कानपुर कमिश्नरेट में 4700 पुलिस कर्मी तैनात है. जिसमें सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक शामिल हैं. वहीं डेढ़ दर्जन से ज्यादा आईपीएस भी हैं. सभी सर्किल्स में एसीपी और सभी जोन में डीसीपी और एडीसीपी तैनात हैैं. इतना भारी भरकम स्टाफ होने के बाद भी विभाग मैनपॉवर क्राइसिस की जूझता रहता है. अधिकारी अपने ऑफिस में नहीं बैठ पाते हैं. जिससे काम प्रभावित होता है. इसकी बड़ी वजह है कोर्ट में पेशी. साल के करीब चार महीने तो इन अधिकारियों के दूसरे जिलों में एविडेंस पर आने-जाने में ही खर्च हो जाते हैं. इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर भी हर महीने कई-कई बार पुरानी जगह तैनाती के समय के मामलों में कोर्ट में पेश होना पड़ता है. जहां आने-जाने में खासा समय बर्बाद होता है.

कानपुर (ब्यूरो) अदालतों में ऑनलाइन सुनवाई नहीं होने से यूपी पुलिस की कार्यक्षमता बड़े स्तर पर प्रभावित हो रही है। एक पुलिसकर्मी को महीने में एक बार एविडेंस (साक्ष्य/गवाही) के लिए कोर्ट जाना पड़ता है। अधिकारियों के मुताबिक यूपी के एक लाख और कानपुर कमिश्नरेट के 2700 पुलिसकर्मी इस प्रक्रिया से गुजरते हैं। हर तारीख पर औसतन तीन से छह घंटे कोर्ट में लगते हैं। अगर दूसरे जिले में तैनाती है तो ये समय बढक़र एक से दो दिन भी हो जाता है। ये हालात तब हैं जब कोर्ट की सुनवाई को ऑनलाइन करने में सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है।

90 से 120 दिन खप जाते
एक रेंज से सटी दूसरी रेंज में भी ट्रांसफर होने से एविडेंस पर हाजिर होने में पूरा दिन लग जाता है। अधिक दूरी वाली दो रेंज के बीच आने-जाने में ही 24 घंटे लग जाते हैं। यानी एक पुलिसकर्मी के हर साल 90 से 120 वर्किंग डे अदालत में पेशी के लिए आने-जाने में ही खप जाते हैं। पूरी फोर्स के लिहाज से एविडेंस पर जाने में लगने वाली अवधि साल में एक करोड़ घंटों से अधिक बैठती है।

22वें स्थान पर यूपी
2019-22 के बीच अदालतों में टेक्निकल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए यूपी को करोड़ों रुपये मिले, जो देश में 5 वीं सर्वाधिक राशि है। अभी तक हमारी अदालतों में वर्चुअल सुनवाई के मामलों की संख्या एक लाख भी नहीं पहुंच पाई है। यहां यूपी 22 वें स्थान पर हैं। हाल ही में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने चैट-जीपीटी की मदद से फैसला सुनाया था, जबकि हमारी अदालतें सामान्य तकनीक से भी महरूम हैं।
केस-1 - शहर में तैनात एक अधिकारी पूर्व में मेरठ में कार्यरत थे। तैनाती के दौरान साहब ने तमाम गुडवर्क किए। अधिकारियों की शाबाशी भी मिली। लगभग दो साल पहले कानपुर तैनाती हो गई। कई बड़े सर्किल में रहे। बताते हैैं कि हर महीने कोई न कोई एविडेंस पड़ता रहता है। जिसकी वजह से कोर्ट में पेश होना पड़ता है। एक तरफा यात्रा में 12 घंटे लगते हैं और अदालती कार्यवाही के बाद तुरंत लौटना होता है, जो शारीरिक-मानसिक दबाव देता है।
केस-2 - कानपुर में सीनियर पद पर तैनात एक अधिकारी कुछ साल पहले मुरादाबाद में तैनात थे। तैनाती के दौरान बड़े-बड़े सूरमाओं को धूल चटा दी। मजाल थी कोई अपराधी साहब से नजरें मिला जाए। साहब अनुशासन के बहुत पक्के हैैं। उसके बाद कई जिलों में तैनाती के बाद कानपुर में तैनाती हो गई। यहां भी जलवा जलाल कायम है। बताते हैैं कि शुरुआती नौैकरी में गुडवर्क किए, जिसमें बहुत खुशी होती थी, तमाम मेडल भी मिले, लेकिन एविडेंस में जब दूसरे जिलों में जाना होता है तो कम से कम दो दिन लग जाते हैैं।
केस-3 - लगभग डेढ़ साल पहले कानपुर में तैनात एक चर्चित अधिकारी की तैनाती एक एजेंसी में थी। इसके पहले का आलम ये था कि जिले में छुट्टïी न मिलने पर बड़े साहब के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। एसटीएफ में तैनाती के दौरान बड़े-बड़े अपराधियों को धूल चटाई। बताते हैैं कि 80 किलोमीटर तक जाने पर तो परिवार का साथ मिल जाता है, इसलिए एविडेंस में जाना खलता नहीं है, लेकिन दूसरी तरफ जाने का मतलब दो दिन का बर्बाद होना तो होता ही है। साथ ही काम भी प्रभावित होता है।

अन्य वजहों से भी ऑनलाइन की जरूरत
एक टेक्निकल सीनियर अधिकारी की मानें तो डिजिटली मजबूत नहीं होने की वजह से कोरोना काल के बाद भी यूपी की अदालतों का प्रदर्शन कमजोर रहा। हालांकि यूपी की अदालतों में इस तरह की बहुत सारी जरूरतें इसलिए महसूस होने लगी हैैं कि पेशी या मेडिकल के दौरान बड़ी वारदातें हो जाती हैं। कानपुर जेल से भी कोर्ट का सीधा संंबंध है और कानपुर कोर्ट पूरी तरह से ऑनलाइन हैैं। कुछ दिन पहले ही कानपुर के विधायक इरफान सोलंकी की पेशी भी ऑनलाइन हुई थी।

ऑनलाइन पेशी नहीं मानती कोर्ट
हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट संदीप शुक्ला ने बताया कि पुलिसकर्मियों और पुलिस अधिकारियों को जो नोटिस मिलता है उसमें फिजिकल एपियरेंस के लिए ही लिखा होता है। इस वजह से उनकी पेशी ऑनलाइन नहीं हो सकती है। विशेष परिस्थितियों में ही माफीनामा दिया जाता है।

Posted By: Inextlive