फेक आईडी पर फ्रॉडर्स ने शहर की आधा दर्जन बैैंको से लगभग दो करोड़ रुपये का लोन ले लिया. शातिरों ने इसको इतनी सफाई से अंजाम दिया कि लोन की रकम खातों तक पहुंच गई इसके डेढ़ साल बाद बैैंक के सीनियर अधिकारियों को इसकी भनक लगी. अधिकारियों ने निर्देश पर केस दर्ज किया गया. साथ ही जिन लोगों के खाते में लोन की रकम गई थी उनके खिलाफ भी केस दर्ज किया गया. कुल 9 मामलों के केस दर्ज किए गए हैैं.


कानपुर (ब्यूरो)। फेक आईडी पर फ्रॉडर्स ने शहर की आधा दर्जन बैैंको से लगभग दो करोड़ रुपये का लोन ले लिया। शातिरों ने इसको इतनी सफाई से अंजाम दिया कि लोन की रकम खातों तक पहुंच गई, इसके डेढ़ साल बाद बैैंक के सीनियर अधिकारियों को इसकी भनक लगी। अधिकारियों ने निर्देश पर केस दर्ज किया गया। साथ ही जिन लोगों के खाते में लोन की रकम गई थी, उनके खिलाफ भी केस दर्ज किया गया। कुल 9 मामलों के केस दर्ज किए गए हैैं। चौंकाने वाली बात यह है कि चार मामलों में एक ही बैंक अधिकारी का नाम सामने आया है। ठगी 10 लाख रुपये से ज्यादा की है, लिहाजा इस मामले की जांच अब ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) को सौंपी गई है। इस तरह से हुई थी ठगी जून 2021 से लेकर ये मामले दिसंबर 2022 तक थानों में दर्ज किए गए। पुलिस को दी गई तहरीर के मुताबिक लोन अप्लाई करने से लेकर रकम मिलने तक लोन लेने वाला सामने रहा था। बैैंक के सर्वेयर और अधिकारियों ने लोन लेने वाले को पाक-साफ भी बताया था। तमाम रिपोर्ट भी ओके लगी हुई थीं। और तो और एड्रेस प्रूफ और दूसरी आईडेंटिटी का वेरिफिकेशन भी हो चुका था। लोन की रकम जिन खातों में भेजी गई, उनको सबसिडी का लालच भी दिया गया. इस तरह से हुई जानकारी लोन लेने के बाद जो रकम जमा करनी थी, जब वह लंबे समय तक जमा नहीं हुई तो बैैंक की टीम ने मामले की गंभीरता से जानकारी की, तब ये खेल खुलकर सामने आया। पुलिस के मुताबिक तत्कालीन सीनियर बैैंक ऑफिसर्स ने खुद को बचाने के लिए जूनियर ऑफिसर्स पर कार्रवाई करने के बजाय उनका तबादला दूसरे प्रदेशों में करा दिया. ये हुआ खुलासा जिन लोगों के नाम केस दर्ज किया गया है, पहले पुलिस जांच करते हुए उन लोगों तक पहुंची तो पता चला कि खाते में रकम आने के तीन दिन बाद निकल जाती थी और उन्हें 5 से 10 हजार रुपये दिया जाता था। रकम अलग-अलग तारीखों में आती थी। ये लोन कारोबार के नाम पर लिया गया था। जो जगह कारोबार के लिए दिखाई गई थी वह भी नहीं मिली। दो साल से जांच कर रही थी पुलिस एक ही तरह के मामले सामने आने के बाद तत्कालीन पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने मामले में एसआईटी बना दी थी, जो जांच कर रही थी, लेकिन जांच केवल एसआईटी के अधिकारियों तक ही सिमट कर रह गई। इधर आरबीआई बैैंकों पर दबाव बना रही थी। बैैंक की लीगल सेल पुलिस अधिकारियों के संपर्क में थी। मामला दस लाख से ज्यादा का था, लिहाजा इसे ईओडब्ल्यू के पाले में डाल दिया गया है. Posted By: Inextlive