मैं हिटलर का पड़ोसी था !
पड़ोसी के तौर पर एडगार नौ नवंबर 1938 की रात तक हिटलर के पड़ोसी थे। ये वही रात थी जब जर्मन यहूदियों के नरसंहार की शुरुआत हुई थी। आठ दशक से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन एडगार के आंखों में एडोल्फ हिटलर की वो छवि अभी तक जीवंत हैं।
ये 1930 के दशक के शुरुआती वर्षों की बात है जब एडगार की उम्र आठ बरस थी। वे अपनी आया के साथ घूमने निकले थे, तभी उन्होंने नाज़ी नेता की पहली झलक देखी थी। हिटलर की खास तरह की वेशभूषा को याद करते हुए एडगार बताते हैं, ''उन्होंने सीधे मेरी तरफ देखा, मुझे नहीं लगता कि वो मुस्कुराए थे.''एडगार को याद है कि हिटलर जब सड़क पर निकले तो कुछ लोगों ने उनका अभिवादन किया और हिटलर ने बड़े ही खास अंदाज में अपनी टोपी सिर से उठाकर उन्हें जबाव दिया और फिर एक कार से रवाना हो गए जो उनकी राह तक रही थी।
हिटलर को देखने की उत्सुकतातब एडगार की उम्र बहुत कम थी, तो क्या इतनी कम उम्र में भी वो हिटलर को जानते थे, इस सवाल पर वे कहते हैं, ''हां बिल्कुल, मैं जानता था कि वो कौन हैं, भले ही मैं एक छोटा बच्चा था। एक चांसलर के तौर पर उनका दबदबा था.''
वे कहते हैं, ''मुझे हिटलर से डर नहीं लगा, मैं तो बस उन्हें देखने के लिए उत्सुक था.'' एडगार की उम्र अब 88 वर्ष है। एडगार कहते हैं, ''तब मुझे हिटलर को देखना कोई बड़ी बात नहीं लगती थी लेकिन ये सोचना बड़ा कठिन है कि जिस व्यक्ति को मैं रोज़ाना देखता था, वो वही व्यक्ति है जिसने दुनिया को हिलाकर रख दिया.''उन्हें अपने बचपन की और भी कई दिलचस्प बातें याद हैं। जैसे वो बताते हैं, ''मेरी मां कहती थीं कि आज ज्यादा दूध नहीं आया क्योंकि दूधवाला दूध की ज्यादातर बोतलें हिटलर के घर दे गया है.''एडगार बताते हैं कि वो जब स्कूल जाते थे तो रोज ही हिटलर के घर के सामने से गुजरते थे और चाहते थे वो किसी तरह नजर आ जाएं। एक दिन तो वो हिटलर के दरवाजे तक जा पहुंचे ये देखने कि डोर-बेल के साथ हिटलर के नाम की पट्टी लगी है या नहीं। वो कहते हैं, ''हिटलर सप्ताहांत में म्यूनिख आते थे और घर के बाहर खड़ी गाड़ियों को देखकर पता चल जाता था कि वो घर में हैं या नहीं। ''
स्वास्तिक का निशान और दुश्मनों के नामएडगार अपने स्कूल के दिनों को याद करते हैं और बताते हैं कि स्कूलों में भी नाज़ी विचारधारा को आगे बढ़ाया जाता था। वे कहते हैं, ''उन दिनों स्कूल में नाज़ी विचारधारा पढ़ाई जाती थी। उनके एक शिक्षक ऐसे भी थे जो बच्चे की कॉपियों में स्वास्तिक के निशान बनाते थे और जर्मनी के दुश्मन के नाम गिनाते थे जिनमें ब्रिटेन, रूस और अमरीका भी शामिल थे.''एडगार कहते हैं, ''हम जानते थे कि हिटलर का सत्ता में आना हम यहूदियों के लिए खतरे की बात है.'' एडगार के पिता के बड़े भाई लियॉन एडगार एक जानेमाने नाज़ी विरोधी नाटक-लेखक थे। उनके घर में नाज़ियों ने तोड़फोड़ भी की थी और फिर उन्होंने वर्ष 1933 में जर्मनी ऐसे छोड़ा कि कभी लौटकर नहीं आए।ये 10 नवंबर 1938 की बात है। तब एडगार की उम्र 14 वर्ष थी जब पूरे जर्मनी में यहूदियों को नाज़ी सुनियोजित तरीके से निशाना बनाने लगे थे।एडगार बताते हैं कि कुछ लोग उनके पिता को जबरन ले गए जो उनका और उनके परिवार का जीवन बदलने वाली घटना थी। लेकिन उनके पिता किसी तरह जीवित बच गए।जब तक उनके पिता वापस आए, एडगार का परिवार अपनी जान बचाने की खातिर जर्मनी छोड़ने का मन बना चुका था। वर्ष 1939 तक पूरा परिवार ब्रिटेन पहुंच चुका था।
द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद 1950 के दशक में एडगार एक बार फिर जर्मनी गए और वहां पहुंचे जहां हिटलर रहते थे। एडगार बताते हैं कि तब वो घर अपनी जगह कायम था। लेकिन आज वहां ऐसा कुछ नहीं बचा है जो इस बात का संकेत भी दे सके कि हिटलर ने विश्व इतिहास पर कितना असर डाला है।