मरणोपरांत अपनी देह दान करने के लिए सहमत करना और मृत्यु के बाद फैमिली को देहदान के लिए तैयार करना आसान नहीं होता है. इस असंभव काम संभव करके दिखाया है जाजमऊ के दधीचि देहदान अभियान के संस्थापक और संचालक मनोज सेंगर और उनकी पत्नी माधवी सेंगर ने. दंपती अब तक 267 देहदान करा चुके हैं. 20 साल पहले उन्होंने देहदान अभियान शुरू किया था

कानपुर (ब्यूरो)। मरणोपरांत अपनी देह दान करने के लिए सहमत करना और मृत्यु के बाद फैमिली को देहदान के लिए तैयार करना आसान नहीं होता है। इस असंभव काम संभव करके दिखाया है, जाजमऊ के दधीचि देहदान अभियान के संस्थापक और संचालक मनोज सेंगर और उनकी पत्नी माधवी सेंगर ने। दंपती अब तक 267 देहदान करा चुके हैं। 20 साल पहले उन्होंने देहदान अभियान शुरू किया था। अब तक तीन हजार से अधिक लोगो को देहदान के लिए संकल्पित कर चुके हैं। कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, आगरा, अंबेडकर नगर, सैफई, अयोध्या, बदायूं, एम्स रायबरेली, एम्स गोरखपुर आदि मेडिकल कॉलेजों को मृत शरीर समर्पित दिया है। वह पूरे प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों को स्टूडेंट्स के सीखने के लिए मानवदेह उपलब्ध कराते हैं।

2003 में पहला देहदान
मनोज सेंगर बताते है कि मेडिकल रिसर्च के लिए नवम्बर 2003 में तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के आग्रह पर उन्होंने युग दधीचि देहदान अभियान शुरू किया था। समाज की आस्था को बदलते हुए मनोज 2006 में पहला देहदान कानपुर देहात डेरापुर से 21 वर्षीय बउआ दीक्षत का कराने में सफल रहे।

क्यों पड़ी जरूरत
मेडिकल कॉलेजों में फस्र्ट ईयर के स्टूडेंट्स को सीखने के लिए मृत शरीर की आवश्यकता होती है। बिना देह पर अध्ययन किए फस्र्ट ईयर पास नहीं किया जा सकता, लेकिन समाज में अपने प्रियजन की देह देने को कोई तैयार नहीं होता, धार्मिक और समाजिक मान्यताएं आड़े आतीं हैं इसलिए तमाम कॉलेज बिना मृत देह के ही अथवा कंप्यूटर की सहायता से या फिर एक दो शरीर किसी प्रकार रख कर पढ़ाई की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं।

Posted By: Inextlive