सुंदरबन में तैरेंगी गंगा की डॉल्फ़िन
सरकार ने दक्षिणी सुंदरबन के पानी में डूबे मैनग्रोव जंगलों के तीन इलाक़ों को इन डॉल्फ़िनों या सूँस के लिए सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया है।
उन्हें बचाने के काम में लगे विशेषज्ञों का कहना है कि सूँस या गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फ़िनें सिर्फ़ समुद्री वनों में ही जीवित रह सकती हैं। जानकार बताते हैं कि सूँस का अस्तित्व ख़तरे में है।आम तौर पर मछुआरे इन डॉल्फ़िनों को शिकार नहीं बनाते लेकिन वो कई बार उनके जाल में फँस जाती हैं। इसीलिए बाँग्लादेश सरकार ने इन्हें बचाने के लिए मुहिम शुरू कर दी है।वन्यजीव विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी तपन कुमार डे ने बीबीसी को बताया, "पूर्वी सुंदरबन के धंगमरी, चंदपाई और दुधमुखी इलाक़ों को डॉल्फ़िनगाह घोषित करने का फ़ैसला किया गया है ताकि वहाँ ये जीव सुरक्षित रह सकें."अनुकूल वातावरणउन्होंने कहा कि बांग्लादेश के वन्यजीव सुरक्षा सोसाइटी ने इन तीन इलाक़ों की पहचान की थी। अब पर्यावरण मंत्रालय औपचारिक तौर पर इस बारे में एक सरकारी अधिसूचना जारी करेगा।
तपन कुमार डे ने कहा, "इन इलाक़ों में नाव से आने जाने के रास्तों को स्पष्ट तौर पर चिन्हित किया जाएगा और जगह जगह पर सूचनापट लगाए जाएँगे ताकि स्थानीय मछुआरे यहाँ मछली पकड़ने न जाएँ."
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि सुंदरबन की पारिस्थितिकी कुछ क़िस्म की व्हेलों, डॉल्फ़िनों और ऐसे ही कई समुद्री जीवों को बहुत अच्छी तरह माफ़िक आती हैं।गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फ़िन उत्तरी सुंदरबन में सुरक्षित रह सकती हैं तो इरावाडी डॉल्फ़िन बंगाल की खाड़ी के नज़दीक वाले दक्षिणी हिस्से में।सर्वेक्षणबांग्लादेश के वन्यजीवन विभाग का ये फ़ैसला ऐसे समय पर किया गया है जब पश्चिमी सुंदरबन में मीठे पानी की डॉल्फ़िनों के अलावा एक इंडो-पैसिफ़िक हंपबैक डॉल्फ़िन नज़र आने की ख़बर है।बांग्लादेश वन्यजीव सोसाइटी ने इस महीने की शुरुआत में सुंदरबन के पश्चिमी हिस्से में नौ दिन तक सर्वेक्षण किया था जिसके दौरान डॉल्फ़िनों की ये क़िस्में दिखाई दीं।सोसाइटी के प्रमुख शोधकर्ता रुबाइयत मंसूर मॉगली ने बीबीसी को बताया, "हमने इस साल बारिश के बाद कई डॉल्फ़िनें देखीं, जब पानी में खारेपन की कमी थी." हालाँकि उन्होंने ये भी कहा कि नई डॉल्फ़िनों के वहाँ नज़र आने से ये बात साबित नहीं होती कि सुंदरबन में उन्होंने रहना शुरू कर दिया है। दो साल पहले शोधकर्ताओं ने कहा था कि इन इलाक़ों में लगभग 6000 इरावाडी डॉल्फ़िनें हैं।