गंगा हो रही है मैली, नालों के बायोरेमिडेशन पर उठे सवाल
कानपुर (ब्यूरो) नालों के बायोरेमिडेशन की जिम्मेदारी चेन्नई की बायोएक्सग्रीन टेक्नोलाजी कंपनी को दिया गया है। पिछले वर्ष बारिश के बाद बायोरेमिडेशन बंद करा दिया गया था। इससे लगभग दस करोड़ लीटर से ज्यादा सीवरयुक्त पानी गंगा और पांडु नदी में गिर रहा है। इस पर यूपीपीसीबी ने नगर निगम पर करीब एक करोड़ रुपये का जुर्माना किया था। इसके बाद भी व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ। 23 फरवरी को डीएम की अध्यक्षता में हुई जिला पर्यावरण समिति की बैठक में यह मुद्दा उठा और समीक्षा की गई। इसमें पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के ऑफिसर ने बताया कि नालों के बायोरेमिडेशन कोई खास फायदा नहीं दिखा है।
टेस्ट के रिपोर्ट से होगा फैसला
समीक्षा र्बैठक में यूपीपीसीबी के रीजनल ऑफिसर अमित मिश्रा ने टेस्ट रिपोर्ट देकर बताया कि निस्तारित उत्प्रवाह में बीओडी (बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड) 15 मिलीग्राम प्रतिलीटर से ज्यादा है। जबकि डिजॉल्व ऑक्सीजन पांच मिलीग्राम प्रतिलीटर से कम मिल रही है। डीएम ने इस पर नाराजगी जताई और गंगा व पांडु नदी से संबद्ध नालों के बायोरेमिडियेशन करने वाली कंपनी के प्रतिनिधियों को पानी की रिपोर्ट के साथ दो मार्च को बुलाया है। यहां उनकी रिपोर्ट के टेस्ट के आधार पर तय होगा कि बायोरेमिडेशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा या खत्म किया जाएगा।
एक नजर में समझे बायोरेमिडेशन
- बायोरेमिडेशन प्रक्रिया में नालों के पानी को कई जगह रोक-रोक कर नदी में गिराया जाता है
- इसको साफ करने के लिए पानी में आक्सीजन बढ़ाने वाले केमिकल डाले जाते हैं।
- इसके अलावा अन्य केमिकल भी मिलाए जाते हैं जो बैक्टीरिया पैदाकर गंदगी नष्ट करते हैं
- इससे गंगा के पानी में घुलित आक्सीजन की कमी नहीं होती है
- बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड, घुलित आक्सीजन, कोलीफार्म आदि की जांच होती है
-पांडु नदी में गिरने वाले चार नालों का हो रहा बायोरेमिडेशन
-गंगा नदी में गिरने वाले पांच नालों का हो रहा बायोरेमिडेशन