जब क्वीन का सिर उल्टा छप गया...
लग रहा था जैसे मोबाइल फोन, एसएमएस और ई-मेल के जमाने में मार खाई हुई चिट्ठी-पत्री का पुराना जमाना, इस रंग-बिरंगी दुर्लभ डाक टिकटों वाली प्रदर्शनी में जीवंत हो उठा हो।
पटना साइंस कॉलेज का व्हीलर सीनेट हॉल परिसर चार दिनों तक उन तमाम दर्शकों से गुलज़ार रहा जो डाक टिकटों के जरिए कला, इतिहास, संस्कृति और विज्ञान से जुड़े स्मृति-चिन्हों की झलक पाना चाहते थे।इसमें युवाओं की सबसे अधिक भागीदारी और दिलचस्पी ने उन बुजुर्गों को चौंकाया, जो नई पीढी में विरासत और धरोहर के प्रति जिज्ञासा कम होने की चिंता करते रहते हैं।'क्लासिक एरर'बिहार एक राज्य के रूप में अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रहा है। भारतीय डाक सेवा के बिहार परिमंडल ने इस प्रदर्शनी को उससे भी जोड़ा। संबंधित प्रतियोगिता के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित हुए।तीस हजार से अधिक स्टाम्प अपने कवर, मुहर, रेप्लिका समेत यहां फ्रेम में सजे हुए थे। लेकिन जिस फ्रेम पर सबसे ज्यादा नजरें टिकीं, उसमें ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के चित्र वाला दो-रंग का स्टाम्प लगा हुआ था।
भारत में वर्ष 1854 में छपे इस पहले रंगीन डाक टिकट को 'क्लासिक एरर' वाला अत्यंत दुर्लभ स्टाम्प माना जाता है। कारण यह है कि इसमें क्वीन का सिर नीचे की तरफ उल्टा छप गया था।
इसलिए इसे 'इनवरटेड हेड' यानी औंधा हुआ सिर शीर्षक दिया गया था। कहा जाता है कि इस भारी चूक का पता चलते ही उन छपे हुए तमाम डाक टिकटों को नष्ट करने का हुकुम दिया गया था।लेकिन किसी ने उनमें से बीस-पच्चीस टिकट छिपा लिए जो दुनिया के कुछ गिने-चुने डाक टिकट संग्रहकर्ताओं के हाथ लग गए। पटना की प्रदर्शनी में इसे कोलकाता के एस.सी.सुखानी ने उपलब्ध कराया है।एक आकलन के मुताबिक़, इसकी नीलामी बोली तीन करोड़ रूपए से भी ज़्यादा हो सकती है। इसके अलावा वर्ष 1911 में शुरू हुए विश्व के पहले एयर मेल के पोस्ट कार्ड समेत कई अन्य दुर्लभ डाक टिकट इस प्रदर्शनी में देखे गए।‘एयर मेल स्टाम्प' के मशहूर संग्रहकर्ता प्रदीप जैन ने इस मौके पर बीबीसी को बताया, '' ई-मेल के इस जमाने में डाक-सेवा से जुड़ी गतिविधियाँ कम जरूर हुई हैं लेकिन 'फिलाटेली' अब काफ़ी संगठित या उन्नत रूप में सामने है। ख़ासकर अलग-अलग विषयों पर आधारित शोधपूर्ण तरीके से जो स्टाम्प संग्रह हो रहा है, उससे विश्व के इतिहास, विज्ञान और कला-संस्कृति पर नई रोशनी पड़ती है। इसलिए पुरानी डाक-सेवा वाला समय बीत जाने के बावजूद डाक टिकट संग्रह का महत्व बना हुआ है.''
धरोहरविश्व धरोहर थीम से जुड़े स्टाम्प संग्रह के जानेमाने फिलेटेलिस्ट प्रदीप कुमार मलिक भी इस प्रदर्शनी में सक्रिय थे। उन्होंने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा, ''जिस ब्रिटेन में वर्ष 1850 में पहला डाक टिकट निकला था, अब उसी देश के 'रायल मेल' यानी ब्रिटश पोस्ट ने लंदन ओलंपिक के दौरान अपने देश के विजेता खिलाड़ी के नाम पर जीत के अगले ही दिन डाक टिकट जारी कर देने की योजना बनाई है। इससे समझा जा सकता है कि इस क्षेत्र में कितनी तरक्क़ी हुई है और कितनी चेतना जगी है.''डाक टिकट संग्रह का शौक किसी को करोड़पति बनने में भी मदद कर सकता है, इसका पता इसी प्रदर्शनी में चला। हाल ही में 'कौन बनेगा करोड़पति' में पटना के अनिल कुमार सिन्हा ने एक करोड़ रूपए जीते हैं।उन्होंने प्रदर्शनी स्थल पर बीबीसी को बताया, ''मुझे स्टाम्प संग्रह का बेहद शौक है। इस शौक ने केबीसी-5 में मुझे एक करोड़ रूपए जीतने में काफ़ी मदद की। हर एक टिकट कागज़ का एक टुकड़ा भर नहीं बल्कि ज्ञान का ख़ज़ाना है। मैंने एक फ्रेम बनाने की कोशिश की है-' सवाल केबीसी के और जवाब स्टाम्प से' और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ज़्यादातर सवालों के जवाब स्टाम्प से मिली जानकारी के आधार पर दिए जा सकते हैं.''
ज़ाहिर है कि ये 'हॉबी' ना सिर्फ व्यक्ति के सामान्य ज्ञान को बढ़ा सकती है, बल्कि मनोरंजन के साथ-साथ आमदनी के रास्ते भी खोल सकती है।