गुनाहों में सने हाथों से गढ़ रहे सफलता की इबारत
- जेल में सीखे कई हुनर, अब कई लोगों को दे रहे रोजगार
- लॉकडाउन में लोगों की सेवा के लिए भी अपने हाथ बढ़ाए द्मड्डठ्ठश्चह्वह्म@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ द्मड्डठ्ठश्चह्वह्म : केस 1: बाबूपुरवा पुलिस न्यू लेबर कॉलोनी निवासी युवती को दहेज हत्या के मामले में दिसंबर 2019 में जेल भेजा गया था। अप्रैल 2020 में कोविड की वजह से युवती को जमानत पर रिहा कर दिया गया। जेल में रहने के दौरान युवती ने सिलाई सीख ली थी। युवती ने घर आकर काम शुरू कर दिया। पहले दूसरी दुकानों से जॉब वर्क लाकर काम किया। लॉकडाउन के दौरान मॉस्क बनाकर उसकी सप्लाई की। आज घर में तीन मशीनें हैं और उन पर दो महिलाओं को काम दे रखा है।केस 2: ग्वालटोली निवासी महिला पर रिश्तेदारी की बहू पर मिट्टी का तेल छिड़कने का आरोप है। महिला के मुताबिक वह उस दिन रिश्तेदारी में गई थी, जिस दिन घटना हुई। अक्टूबर 2019 में ग्वालटोली पुलिस ने महिला को जेल भेजा था। मई 2020 में हाईकोर्ट से आदेश आने के बाद उनकी रिहाई हो गई। जेल से निकलने के बाद वे डिप्रेशन में आ गई थीं। जेल अधिकारियों ने उनके अच्छे व्यवहार की वजह से उन्हें सिलाई की ट्रेनिंग दिला दी थी। अब वे घर पर ही लोगों के कपड़े सिल कर अपना पेट तो पाल ही रही हैं साथ ही उन्होंने तीन महिलाओं को भी रोजी-रोटी दे रही है।
केस 3: दर्शनपुरवा निवासी प्रशांत की पत्नी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। प्रशांत को पुलिस ने सितंबर 2019 में जेल भेजा था। जेल में रहने के दौरान प्रशांत ने खाना बनाना सीख लिया था। जेल से निकलने के बाद प्रशांत ने कचहरी परिसर के बाहर खाने का ठेला लगाना शुरू कर दिया। लॉकडाउन के दौरान उसने सरकारी एजेंसीज के लिए भी ठेकेदार के अंडर में खाना बनवाया। अब वे अपने ठेले पर तीन लड़कों को रोजगार दिए हैं। ये तीन केस तो केवल बानगी हैं। जेल में सिखाए गए हुनर को दर्जनों लोगों ने रोजगार बना लिया है। सरकार के आदेश और जेल मैनुअल के मुताबिक हुनर सीखे लोग जेल प्रशासन के संपर्क में रहते हैं। लिहाजा जेल प्रशासन उनकी हाल खबर लेता रहता है। जेल प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक जेल में हुनर सीख कर जमानत पर गए कई लोग कोई न कोई काम जरूर कर रहे हैं। साथ ही कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। लोगों की मदद को बढ़े हाथजेल की मॉनीटरिंग सेल की माने तो लॉकडाउन के दौरान जेल से जमानत पर छूटे लोगों ने अपने घर जा रहे लोगों के लिए लंच पैकेट्स बनाए। घर जाने वाले लोगों को मॉस्क भी बना कर दिए। जेल से छूटे लोगों में से कोई सेनेटाइजर बना रहा है तो कोई मॉस्क। जिन लोगों को कोई काम नहीं मिला उन लोगों से जब जेल की मॉनीटरिंग सेल से संपर्क किया तो उन्हें हाईवे पर लगे कैंपों में पुलिस की मदद के लिए और लंच पैकेट बांटने के लिए लगाया गया। जेल से निकली महिलाओं को लंच पैकेट बनाने में लगाया गया था।
सीख रहे अदब और कायदा जेल अधीक्षक राजेंद्र जायसवाल ने बताया कि दान में दो सिलाई मशीनें सामाजिक संस्थाओं ने दी थीं। जिनसे महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग दी जाती है। कैंप लगाकर भी ट्रेनिंग दी जाती है। साथ ही जिस बंदी की जो रूचि होती है, उसी के मुताबिक उन्हें काम सिखाया जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि शातिर बंदियों से आम बंदियों को दूर रखा जाए। बंदियों को अदब और कायदा भी सिखाया जाता है। जिन महिला बंदियों को साथ बच्चे रहते हैं। उनके लिए जेल के अंदर ही उनकी पढ़ाई का इंतजाम भी कराया जाता है।जेल में हैं महिलाएं- 119
मशीनों की संख्या- 02
सिलाई सीखी - 31 महिलाओं ने गंभीर धाराओं में बंद - 35 दहेज हत्या में बंद - 37 जेल में महिलाओं के रहने के दौरान दान में मिली दो मशीनों से उन्हें सिलाई सिखाई जाती है। जिससे वे जेल से निकलने के बाद अपना जीवन यापन कर सकें। राजेंद्र जायसवाल, जेल अधीक्षक