कुख्यात विकास दुबे ने उसे पकडऩे पहुंची पुलिस टीम में सीओ सहित आठ पुलिसकर्मियों को गोलियों से भून डाला था. जबकि जवाबी फायरिंग में विकास या उसके किसी गुर्गे को एक भी गोली नहीं लगी थी. जिसके बाद पुलिस विभाग की जमकर किरकिरी हुई थी. हालांकि इसके बाद भी विभाग ने कोई सबक नहीं लिया. कमिश्नरेट पुलिस में हजारों पुलिसकर्मी ऐसे हैं जिन्हें गोली चलाना तो दूर हथियार को खोलना बंद करना तक नहीं आता. क्योंकि साल में एक बार जरूरी फायरिंग प्रैक्टिस में सिर्फ 8 परसेंट पुलिसकर्मियों ने ही हिस्सा लिया.

कानपुर (ब्यूरो)। कुख्यात विकास दुबे ने उसे पकडऩे पहुंची पुलिस टीम में सीओ सहित आठ पुलिसकर्मियों को गोलियों से भून डाला था। जबकि जवाबी फायरिंग में विकास या उसके किसी गुर्गे को एक भी गोली नहीं लगी थी। जिसके बाद पुलिस विभाग की जमकर किरकिरी हुई थी। हालांकि इसके बाद भी विभाग ने कोई सबक नहीं लिया। कमिश्नरेट पुलिस में हजारों पुलिसकर्मी ऐसे हैं जिन्हें गोली चलाना तो दूर हथियार को खोलना बंद करना तक नहीं आता। क्योंकि साल में एक बार जरूरी फायरिंग प्रैक्टिस में सिर्फ 8 परसेंट पुलिसकर्मियों ने ही हिस्सा लिया। बाकी कोई न कोई बहाना बनाकर प्रैक्टिस में नहीं पहुंचे। ये हमारी इनवेस्टिगेशन नहीं बल्कि आरआई की रिपोर्ट बता रही है। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं क कमिश्नरेट पुलिस किसी भी विषम परिस्थिति से निपटने मे कितना सक्षम है।

आरआई की रिपोर्ट से खुलासा
चौकाने वाली बात ये है कि कमिश्नरेट पुलिस भले ही एनुअल फायरिंग में हिस्सा न ले रही हो लेकिन हाफ एनकाउंटर और एनकाउंटर के दौरान उनका निशाना एक दम सटीक बैठता है। हाफ एनकाउंटर में हमेशा पैर पर और एनकाउंटर में विक्टिम के उस बॉडी पार्ट पर ही गोली लगती है, जिससे उसकी मौत हो जाए। ऐसे में यह भी अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि ज्यादातर हाफ एनकाउंटर और एनकाउंटर की हकीकत है? आरआई (प्रतिसार निरीक्षक) ने जेसीपी (क्राइम एंड हेडक्वार्टर) को दी रिपोर्ट में बताया कि केवल 8 फीसद पुलिसकर्मी ही फायरिंग करने पुलिस लाइन पहुंचे।

ये है फायरिंग के नियम
कानपुर कमिश्नरेट के 52 थानों, चौकियों, पुलिस लाइन, रिजर्व पुलिस, थाने में बाबू समेत 10 हजार पुलिस कर्मी तैनात हैैं। इन पुलिसकर्मियों की साल में एक बार फायरिंग प्रैक्टिस करवाने का प्रावधान है। 30 फीसद पुलिस कर्मियों की फायरिंग एक बार में कराने के नियम हैैं। यानी साल में तीन बार में पूरे 10 हजार पुलिसकर्मियों को फायरिंग करनी चाहिए। पुलिस लाइन के आंकड़ों की मानें तो केवल आठ फीसद पुलिस कर्मी ही फायरिंग करने के लिए आ रहे हैं। जिससे पुलिस बल के अनुशासनहीन होने की बात सामने आ रही है।

बहाना बनाकर हो जाते गायब
कमिश्नरेट पुलिस के साथ कई बार ऐसा हुआ है कि निशाना साधना तो दूर पुलिसकर्मी वेपन खोल और बंद तक नहीं कर पाए, जबकि आम्र्ड फोर्स के लिए ये पहली वेपन एक्सरसाइज है। साथियों के सामने जब अधिकारी वेपन खोलने या बंद करने के लिए कहते हैं तो एक्सरसाइज न होने की वजह से पुलिसकर्मियों के लिए ये परेशानी का काम हो जाता है। इसकी वजह से पुलिस कर्मी कभी मेडिकल, कभी छुट्टïी तो कभी कोर्ट ड्यूटी का बहाना बनाकर फायरिंग एक्सरसाइज में नहीं आते हैैं। 2015 मेें तत्कालीन एसएसपी शलभ माथुर के समय में एक्ससाइज के दौरान कई पुलिस कर्मी वेपन ऑपरेट नहीं कर पाए थे, जिसकी वजह से उनके खिलाफ कार्रवाई की गई थी।

पुलिस लाइन में ट्रेनिंग यूनिट
कानपुर को कमिश्नरेट बनाने के बाद तैनात हुए पहले पुलिस कमिश्नर असीम अरुण को परेड के दौरान जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने पुलिस लाइन में ट्रेनिंग यूनिट बनाई थी, जिसमें समय-समय पर पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग होती है। वहीं कमिश्नरेट में जिन लोगों के लिए गनर अलॉट हैैं, उनकी कभी फायरिंग प्रैक्टिस नहीं होती थी, लेकिन अब जिस गनर को पिस्टल, स्टेनगन या एके- 47 दी जाती है, उसकी इस यूनिट में ट्रेंिनंग कराई जाती है। इस ट्रेनिंग के बाद ही उसे ड्यूटी पर भेजा जाता है।
तो मुंह से करेंगे ठांय ठांय
कानपुर के हाईपर सेंसिटिव और सेंसिटिव थानों के पुसिलकर्मियों की स्पेशल फायर प्रैक्टिस भी कराई जाती है। दंगा नियंत्रण स्कीम के तहत पुलिस लाइन में फायरिंग और एरिया डोमिनेशन स्कीम के तहत अक्सर ड्रिल कराई जाती है, लेकिन फायरिंग प्रैक्टिस कभी नहीं कराई जाती है। अब इसे कमिश्नरेट पुलिस की अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा कि हाईपर सेंसिटिव जिला होने के चलते शासन से थाना स्तर पर फायरिंग प्रैक्टिस के आदेश जारी किए थे, लेकिन नॉर्मल प्रैक्टिस तक नहीं हो रही है। ऐसे में अगर इन पुलिसकर्मियों का बदमाशों से सामना हो गया तो ये सिर्फ मुंह से ठांय ठांय कर पाएंगे।

Posted By: Inextlive