विकास की राह में बाधक मोटापा
विश्व स्वास्थय संगठन (डब्लूएचओ) की ओर से जारी ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक बढ़ते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के साथ चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका, ब्राज़ील और मैक्सिको जैसे देशों में मोटापे के शिकार लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है।
एक समय जो देश अपने लोगों के लिए खाना जुटाने की जुगत में लगे थे वो अब एक और समस्या से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो मोटापे और भुखमरी का ये ख़तरा इन देशों के लिए दोहरी मार बन गया है।भौगोलिक दृष्टि से जनसंख्या और जनस्वास्थ्य पर अध्ययन-अध्ययापन करने वाले हार्वर्ड विश्व विद्यालय के प्रोफेसर एसवी सुब्रमण्यम ने बीबीसी से हुई बातचीत में कहा, ''सरल शब्दों में आर्थिक विकास का आकलन करने के लिए हम ये देखते हैं कि उपभोग करने की हमारी क्षमता कैसी है। यानी जितना ज़्यादा हम खाते हैं उतने हम ही अमीर समझे जाते हैं। ज़ाहिर है ये धारणा वज़न बढ़ने के लिहाज़ से घातक है.''
सितंबर महीने में दुनियाभर के नेता गैर-संक्रमित बीमारियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से की जा रही पहली बैठक में हिस्सा लेंगे। दुनिया भर में मोटापे से बढ़ रहे खतरे इस बैठक का मुख्य मुद्दा होंगे। इस बैठक में नेताओं से उम्मीद की जाएगी कि वो खाद्य उद्योगों को नियंत्रित करने और इसके चलते होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए प्रतिबद्धता दिखाएंगे।
महामारी बन रहा है मोटापा विकास की राह पर आगे बढ़ रहे देशों में पिछले कुछ दशकों में प्रति व्यक्ति आय दर से भी ज़्यादा तेज़ी से मोटापे के शिकार लोगों की संख्या बढ़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक चीन में 2005 में जहां एक करोड़ 80 लाख लोग मोटापे का शिकार थे वहीं आज यह आंकड़ा 10 करोड़ तक पहुंच गया है।ब्राज़ील में बड़ों के मुकाबले बच्चे ज़्यादा तेज़ी से मोटापे का शिकार हो रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक ब्राज़ील में आज पांच से नौ साल तक की उम्र में 16 फीसदी लड़के और 12 फीसदी लड़कियां मोटापे का शिकार हैं। यानी पिछले 20 साल में इस संख्या में चार गुना की बढ़ोत्तरी हुई है।मौक्सिको में हर सात में से एक वयस्क मोटापे का शिकार है और इस मामले में पूरी तरह अमरीका की राह पर है। दक्षिण अफ्रीका का हाल भी कुछ अलग नहीं। मोटापे के बढ़ते मामलों को लेकर दक्षिण अफ्रीका अमरीका से आगे है जबकि उसका सकल घरेलू उत्पाद अमरीका के आठवें हिस्से के बराबर है।
भारत जैसे देश इस विडम्बना का सीधा उदाहरण है कि जहां एक ओर जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ज़रूरी पोषण से भी महरुम है वहीं मध्यवर्ग और उच्च वर्ग को मोटापे और डायबटीज़ यानी मधुमेह जैसी बीमारियों ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया है। अंतरराष्ट्रीय मधुमेह परिसंघ के मुताबिक भारत में पांच करोड़ से ज़्यादा लोग मधुमेह से पीड़ित हैं।दुनियाभर में मोटापे पर अनुसंधान से जुड़ी संस्थाओं का मानना है कि हालांकि सभी देशों में मोटापे के शिकार लोगों की संख्या अमीर और ग़रीब दोनों ही वर्गों में बढ़ रही है, लेकिन बीएमआई या बॉडी मास इंडेक्स संपन्न वर्ग में अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है। जानकार यह स्वीकार करते हैं कि मोटापे का सीधा संबंध देशों की बढ़ती संपन्नता से है लेकिन कुछ और कारण भी हैं जिन्होंने इस प्रक्रिया को बेहद तेज़ कर दिया है।विश्व स्वास्थय संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक मोटापे जैसी संक्रमित बीमारियों की एक बड़ी वजह शहरीकरण, 21सवीं सदी की जीवनशैली, तांबाकू-शराब जैसे नशे का प्रयोग और शारीरिक गतिविधियों में कमी है।पिछड़ गया है पोषणमोटापे पर अध्ययन करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘आईएएसओ’ से जुड़े टिम लोबस्टेन के मुताबिक सभी देशों में पोषण से युक्त पारंपरिक आहार की जगह आधुनिक युग के खाने ने ले ली है जो पूरी तरह वसा और चर्बी से भरा है।
व्यापक स्तर पर फैक्ट्रियों में बन रहे इस खाने के लिए नए बाज़ार बन चुके हैं और ज्यादा से ज़्यादा लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा इस बाज़ार में खर्च करने को तैयार हैं।टिम लोबस्टेन का तर्क है, ''बाज़ारों से संचालित होने वाली खाद्य कंपनियों के लिए स्वास्थ्य प्राथमिकता पर नहीं। ये कंपनियां सस्ते कच्चे माल का इस्तेमाल करती हैं और बड़े पैमाने पर खाने की चीज़ें बनाकर लागत मूल्य को नियंत्रित करती हैं। इसके बाद वो अपने लिए नए से नए बाज़ार खोजने का काम करती हैं.''संयुक्त राष्ट्र संघ की आगामी बैठक अगर बाज़ार से नियंत्रित हो रही खाने की आदतों पर लगाम कसने के लिए नेताओं को प्रतिबद्ध कर पाती है तो ये इस समस्या को दूर करने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।