परमिशन के इंतजार में जल गए हजारों परिवारोंं के सपने
कानपुर (ब्यूरो) आखिर ऐसी क्या बात रही कि संसाधन होने के बाद भी फायर ब्रिगेड की टीम कम समय में आग पर काबू नहीं पा पाई। पूर्व सीनियर फायर अधिकारी और कई बड़ी आग की वारदातों पर नियंत्रण पाने में मेडल पा चुके वाईबी द्विवेदी ने बताया कि आग बुझाने के इवेंट के दौरान कुछ ऐसे डिसीजन होते हैैं जो मौके पर मौजूद फायर अधिकारी नहीं ले सकता है। इन ड्रिल्स के लिए सीनियर ऑफिसर्स के परमिशन लेनी होती है। चूंकि इस ड्रिल से कई लोगों की जान को खतरा हो सकता है लिहाजा जल्दी इस ड्रिल की परमिशन नहीं दी जाती है।
आर्मी की स्ट्रेटजी पर
सेना की ये स्टे्रटजी होती है कि जिस एरिया में आग लगी है उसे काटकर अलग कर दिया जाता है और दोनों तरफ के इलाके सेफ कर लिए जाएं। जितने एरिया में आग लगी होती है, उतने में ज्यादा मैन पॉवर एप्लाई कर आग पर काबू पाया जा सकता है। योगेश बाबू द्विवेदी ने बताया इस ड्रिल का इस्तेमाल अगर किया जाता तो जिन दुकानों में 24 घंटे बाद आग लगी थी, उन्हें बचाया जा सकता था। कानपुर के कपड़ा बाजार में लगी आग के संबंध में उन्होंने बताया कि जब सीपी और जेसीपी ने डीजी फायर से संपर्क किया तो उन्होंने मौके की गंभीरता को देखते हुए सेना की मौजूदगी में ड्रिल कराने का डिसीजन लिया और परमिशन भी दे दी।
केंद्र के आदेश पर पहुंची सेना
केंद्र सरकार के आदेश के बाद केंद्रीय आयुध भंडार(सीओडी) के ब्रिगेडियर सुदीप और उनकी टीम ने चार दिन तक पांच फायर इंजन के साथ काम करती रही। साथ ही एयरफोर्स के जवान भी आ गए। उन्होंने न सिर्फ आर्मी की स्टे्रटजी पर काम किया बल्कि दमकल कर्मियों को भी उसी स्थान पर तमाम तरह की ड्रिल बी बताईं। जिससे आग पर कम समय में काबू पाया जा सका। सेना और एयरफोर्स की सतर्कता के दौरान कई ड्रिल्स सामने आईं, लेकिन अफरा तफरी के माहौल में मीडिया उसे दिखा न सकी या यूं समझ लीजिए बता नहीं सकी। इंडियन आर्मी और एयर फोर्स के जवानों ने जान की बाजी लगाकर आग को कंट्रोल किया।