पर्यवेक्षकों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र की ताजी जलवायु चर्चा में कुछ खास प्रगति नहीं हुई है.

जर्मनी के बॉन में हुई बैठक में अमीर और तेजी से औद्योगीकरण कर रहे देशों तथा जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों के बीच कहा-सुनी देखने को मिली। अमरीका, भारत, चीन और कई खाड़ी देशों के 'अनिच्छुक देशों के गठजोड़' की भी बात की गई है।

पिछले साल दिसंबर में दक्षिण अफ्रीका के डर्बन में हुए शिखर सम्मेलन के बाद यह पहली बैठक थी। उसमें अहम फैसला यह हुआ था कि सभी देशों को शामिल करके नया वैश्विक समझौता करने के लिए वार्ता शुरु की जाए। 'डर्बन पलेटफॉर्म' के नाम से जाना जाने वाला यह समझौता साल 2015 तक होना है और इसे 2020 में लागू किया जाना है।

बॉन में अधिवेशन शुरु करते हुए संयुक्त राष्ट्र की जलवायु सम्मेलन के कार्यकारिणी सचिव क्रिसटिआना फिगरस ने कहा, इस मकसद में प्रगति इस पर निर्भर करेगा कि 'विकासशील देशों को समर्थन देने की कितना इच्छा है, धन जुटाने की कितना इच्छा है और उत्सर्जन को निर्णायक तौर पर कम करने की कितनी इच्छा है."

अधिवेशन के अंत तक कई पर्यवेक्षकों का मानना था कि यह इच्छा अधिकतर लोगों में नहीं दिखी। उलझी राजनीति कुछ साल पहले तक जलवायु परिवर्तन पर चर्चा को आम तौर पर केवल अमीर बनाम गरीब देशों की लड़ाई के तौर पर देखा जाता था। लेकिन अब ये राजनीति काफी उलझ गई है।

डर्बन की बैठक में कई गरीब और जलवायु के प्रति संवेदनशील देश यूरोपीय संघ के साथ मिल कर नए वैश्विक समझौते पर जोर दे रहे थे जिसे डर्बन पलैटफॉर्म का रुप दे दिया गया। इसके खास विरोधियों में भारत और चीन जैसे विकासशील देश और अमरीका जैसे अमीर देश शामिल थे। विकासशील देशों में इस विभाजन की वजह से बॉन में भी कहा सुनी हुई जिसे कुछ पर्यवेक्षकों ने 'अभूतपूर्व' कहा है।

2012 के बादतीन साल पहले विकसित देशों ने वादा दिया था कि 2020 तक वे गरीब देशों के लिए 100 अरब डॉलर देंगे ताकि वो अपनी अर्थव्यवस्था को 'हरा' कर सकें और जलवायु में परिवर्तन के लिए खुद को तैयार कर सकें।

साल 2009 से 2012 के दौरान उन्हें हर साल 10 अरब डॉलर दिए जाते हैं। लेकिन यह समझौता दिसंबर में समाप्त हो रहा है और किसी विकसित देश ने इसके बाद के कोई संकेत नहीं दिए हैं।

वैश्विक गरीबी के खिलाफ लड़ने वाली ब्रिटेन की संस्था आक्सफैम एडवोकेसी और कैमपेंस की निदेशक सेलीन चरवेरियेट ने कहा, ''यह जरूरी है कि नवंबर में कतर में होने वाले अगले सम्मेलन में अमीर देश 2013 से 2015 तक 10 से 15 अरब डॉलर देने का वजन दें.''

Posted By: Inextlive