बारिश के साथ शहर में मच्छरों का आतंक शुरू हो जाता है. नमी और जगह जगह जलभराव में बड़ी तादाद में मच्छर पैदा होते हैं. जिसके बाद लाखों शहरवासियों के साथ सरकारी तंत्र भी मलेरिया डेंगू चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से जंग शुरू कर देता है.

कानपुर (ब्यूरो): बारिश के साथ शहर में मच्छरों का आतंक शुरू हो जाता है। नमी और जगह जगह जलभराव में बड़ी तादाद में मच्छर पैदा होते हैं। जिसके बाद लाखों शहरवासियों के साथ सरकारी तंत्र भी मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से जंग शुरू कर देता है। मच्छरों का मारने के लिए नगर निगम साल में आठ महीने फॉगिंग कराने का दावा करता है। इसके लिए उसके बाद बाकायदा एक डेडीकेटेड टीम और जरूरी संसाधन हैं। लेकिन, इस फॉगिंग के बड़े फसाने हैं। क्योंकि आंकड़ों और कागजों में शहर का ऐसा कोई कोना नहीं जहां फॉगिंग न होती हो लेकिन पब्लिक का कहना है कि फॉगिंग हैं या ईद का चांद। पूरे साल में एक दो बार भी फॉगिंग हो जाए तो बड़ी बात है। अगर दावों के मुताबिक, साल में आठ महीने फॉगिंग हों तो हालात इतने खराब न हों।
फॉगिंग से नहीं मरते लार्वा
मच्छरों के पनपने के बाद सबसे बड़ा खतरा डेंगू का होता है। लार्वा फॉगिंग से नष्ट नहीं होता है। एडीज मादा मच्छर के दिए गए अंडे को लार्वा कहते हैं। जोकि वह सिर्फ साफ और स्थिर पानी में देती है। यह लार्वा मैलाथियान के छिडक़ाव से नहीं मरते हैं। इनको मारने के लिए टेमीफोस दवा पानी में मिलाकर डाली जाती है। डिस्ट्रिक्ट मलेरिया आफिसर के मुताबिक लार्वा नष्ट करने के लिए लार्वीसाइड ढाई एमएल टेमीफोस को 10 लीटर पानी में मिलाकर संभावित स्थानों में छिडक़ाव किया जाता है।
डीजल, पेट्रोल और मैलाथियान
नगर निगम आफिसर्स के मुताबिक डेंगू के मच्छरों को मारने के लिए की जाने वाली फागिंग में पेट्रोल, डीजल के साथ मैलाथियान मिलाया जाता है। नगर निगम 18 बड़ी व 48 छोटी यानी हैंड हेल्ड मशीनों से फागिंग कराता है। जिसमें बड़ी मशीन में 50 लीटर डीजल, 60 लीटर पेट्रोल में साढ़े तीन लीटर मैलाथियान मिलाया जाता है। जिसके बाद यह मशीन महज 45 मिनट चलती है। वहीं छोटी मशीन में 2 लीटर पेट्रोल, 7 लीटर डीजल में 20 ग्राम मैलाथियान मिलाया जाता है। यह भी सिर्फ 45 मिनट चलती है।
बड़ी व आधुनिक मशीनें मंगाईं
आफिसर्स के मुताबिक बीते वर्षों में छोटी मशीनों(हैंड हेल्ड) से सिटी के 6 जोन में फागिंग की जाती थी। मशीनें छोटी होने के कारण ये काफी चैलेंजिंग था और केमिकल खत्म होने पर बार बार इन्हें फिल करना पड़ता था। डेंगू के मच्छरों को नष्ट करने के लिए अधिक से अधिक स्थानों में कम समय में फॉगिंग हो सके, इसके लिए बड़ी व आधुनिक मशीनों को मंगाया गया। वर्तमान में नगर निगम के पास 18 बड़ी मशीनें है। ये मशीनें वाहनों में फिट हैं। इसके अलावा पहले केरोसीन में मैलाथियान मिलाकर फागिंग की जाती थी। अब केरोसीन की सप्लाई बंद हो चुकी है। लिहाजा अब डीजल, पेट्रोल में ही मैलाथियान मिलाकर फागिंग की जाती है।
6 जोन में छह दिन होती फागिंग
नगर निगम ऑफिसर्स के मुताबिक सिटी को छह जोन में बाटा किया गया। जिसमें सप्ताह में एक बार हर जोन में फॉगिंग की जाती है। मंडे को जोन एक के सभी वार्डों में फॉगिंग की जाती है। इसी प्रकार क्रम से सैटरडे तक जोन 6 यानी सभी जोन में फॉगिंग का शेड्यूल निर्धारित हैै। इस बार फस्र्ट जुलाई से फॉगिंग अभियान शुरू किया गया है। जोकि लगभग आठ माह तक चलता रहेगा। सप्ताह में संडे को फागिंग नहीं की जाती है।
फॉगिंग के लिए नगर निगम के इंतजाम
- 18 बड़ी मशीनें फागिंग और 48 छोटी मशीनें नगर निगम के पास
- 110 लीटर डीजल के साथ 3.50 केजी मैलाथियान बड़ी मशीन में यूज
- 9 लीटर डीजल में 20 ग्राम मैलाथियान छोटी छोटी मशीन में इस्तेमाल
- 45 मिनट तक लगातार चलती है मशीन एक बार में
- 6 जोन में हर जोन में अगल-अलग डे की जाती फॉगिंग
- 80 से अधिक इम्प्लाई फागिंग के लिए सिटी में तैनात
फॉगिंग के नाम पर कैसे हो रहा है खेल

1: कागजों में दर्ज होते हैं आंकड़े
फॉगिंग के लिए पूरे शहर का दायरा बहुत बड़ा है। साल में आठ महीने फॉगिंग के हिसाब से करोड़ों का बजट होता है। फॉगिंग में डीजल, पेट्रोल और केमिकल की अहम भूमिका होती है औ इसी के नाम पर होता है खेल। कागजों में गाडिय़ां फॉगिंग के लिए निकलती हैं, डीजल पेट्रोल भी मिलता है लेकिन फॉर्मेलिटी के नाम एक दो गलियों में फॉगिंग कर कागजों पर पूरा आंकड़ा दर्ज कर दिया जाता है।

2- चार महीने भी नहीं होती है फॉगिंग
नगर निगम का दावा है कि साल में आठ महीने फॉगिंग की जाती है। लेकिन हकीकत ये है कि चार महीने भी फॉगिंग सही से हो जाए तो हालात इतने खराब न हों। बारिश के मौसम में मच्छरों की तादाद बढऩे पर ही मच्छरों पर वार शुरू होता है यानि फॉगिंग होती है। आउटर के एरियाज में तो फॉगिंग वाली गाडिय़ां पहुंचती ही नहीं हैं। लेकिन फॉगिंग के नाम पर एलॉट पूरा बजट का पूरा खर्च जरूर कागजों में दिखा दिया जाता है।

3- इसलिए असर नहीं दिखाती फॉगिंग
हर एरिया में शेड्यूल के मुताबिक फॉगिंग नहीं होती है और जहां की भी जाती है उसका मच्छरों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसका मुख्य कारण डीजल, पेट्रोल में मिलाई जाने वाली मैलाथियान को निर्धारित मात्रा में नहीं मिलाया जाता है। जबकि यही मैलाथियान ही मच्छरों का मारती है। डीजल और पेट्रोल तो दवा का हर कोने तक छिडक़ाव के लिए इस्तेमाल होता है। इस दवा के नाम पर भी लाखों का खेल होता है। कुल मिला फॉगिंग तो महज एक कागजी खेल है।

Posted By: Inextlive