सुशील: मैं चैंपियन बन सकता था, लेकिन...
सुशील कुमार फाइनल में मिली हार से निराश हैं, लेकिन उन्हें इस बात की संतुष्टि है कि उन्होंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की और रजत पदक जीता। बीबीसी संवाददाता पंकज प्रियदर्शी से बातचीत करते हुए सुशील ने कहा,"मैं थोड़ा निराश तो हूं क्योंकि मेरा मुकाबला मेरी टक्कर के पहलवान से था और मैं चैंपियन बन सकता था। अगर मैं पहला दाव लगाता, तो शायद मैं चैंपियन होता लेकिन जापानी खिलाड़ी ने पहले आक्रमण किया जिसकी वजह से जीत उसके हाथ लगी।
इस स्तर के मुकाबले में छोटी-छोटी कमियां भी बड़ी साबित हो जाती हैं."उन्होंने अपनी जीत का श्रेय अपने माता-पिता, कोच सतपाल (जो सुशील के ससुर भी हैं) और अपनी पत्नी को दिया। उनकी पत्नी उनका मैच देखने के लिए स्टेडियम में मौजूद थीं.रविवार को हुए फाइनल मुक़ाबले में उनके जापानी प्रतिद्वंद्वी योनेमित्सू तातसुहीरो ने उन्हें 66 किलोग्राम फ्री स्टाईल मुकाबले में हरा दिया।
फाइनल मैच के बाद सुशील की जीत का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे प्रशंसकों में सन्नाटा सा पसर गया जबकि दूसरे पक्ष के लोग वहां खुशी मनाते दिखे। सुशील चुपचाप मंच से उतर कर चले गए लेकिन भारतीय कुश्ती संघ के महासचिव और टीम लीडर राज सिंह ने कहा कि सुशील कुमार को मैच से पहले डीहाइड्रेशन हो गया था इसलिए वे स्वर्ण पदक जीत नहीं पाए।
तबीयत ख़राब होने के बारे में पूछे जाने पर सुशील कुमार ने कहा, ''खेल में ये सब होता रहता है। मैंने अपनी तरह से पूरा प्रयास किया था कि मैं पदक जीतूं.'' उधर सुशील के घर बापरोला में लोगों ने पटाखे फोड़ अपनी खुशी का इज़हार किया। सुशील के पिता दीवान सिंह ने कहा कि उनके जैसा भाग्यशाली पिता कोई नहीं हो सकता।फाइनल की राहहालांकि सेमीफाइनल के मैच में सुशील का प्रदर्शन बेहतरीन था और वो अपने प्रतिद्वंद्वी पर हावी थे। सेमी फाइनल के मैच के बाद का दृश्य बताते हुए स्टेडियम में मौजूद बीबीसी संवाददाता पंकज प्रियदर्शी का कहना था कि सुशील की जीत के बाद स्टेडियम का माहौल देखने वाला था। सुशील रिंग से उतरकर सीधे अपने गुरु और ससुर सतपाल सिंह के पास पहुंचे।फाइनल में स्थान और रजत पदक तय होने के बाद सुशील कुमार की आंखें खुशी से नम हो गईं थीं। पहले दो जीते गए मैचों के बाद बयान देते हुए उनके गुरु सतपाल का कहना था कि आने वाले भारतीय पहलवानों के लिए वो एक शानदार मिसाल होंगे।सतपाल ने साल 1982 के दिल्ली एशियाड में स्वर्ण पदक जीता था और उससे पहले 1974 के तेहरान एशियाड में कांस्य पदक जीता था।
महज़ 14 साल की उम्र में कुश्ती शुरू करने वाले सुशील ने बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल किया था। रविवार को उन्होंने अपने पहले ही मैच में बीजिंग ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता तुर्की के रमजान शाहीन को हराया था।दूसरे मैच में उन्होंने उज्बेकिस्तान के इख्तियोर नवरुज़ोव को पटखनी दी। रजत पदक को सुनिश्चित करने के लिए ओलंपिक के उद्घाटन में भारत का झंडा ले कर चलने वाले पहलवान सुशील कुमार ने कज़ाकिस्तान के तानातारोव को धूल चटाई।ज़बरदस्त ट्रेनिंगसुशील ने बताया कि ओलंपिक के लिए उन्होंने जबरदस्त ट्रेनिंग की है। गुरू सतपाल ही सुशील की ट्रेनिंग का पूरा कार्यक्रम तैयार करते हैं। सुशील की ट्रेनिंग को कई सत्र में बांटा गया था।सुशील ने ओलंपिक के पहले कहा था कि उन पर कोई दबाव नहीं है क्योंकि दबाव में रह कर वे अच्छा नहीं कर पाएंगे। सुशील को हर मुकाबले के पहले उनके कोच ट्रेनिंग में बताते हैं कि प्रतिद्वंद्वी पहलवान के खिलाफ कैसी तैयारी करनी है। उन्हें दूसरे पहलवानों की वीडियो दिखा कर उनकी कमजोरियों और मजबूती के बारे में बता कर वे रणनीति तैयार करते हैं।
उपलब्धियां2010 स्वर्ण, कॉमनवेल्थ गेम्स2010 स्वर्ण, विश्व कुश्ती चैंपियनशिप2009 स्वर्ण, जर्मन ग्रां प्री2008 कांस्य, बीजिंग ओलंपिक्स2008 कांस्य, एशियन कुश्ती चैंपियनशिप2007 स्वर्ण, राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप2005 स्वर्ण, राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप2003 स्वर्ण, राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप2003 कांस्य, एशियन कुश्ती चैंपियनशिप