अपने औद्योगिक रुतबे के चलते कानपुर की पूरी दुनिया में पहचान है. यहां की भूमि कई औद्योगिक क्रांतियों की गवाह रही है. जिसके निशान आज भी हैं. लगभग 200 साल पुराना और देश का पहला माल गोदाम भी कानपुर के औैद्योगिक दबदबे का गवाह है. हम बात कर रहे हैं घंटाघर स्थित रेल माल गोदाम का जिसे ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी को बढ़ावा देने के लिए बनवाया था. जिसे आजादी के बाद सीपीसी माल गोदाम के नाम से जाना जाता है. आज भी यहां ब्रिटिश सरकार के फर्नीचर के साथ ऐतिहासिक बिल्डिंग खड़ी हुई है. जिसे रेलवे ने कंडम घोषित कर दिया है. वर्तमान में यह धूल की परत में दफन होने के कगार में खड़ा हुआ हैं. यहां हर तरफ अव्यवस्थाओं का बोलबाला है.

कानपुर (ब्यूरो) सीपीसी माल गोदाम में पल्लेदारों की ठेकेदारी करने वाले 68 वर्षीय राम आसरे ने बताया कि वह लगभग 50 साल पहले कानपुर आए थे। परिवार का पेट पालने के लिए उन्होंने सीपीसी माल गोदाम में पल्लेदारी करना शुरू कर दिया। वर्तमान में वह पल्लेदारों के ठेकेदार हंै। उन्होने बताया कि माल गोदाम में पहले कोयला वाले इंजन के माध्यम से ट्रेनों से माल आता था। ट्रेन से माल अनलोडिंग कर भैंसा व हाथ गाडिय़ों से व्यापारियों की दुकानों तक पहुंचाया जाता था। माल गोदाम के हर गेट पर जानवरों के चारागाह और पानी पीने की बड़ी-बड़ी सीमेंट की टंकी बनी थी। इन 50 साल में सब बदल गया। सुविधाएं बढऩे की बजाए कम होती जा रही हैं।

एबी होमगट थे पहले प्रभारी
सीपीसी माल गोदाम अधिकारियों के मुताबिक, आजादी के बाद रेलवे ने यहां पहला मुख्य माल अधीक्षक प्रभारी के रूप में एबी होलगट को तैनात किया था। उनकी तैनाती 16 अप्रैल 1951 से 1960 तक रही। सीपीसी माल गोदाम में दूसरे मुख्य माल अधीक्षक प्रभारी के रूप में लगभग 10 साल बाद आरएनएल गुप्ता को तैनात किया गया। जो दो महीने ही यहां पर अपनी सेवाएं दे पाए। उसके बाद एबी होलगट को फिर से यहां का प्रभारी बना दिया गया।

कैसे बदलता गया इतिहास
सीपीसी माल गोदाम में कार्यरत लोगों से दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने उसके इतिहास के बारे में जानकारी ली। बताया गया कि कभी यहां पर बहुत अच्छी व्यवस्था हुआ करती थी। ब्रिटिश सरकार के बनाए गए माल डंप शेड जस के तस रखे हुए हैं। पक्की कंक्रीट की सड़क बनी हुई थी। मजदूरों के आराम करने, पेयजल के साथ नहाने धोने की अच्छी व्यवस्था थी। आज सड़कों पर पांच-पांच इंच मोटी धूल की परत जमी है। पेयजल का संकट गहराया है। मजदूरों के आराम करने की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। समय के साथ व्यवस्थाओं को और दुरुस्त होना चाहिए लेकिन यहां पर व्यवस्था बद से बदत होती जा रही हैं।

बैल खींचते थे कोच
सीपीसी मालगोदाम के इतिहास की बात करे तो ईस्ट इंडिया कंपनी पानी के रास्ते अपना माल विदेशों से इंडिया में कोलकाता स्थित बंदरगाह तक लाती थी। व्यापार को इंडिया में बढ़ाने के लिए ब्रिटिश सरकार को संसाधनों की कमी महसूस हुई। जिसके बाद उन्होंने कोलकाता से उत्तर भारत माल पहुंचाने के लिए रेल ट्रैक बिछाया और उसके मुताबिक बॉक्स नुमा गुड्स कोच बनवाए। इन बॉक्स नुमा गुड््स कोच को ट्रैक पर खींचने के लिए काफी दिनों तक बैल का सहारा लिया। जिसके बाद स्टीम इंजन के माध्यम से माल को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने के लिए यूज करने लगे।

Posted By: Inextlive