kanpur@inext.co.in KANPUR 7 Nov : पाकिस्तान की जेल में यात

- अमृतसर के हॉस्पिटल में गूंजीं बुजुर्ग शमसुद्दीन की सिसकियां, भाई, बहन और साली से की बात तो खुशी से कांपने लगे हाथ

-3 दशक बाद पाकिस्तान की जेल से रिहा हुए शमसुद्दीन अमृतसर के हॉस्पिटल में हैं क्वारंटीन, कानपुर स्थित घर आने को बेताब

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KANPUR (7 Nov) : पाकिस्तान की जेल में यातनाएं झेलकर लौटे शमसुद्दीन को 13 साल बाद बेटी अजरा ने अब्बू कहकर पुकारा तो खुशी के मारे उनकी आखें छलक पड़ी। मोबाइल पर बातचीत के दौरान अमृतसर के क्वारंटीन सेंटर में शमसुद्दीन की सिसकियां गूंज उठीं। परिवार के लोगों की हिम्मत टूट गई थी कि अब कभी वह शमसुद्दीन का चेहरा नहीं देख पाएंगे। भाई फहीमुद्दीन ने बड़े भाई की आवाज सुनी तो उनके साथ बिताए पल जेहन में घूमने लगे। मरहूम पिता की यादें ताजा हो गईं। साली साजरा और बहन सारा ने शमसुद्दीन की आवाज सुनी तो खुशी का ठिकाना न रहा।

जुल्म की कोई सजा नहीं जो पाकिस्तान नहीं दी

दोनों तरफ काफी देर रही खामोशी

सुरक्षा में लगे अमृतसर पुलिस के जवानों की माने तो काफी देर तक दोनों तरफ से खामोशी रही। इसके बाद बस आंसू ही बहते रहे। एक लंबे समय के बाद पूरा परिवार एक होने जा रहा है। पति के आने की जानकारी मिलते ही शमसुद्दीन की पत्नी और बेटी सैटर डे को ही बेरी का हाता स्थित घर पहुंचे थे।

किसे सौंपे में उलझी थी पुलिस

शमसुद्दीन के फैमिली से बात करने के बाद उनके रिसीविंग की परेशानी खत्म हो गई। दरअसल अभी तक उनसे परिवार का संपर्क नहीं हो पा रहा था। जिसकी वजह से अमृतसर पुलिस ये निर्धारित नहीं कर पा रही थी कि आखिर वह शमसुद्दीन को किसे सौंपे। पुलिस कानपुर में अधिकारियों से संपर्क कर रही थी कि इसी बीच शमसुद्दीन का परिवार से संपर्क हो गया।

बजरिया थाने की पुलिस पहुंची

सैटरडे देर शाम बजरिया थाने से पुलिस भी बेरी के हाते में पहुंची और पूरे परिवार की जानकारी ली। शमीमुद्दीन ने फोन पर बताया कि अमृतसर का पुलिस प्रशासन उसे घर भेजने का इंतजाम कर रहा है। संडे को उसका क्वारंटीन पूरा हो जाएगा। उसके बाद दो से तीन दिन फार्मेलिटी में लगेंगे। फिर अमृतसर से पुलिस के साथ शमसुद्दीन कानपुर अपनी सरजमीं पर आएंगे। जिस मिट्टी में पैदा हुए। उस मिट्टी को एक बार फिर अपनी पेशानी पर लगाएंगे। भाई फहीमुद्दीन और साली साजदा भी अमृतसर जाने की तैयारी कर रही थीं। लेकिन शमीमुद्दीन के मना करने पर दोनों रुक गए और यहीं उनका इंतजार शुरू किया।

बॉक्स

पड़ोसी मुल्क की बात करते हुए शमीमुद्दीन कहते हैं कि भाई इस संबंध में राब्ता (बातचीत) न करें तो बेहतर होगा। बहुत से जख्म हैं जो पड़ोसी मुल्क के हुक्मरानों ने दिए हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि ये जख्म आज भी हरे हैं। जुल्म की दास्तां सुनाते-सुनाते शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है। बताते हैं कि जुल्म की ऐसी कोई कहानी नहीं है जो उनके साथ हुई न हो। भारतीय जासूस न होने का सुबूत उन्हें 28 साल तक देना पड़ा। शमसुद्दीन बताते हैं कि सबसे बड़ी बात ये है कि कोई भी व्यक्ति उनकी सुनने को तैयार नहीं था।

Posted By: Inextlive