फार्मिग की बारीकियां बताने जुटे दिग्गज
- गोरखपुर यूनिवर्सिटी के एंवायर्नमेंटल साइंस डिपार्टमेंट की ओर से ऑर्गेनाइज हुई वर्कशॉप
- वर्मी कंपोस्ट उत्पादन और उसके यूज पर रहा फोकस GORAKHPUR : डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी में संडे को वर्कशॉप ऑर्गेनाइज की गई। फार्मिग की बारीकियां बताने के लिए ऑर्गेनाइज इस वर्कशॉप में फील्ड के दिग्गजों ने फार्मर्स को बेहतर पैदावार के लिए बेनिफिशियल टिप्स दिए। डीडीयू के एंवायर्नमेंटल साइंस डिपार्टमेंट की ओर से ऑर्गेनाइज इस थ्री डे वर्कशॉप का मेन फोकस 'वर्मी कंपोस्ट उत्पादन और उपयोग' पर रहा। प्रोग्राम की अध्यक्षता यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो। अशोक कुमार ने की। उन्होंने बताया कि रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध यूज से जहां भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है, वहीं इससे एंवायर्नमेंटल पॉल्युशन भी बढ़ रहा है। जो ह्यूमन लाइफ के लिए काफी खतरनाक है। फार्मर्स को मिलेगा इसका फायदावीसी ने कहा कि इसके थ्रू अनुसंधानशाला में किए गए उत्कृष्ट प्रयोगों और उसके परिणामों का सीधा फायदा फार्मर्स को होगा। इसके साथ ही उन्हें फार्मिंग की फील्ड से जुड़ी अहम इंफॉर्मेशन हासिल होगी। प्रोग्राम में बतौर चीफ गेस्ट हिसार यूनिवर्सिटी के प्रो। वीके गर्ग मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि आजकल कम लागत में ज्यादा उपज की जरूरत है, जिससे किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति और बेहतर हो सके। उन्होंने वर्मीवास के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, नाइट्रोजन, खनिज लवण, एंजाइम, हार्मोस और विटामिंस के साथ रोग प्रतिरोधक गुण भी समुचित मात्रा में पाया जाता है, जो काफी फायदेमंद है।
जाने फसलों को बचाने के तरीके एक तरफ जहां एक्सपर्ट्स ने ज्यादा पैदावार के लिए टिप्स दिए, वहीं दूसरी ओर उन्होंने पेड़-पौधों को कीटों से बचाने के भी टिप्स दिए। स्पेशल गेस्ट के तौर पर मौजूद कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी से आए प्रो। रोहतास गुप्ता ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट और वर्मीवास में अगर नीम की रूली या नीम का तेल और अन्य पादप जनित कीटनाशकों को मिलाकर यूज किया जाए तो फसलों में लगने वाले कीटों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। एचओडी प्रो। राजेंद्र सिंह ने गेस्ट का वेलकम किया। प्रो। सीपीएम त्रिपाठी ने विषय प्रवर्तन किया। ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ। केशव सिंह ने सभी को धन्यवाद दिया। प्रोग्राम का संचालन डॉ। विनय कुमार सिंह ने किया। इस दौरान दो टेक्निकल सेशन भी ऑर्गेनाइज किए गए। प्रोग्राम के दौरान यूनिवर्सिटी के टीचर्स, एंप्लाइज और रिसर्च स्कॉलर्स मौजूद रहे।