जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की मानसिक रोग ओपीडी में इस समय भूलने की बीमारी से पीडि़त मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. मनोचिकित्सकों की माने तो मानसिक तनाव टेंशन और स्ट्रेस थोड़ा बहुत सभी को होता है लेकिन जब यह ज्यादा हो जाता है तो इससे गंभीर मानसिक और शरीरिक नुकसान होने लगते हैं.


कानपुर (ब्यूरो)। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की मानसिक रोग ओपीडी में इस समय भूलने की बीमारी से पीडि़त मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। मनोचिकित्सकों की माने तो मानसिक तनाव, टेंशन और स्ट्रेस थोड़ा बहुत सभी को होता है, लेकिन जब यह ज्यादा हो जाता है तो इससे गंभीर मानसिक और शरीरिक नुकसान होने लगते हैं।

एक रिसर्च में सामने आया है कि दिमाग का यह हिस्सा जो चीजों को याद रखने का काम करता है। वह सिकुड़ता जा रहा है। इसे मेडिकल भाषा में हिपोकैंपस कहते हैं। यह समस्या यंग एज में ज्यादा पाई जा रही है। इससे भूलने जैसी बीमारियां भी हो रही है। भागदौड़ से सभी परेशान


हैलट अस्पताल के मानसिक रोग डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो। धनंजय चौधरी बताते है कि भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई परेशान है। किसी को परिवार को किसी को शादी व कैरियर बनाने की चिंता है। इन सब चीजों से यंगस्टर्स अधिक परेशान है। एक समय पर व्यक्ति के दिमाग में कई सारी चीजें चलती रहती है। ऐसे में जब वह किसी से बात करता है तो उसका दिमाग कही और दिल कही और रहता है। ऐसी स्थिति में वह जो बात कही होती है कुछ घंटे या दिन में उसे भूल जाता है।

बे्रन के सेल्स हुए डेथ

इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसमें 25 परसेंट मामलों में अर्ली डिमेंसिया जैसे केस है। इनमें ब्रेन के कुछ सेल्स डेथ करने लग जाते है। जिससे भूलने की समस्या बढऩे लगती है। वैसे तो यह बीमारी 60 के बाद की उम्र में अभी तक होती थी लेकिन अब यह बीमारी 35 से 50 उम्र के लोगों में भी देखने को मिल रही हैं। हिपोकैंपस सिकुड़ रहा डॉ। चौधरी बताते है कि चार साल पहले डिप्रेशन में रहने वाले 70 मरीजों पर एक रिसर्च किया गया था। जिसका मकसद यह देखना था कि कितने प्रतिशत लोग तनाव में है। यह दिमाग पर कया असर करता है। करीब डेढ़ साल तक चले इस रिसर्च के नतीजे बेहद चौकाने वाले थे। रिसर्च में यह सामने आया कि उन मरीजों में 30 प्रतिशत ऐसे मरीज है। जिनका तनाव की वजह से हिपोकैंपस सिकुड़ता जा रहा है। अब यह आंकड़े और ज्यादा बढ़ गए हैं। हिपोकैंपस की माप
इस रिसर्च में सभी मरीजों के दिमाग का एमआरआई किया गया। इसके बाद उनके हिपोकैंपस को नापा गया। जिन लोगों में तनाव न के बराबर था। उनका हिपोकैंपस का साइज सामान्य था और जिन्हे तनाव था। उनका हिपोकैंपस सिकुड़ चुका था। इसकी वजह से ही यंग एज में उनको भूलने की बीमारी हो रही है। अकेलापन है कारण साइकोलॉजिस्ट बताते है कि बहुत से लोग ऐसे है जो हर वक्त उदास रहते हैं। इस उदासी का कारण कुछ भी हो सकता है। इसके साथ जो लोग अकेले रहते है या परिवार में होते हुए भी केवल मोबाइल में बीजी रहते है और किसी से बात नहीं करते, उनमें भी तनाव का स्तर काफी संख्या में देखा जा रहा है। इसके साथ ही नकारात्मक विचार, चिड़चिड़ा होने से भी तनाव का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे करें बचाव तनाव दूर करने के लिए अहम बात यह है कि दिल और दिमाग में यदि बात आती है तो उसे लोगों के साथ शेयर किया जाए। यदि शेयर नहीं करना चाहते तो कोई एक व्यक्ति ऐसा होना चाहिए। जिस पर आपको विश्वास हो और अपनी बाते शेयर कर सकें। इसके साथ ही योग, मॉटीवेशन और एक्सरसाइज का भी सहारा लेना चाहिए। आंकड़े - 120 से 150 पेशेंट डेली ओपीडी में आते - 15 परसेंट मरीज भूलने की बीमारी बताते - 80 परसेंट से अधिक भूलने की बीमारी वाले मरीजों में यूथ होते हैं
- 35 से 50 के बीच में भी अब यह बीमारी देखने को मिल रहा है --------------------------नींद न आना, उदास रहना या फिर दिमाग स्थिर न रहने की समस्या हो तो साइकोलॉजिस्ट से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। क्योंकि यह बीमारी आगे आपके लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है। इससे बचने के लिए खुश रहे, योगा करने के साथ बाहर घूमने जाए। जिससे माइंड फ्रेश रहेगा। प्रो। धनंजय चौधरी, एचओडी, मानसिक रोग विभाग, हैलट अस्पताल

Posted By: Inextlive