ब्लॉगर को बारह साल की क़ैद
बिलाल ने अदालत के सामने स्वीकार किया था कि उन्होंने इंटरनेट पर एक ब्लॉग लिखकर इराक़ युद्ध का समर्थन करने वाले ब्रितानी सांसदों को मार डालने की वकालत की थी। उन पर अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि 23 वर्ष के बिलाल ने एक वेबसाइट में ब्लॉग लिखकर लोगों को सांसदों पर हमला करने के लिए उकसाया था। इस वेबसाइट को अब अमरीकी अधिकारियों ने बंद कर दिया है।
‘ज़हरीला साँप’बिलाल ज़हीर अहमद को सज़ा सुनाते हुए न्यायाधीश ने उन्हें “हमारे बीच रहने वाला ज़हरीला साँप” बताया और कहा कि “वो हमारी व्यवस्था के दिल पर चोट करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है.”
न्यायाधीश ने कहा, “इराक़ युद्ध पर हमारे जो भी विचार हों, लेकिन ये एक जनतांत्रिक देश है। आप ब्रिटिश नागरिक होने का दम भरते हैं लेकिन आपके सिद्धांत हमारे उन सिद्धांतों से एकदम उलट हैं जिनको हम अपने देश में मानते हैं.” बिलाल ने कंप्यूटर तकनॉलाजी की पढ़ाई की है और उनके पास ब्रितानी और पाकिस्तानी पासपोर्ट हैं।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि इस्लामी कट्टरवादी विचारों को फैलाने वाली वेबसाइट पर बिलाल ने लोगों को बताया था कि अपने इलाक़े के सांसद की जनता के साथ बैठकों के कार्यक्रम का पता कैसे लगाया जाए। साथ ही उन्होंने एक ऐसी ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट का लिंक अपने ब्लॉग में दिया था जो चाक़ू बेचती है।
जिहादी साहित्यइसके अलावा उनके पास एक किताब की इलेक्ट्रॉनिक प्रतियाँ भी मिलीं जिसमें जिहाद में हिस्सा लेने के तरीक़े बताए गए हैं। ‘ज़ाद-ए-मुजाहिद: एक मुजाहिदीन के लिए ज़रूरी सामान’ नाम की किताब भी उनके पास से बरामद हुई।बिलाल ने ये ब्लॉग तब लिखा जब रोशनआरा चौधरी नाम की एक महिला को लेबर पार्टी के सांसद स्टीफ़न टिम्स की हत्या की कोशिश में सज़ा सुनाई गई थी। रोशनआरा चौधरी ने ईस्ट हैम क्षेत्र से सांसद टिम्स को एक मुलाक़ात के दौरान पेट में चाक़ू मार कर घायल कर दिया था।अनुसरण
बिलाल ने इस हमले के लिए रोशनआरा चौधरी की तारीफ़ की थी और कहा था कि इस उदाहरण का अनुसरण किया जाना चाहिए। इससे एक दिन पहले बिलाल अहमद ने फ़ेसबुक पर लिखा, “हमारी बहिन ने हम मर्दों को शर्मसार कर दिया है। हमें ये काम (सांसद पर हमला) करना चाहिए था.”
फिर उन्होंने मेट्रो अख़बार की वेबसाइट पर लिखा, “मैं मानता हूँ कि टिम्स सस्ते में छूट गए। जबकि जिस युद्ध के पक्ष में उन्होंने वोट दिया उसके कारण अनगिनत आम लोग मारे गए हैं.”
गिरफ़्तारी के बाद उन्होने पुलिस अधिकारियों से कहा, “मुझे अपनी भावनाओं पर क़ाबू पाना चाहिए था। मेरी बातें पूरी तरह अतार्किक थीं। मैं किसी सेल का हिस्सा नहीं हूँ.” बिलाल ज़हीर अहमद को 10 नवंबर, 2010 को गिरफ़्तार किया गया था।