचारियों के आवास की जगह अधिकारियों के बंगले की मरम्मत और पेंटिंग में लगते हैैं, जिसकी वजह से आवास की हालत जस की तस बनी हुई है। फेस्टिवल टाइम में अपने रुपये से व्हाइटवॉश कराते हैैं। ऊपरी मंजिल पर बने हुए आवासों में बारिश के मौसम में रुकना मुश्किल होता है। छत टूटी होने की वजह से पानी टपकता है और लोग जाग कर रात काटते हैैं। वहीं ग्राउंड फ्लोर पर बने आवासों में जलभराव की वजह से लोगों का रहना मुश्किल हो जाता है। छोटे बच्चों को कीड़े मकोड़ों का डर बना रहता है।

नए थानों के पास अपने भवन भी नहीं
बीते दिनों कुछ रिमोट थाने बनाए गए। सेन पश्चिम पारा, साढ़, हनुमंत विहार, गुजैनी समेत पांच थाने थे। इन थानों के पास अपने भवन तक नहीं है। ये थाने किराए के भवन में चलते हैैं, जो पूरी तरह से असुरक्षित है। इन थानों की आर्मरी और रिकॉर्ड रूम पड़ोस के थानों में हैैं। किसी तरह से वायरलेस सेट का काम शुरू किया गया है। न ही यहां पुरुषों की हवालात है न ही महिलाओं की। अब उन थानों के नाम भी जानिए जो किराए के भवन में चल रहे हैैं। यहां काम करने वाले पुलिस कर्मियों को ड्यूटी समाप्त कर किराए के घरों में रहने जाता होता है। इन थानों में पुलिस कर्मियों के रहने के लिए बैरिक तो दूर टॉयलेट भी सुरक्षित नहीं बनाया गया है।

अंग्रेजों के भवन और किराए पर चल रहे थाने
शहर में कुछ थानों की तो अपनी बिल्डिंग बन चुकी है, बर्रा, नौबस्ता, बादशाहीनाका समेत पांच थाने अपनी बिल्डिंग में बना दिए गए हैैं। वहीं गोविंद नगर, कर्नलगंज, कलक्टरगंज, घाटमपुर, हरबंश मोहाल समेत आधा दर्जन से ज्यादा थाने अंग्रेजों के समय के बने जर्जर भवनों में चल रहे हैैं। वहीं कुछ थाने किराए के भवन में चल रहे हैैं।

Posted By: Inextlive