कॉकरोच को भी होती है दोस्तों की दरकार
जी हां, हम बात कर रहे हैं उसी कॉकरोच की, जो आपके हमारे घरों में, दफ्तरों में और तमाम दूसरी जगहों पर अक्सर अंधेरे कोनों में, गंदी जगहों पर रहता है। एक नये शोध से पता चला है कि कॉकरोच बहुत-बहुत ज्यादा सामाजिक प्राणी हैं, इतना जितना हम सोच भी नहीं सकते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि कॉकरोच अपने परिवार के सदस्यों को भलीभांति पहचानते हैं और ही परिवार से जुड़े कई पीढ़ी के सदस्य साथ मिलकर रहते हैं।घर-परिवार का साथहर कॉकरोच अपने परिवार के दूसरे कॉकरोच से करीब से जुड़ा होता है और वे सब एक समाज की शक्ल में रहते हुए नियमों को खुशी-खुशी मानते हैं।वैज्ञानिकों का कहना है कि कॉकरोच की कुछ खास प्रजातियों का अध्ययन किया जाए तो इससे भी ज्यादा रोचक और हैरान करने वाली बातें सामने आएंगी।विज्ञान जगत ने अब तक कॉकरोच की लगभग 4000 प्रजातियों की पहचान की है। इनमें से 25 प्रजातियां ऐसी हैं जिन्होंने इंसानों के बीच रहना सीख लिया है।
वैज्ञानिकों ने कॉकरोचों की दो प्रजातियों का खासतौर पर अध्ययन किया। इनमें से एक है जर्मन प्रजाति और दूसरी है अमरीकी प्रजाति। वैज्ञानिकों ने पाया कि इन दो प्रजातियों के कॉकरोच दिन में समूह बनाकर ऐसे जगहों पर सुस्ताते हैं जहां अंधेरा होता है। और जब रात होती है तो दाना-पानी की तलाश में निकल पड़ते हैं।
अकेलापन और तनावआमतौर पर माना जाता है कि इंसान बड़ा सामाजिक प्राणी होता है और अकेलापन बर्दाश्त करना उसके लिए मुश्किल होता है। लेकिन इस मामले में कॉकरोच दरअसल इंसानों से कहीं ज्यादा संवेदनशील होते हैं।वैज्ञानिकों का कहना है कि जो कॉकरोच किसी वजह से अकेले रह जाते हैं, उन्हें आगे चलकर बड़ी दिक्कत होती है। तनहा होने से कॉकरोच बीमार पड़ जाते हैं।किसी तरह जान बच भी गई तो अकेले रहने से उन्हें इतना गहरा सदमा लगता है कि वे फिर किसी के साथ घुलमिल भी नहीं पाते। वैसे वर्ष 2010 में शोधकर्ताओं ने पाया था कि कॉकरोच आपस में बतियाते भी हैं, हालांकि ये बातचीत खाने के मसले पर ही होती है।