फेस को रिंकल फ्री बनाएगा सी ग्लाइकोसिटिक एल्कोहल
- एनएसआई में बैगास से ग्लाइकोसिटिक एल्कोहल निकाला गया, जाइलोज की जगह होगा यूज
- अभी क्रीम में यूज होने वाला जाइलोज चीन और ब्राजील की बर्च ट््री से बन रहा है KANPUR: मार्केट में इस टाइम एंटी एजिंग क्रीम 1200 रुपए मे 50 एमएल मिल रही है। वहीं एनएसआई में बैगास से डेवलप किया गया सी ग्लाइकोसिडिक एल्कोहल कास्मेटिक कंपनियों को करीब 200 रुपए प्रति किलो मिल सकता है। इस प्रोडक्ट का यूज क्रीम में 3 परसेंट किया जाता है। इस एल्कोहल के क्रीम में यूज होने से रेट काफी कम होंगे और कोई केमिकल बाडी को नुकसान भी नहीं करेगा। यह क्रीम चेहरे को तरोताजा रखने के साथ रिंकल्स को भी हटाएगी। पेटेंट एक महीने के अंदर हीइस बाबत एनएसआई डायरेक्टर प्रो नरेन्द्र मोहन ने बताया कि एंटीएजिंग क्रीम में जो जाइलोज यूज किया जा रहा है वह काफी महंगा मिलता है। इसे बर्च ट्री के सुगर वुड से निकाला जाता है। यह ट्री सिर्फ चीन और ब्राजील में ही होते हैं। जिससे 50 एमएल वाली एंटी एजिंग क्रीम की कीमत मार्केट में 1200 रुपए है। एनएसआई में ड्राई बैगास से जो जाइलोज डेवलप किया गया है। उसके बाद उससे सी ग्लाइकोसिटिक बनाने में कामयाबी हासिल की है। मई 2019 में लैब मे इस प्रोडक्ट का करेक्टाइजेशन किया गया जिसमें वह परफेक्ट निकला। नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन इसके लिए पेटेंट एक महीने के अंदर ही फाइल कर देगा।
स्किन फ्रैंडली प्रोडक्ट होगा आने वाले टाइम में आर्गेनिक कास्मेटिक का मार्केट करीब 25 बिलियन डालर का होगा। एनएसआई का जो जाइलोज बनाया गया है उसकी कीमत करीब 200 रुपए प्रति किलो होने की संभावना है। 100 किलो बैगास से करीब 6 केजी जाइलोज बनेगा। जाइलोज को सी ग्लाइकोसिटिक एल्कोहल में कनवर्ट किया गया है, जिसका यूज एंटी एजिंग क्रीम के साथ साथ अदर कास्मेटिक प्रोडक्ट में किया जाता है। यह प्रोडक्ट इनवायरमेंट फ्रैंडली व स्किन फ्रैैंडली होगा लैब लेवल पर प्रयोग सफल ऊंचाहार के रहने वाले तुषार मिश्रा ने फूड टेक्नोलॉजी में एमिटी नोएडा से बीटेक किया। तुषार ने बताया कि जनवरी 2018 में वह एनएसआई में डेजर्टेशन पर आया था। जहां डायरेक्टर प्रो नरेन्द्र मोहन अग्रवाल व मेंटर प्रो विष्णु प्रभाकर श्रीवास्तव के साथ मिलकर बैगास से जाइलोज बनाने पर काम शुरू किया। पहले ड्राई बैगास से जाइलोज बनाया गया जिसके बाद इसे सी ग्लाइकोसिटिक एल्कोहल में चेंज किया। लैब लेवल पर मई 2019 में प्रयोग पूरी तरह से सफल रहा।