सभासद से शुरू, सांसद के बाद मंत्री से खत्म हुआ सफर
- कमलरानी वरुण 1989 में पहली बार सभासद बनीं फिर 1996 और 1998 में दो बार घाटमपुर लोकसभा क्षेत्र से जीतकर संसद पहुंचीं
- 2004 में चुनाव हारने के बाद 8 साल तक राजनीति से दूर रहीं, 2017 में घाटमपुर सीट से जीता विधायक का चुनाव, कैबिनेट मंत्री बनीं KANPUR : बूथ में पर्ची काटने के साथ राजनीति के क्षेत्र में शुरुआत करने वाली कमल रानी वरुण सभासद से सांसद तक चुनी गईं। एक बार नहीं बल्कि दो बार सांसद रहीं। तीसरा चुनाव भी मात्र 500 वोट से हार गईं। इसके बाद 2017 में विधानसभा का चुनाव जीत कर प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा मंत्री भी बनीं। जिस वक्त कमल रानी वरुण ने राजनीति में प्रवेश किया उस वक्त राजनीति में महिलाओं की संख्या काफी कम थी। खासकर भारतीय जनता पार्टी में महिला नेतृत्व की बहुत कमी थी। 1977 में इमरजेंसी के बादविवाह के पूर्व कमल रानी वरुण राजनीति में नहीं थीं। 1975 में विवाह होकर लखनऊ से कानपुर के द्वारिकापुरी बाजार में ससुराल आईं। ससुराल में कई फैमिली मेंबर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से निकट जुड़े थे। 1977 में जब इमरजेंसी के बाद चुनाव हुआ तो वह पहली बार राजनीतिक तौर पर घर के बाहर कदम निकाला। उन्हें पोलिंग बूथ पर पर्ची काटने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसके बाद वह सेवा भारती के कार्यों से जुड़ गईं। 1989 में जब नगर निगम चुनाव हुए तो उन्हें द्वारिकापुरी वार्ड से सभासद का टिकट मिला और वह चुनाव जीतकर नगर निगम सदन पहुंची। उस समय भाजपा में नेतृत्व करने वाली महिलाओं की संख्या बहुत कम थी। 1995 के अगले नगर निगम चुनाव में भी वह फिर सभासद चुनी गईं।
दो बार िखलाया कमल केवल एक साल बाद 1996 में होने वाले लोकसभा चुनाव में जब पार्टी को घाटमपुर की सुरक्षित सीट पर किसी मजबूत चेहरे की तलाश थी, ऐसे में उन्हें मैदान में उतारा गया। अपने नाम को चरितार्थ करते हुए कमल रानी ने घाटमपुर में कमल खिला दिया। उन्होंने 1,47,215 वोट पाकर बसपा के धनीराम संखवार 11 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी। हालांकि यह लोकसभा अपना सत्र पूरा नहीं कर सकी। 1998 में ही अगला लोकसभा चुनाव हुआ तो पार्टी ने उन्हें फिर टिकट दिया। इस बार सपा के शिवकुमार बेरिया को 40 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। यह लोकसभा भी सत्र पूरा नहीं कर सकी। 1999 में फिर चुनाव मैदान में कमल रानी को उतारा गया लेकिन वे बसपा के प्यारेलाल संखवार से 595 वोट कम पाकर तीसरे स्थान पर रहीं।फिर चमके सितारे
2004 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था। 2009 में नए परिसीमन में घाटमपुर लोकसभा सीट खत्म हो गई। 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें रसूलाबाद विधानसभा सीट से टिकट दिया लेकिन वह हार गईं। 2017 के चुनाव में जब मोदी लहर चल रही थी तो उन्हें घाटमपुर विधानसभा सीट से टिकट मिला। यहां से उनके सितारे फिर चमके और उन्होंने जीत हासिल की। पिछले वर्ष जब सीएम योगी आदित्य नाथ ने अपनी कैबिनेट का विस्तार किया तो कमल रानी को प्राविधिक शिक्षा मंत्री बनाया। क्षेत्र में उनके मृदु की यह स्थिति थी कि राह चलते लोग भी उन्हें आवाज देकर रोक लेते थे और वह पूरे मन से उनकी बात सुनती थीं। ---- - 1977 में बूथ पर पर्ची काटने के साथ पहली बार राजनीति में कदम रखा - 1989 और 1995 में दो बार कानपुर नगर निगम में सभासद चुनी गईं - 1996 और 1998 में दो बार घाटमपुर से जीतकर लोकसभा में पहुंची थीं - 2017 में विधायक चुने जाने पर प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा मंत्री भी बनीं